लक्ष्मीपुरी नामक एक छोटे गाँव में राम, सोम, करन नामक तीन दोस्त रहा करते थे। वे तीनों किसान थे। इनमें से राम और सोम अ़क्लमंद थे। करन उनकी सलाह लिये बिना छोटा-सा भी काम करता नहीं था। चाहे वह खेत से संबंधित हो, या घर से, मित्रों से सलाह लिये बिना किसी निर्णय पर आता नहीं था। चूँकि करन बचपन से ही दोस्त था, इसलिए उसके विश्वास के अनुसार ही राम और सोम सही सलाह देते थे और उसकी सहायता करते थे।
एक साल अच्छी फसल हुई। राम और सोम चाहते थे कि राजधानी में संपन्न होनेवाले वसंतोत्सव में भाग लें। जब यह बात करन को मालूम हुई, तब वह उनसे मिला और उसे भी साथ ले जाने का आग्रह किया। उन्होंने उसे समझाया, ‘‘लंबी यात्रा करनी पडेगी। जहाँ हम जानेवाले हैं, वह बिल्कुल नयी जगह है। हो सकता है, हमें कई अप्रत्याशित तकलीफ़ों का सामना करना पडे। तुमसे ये सहे नहीं जायेंगे।’’ मित्रों ने उसे यों बहुत समझाया, पर वह टस से मस न हुआ। उसने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘जब तुम दोनों साथ हो, मुझे डर किस बात का? मैं भी तुम्हारे साथ आऊँगा।’’ इसके दूसरे दिन तीनों राजधानी जाने निकल पड़े।
तीन दिनों की लगातार यात्रा के बाद तीनों दोस्त एक जंगल से होते हुए जा रहे थे। दो पहाडों के बीच एक छोटी नदी वह रही थी। उसे पार करने के लिए तीनों दोस्त वहाँ बंधी एक नाव में बैठ गये। थोड़ी दूर भी गये नहीं होंगे, नदी में बाढ़ आ गई । कहीं भारी वर्षा हुई, जिसके फलस्वरूप नदी का प्रवाह बढ़ने लगा। भयभीत तीनों दोस्तों ने एक-दूसरे को ज़ोर से पकड़ लिया। प्रवाह में नाव कहीं बह गयी।
पता नहीं, वह नाव कितनी दूर तक बहती गयी, पर जब तीनों होश में आये और आँखें खोलीं तो उन्होंने अपने को एक द्वीप में पाया। उन्हें बड़ी भूख लगने लगी, पर कहीं जाने की ताक़त उनमें नहीं रही। अचानक राम ने पास ही आम का एक पेड़ देखा, जिसमें आम लटक रहे थे।
राम आम को तोड़ने ही वाला था, यह कहते हुए एक भूत पेड़ पर से नीचे कूद पड़ा, ‘‘मेरी इज़ाज़त के बिना आम कौन तोड़ रहा है?’’ भूत को देखते ही तीनों दोस्त घबरा गये। भय के मारे वे नदी में कूदने ही वाले थे कि भूत ने ठठाकर हँसते हुए कहा, ‘‘डरो मत। इधर आओ। मैं तुम्हें हानि नहीं पहुँचाऊँगा।’’
डरते हुए तीनों भूत के पास आये। भूत ने उनसे पूछा,‘‘तुम लोग इस द्वीप में कैसे आये?’’ जो हुआ, तीनों ने बताया। उनकी हालत पर दया दिखाते हुए उसने आम के फल उन्हें दिये। भूख मिट जाने के बाद तीनों ने उसे कृतज्ञता जतायी। उनके भोलेपन पर खुश होकर भूत ने कहा, ‘‘तुम यहाँ से पैदल कहीं भी नहीं जा पाओगे । इसलिए तुममें से हर एक को एक एक वरदान देता हूँ। परंतु एक शर्त पर। तीनों को एक समान वरदान माँगना नहीं चाहिये। माँगो, क्या चाहते हो?’’
‘‘मुझे मेरी पत्नी और मेरी संतान के पास पहुँचाना,’’ राम ने माँगा। दूसरे ही क्षण वह घर पहुँच गया। ‘‘वसंतोत्सव में भाग लेने निकला हूँ। मुझे राजधानी पहुँचाना,’’ सोम ने माँगा। भूत ने तुरंत उसे राजधानी पहुँचा दिया। अब माँगने की करन की बारी थी। वर क्या माँगू, वह निर्णय नहीं कर सका। वे दोनों अपना-अपना वरदान माँगकर चले गये। वह पेशोपेश में पड़ गया कि वर माँगू तो क्या वर माँगू? अचानक उसके दिमाग़ में एक विचार कौंध उठा।
‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि क्या वरदान माँगू। इसके लिए मुझे अपने दोस्तों की सलाह चाहिये। इसलिए उन दोनों को यहाँ बुलाना।’’ दूसरे ही क्षण भूत ने उन दोनों को वहाँ उपस्थित कर दिया और ग़ायब हो गया। दोनों दोस्त जान गये कि ऐसा क्यों हुआ। वे करन के इस काम पर बहुत दुखी हुए और करन से कहने लगे, ‘‘इसीलिए हम लोग तुम्हें साथ लाना नहीं चाहते थे। तुम भी भूत से घर जाने का वरदान माँग लेते। क्या तुम्हें इतनी अक्ल भी नहीं थी? सलाह माँगने के लिए हम दोनों को यहाँ बुलाकर मुसीबत में डाल दी! अब यहाँ से कैसे घर पहुँचे।’’
थोड़ी ही देर में भूत वहाँ फिर प्रत्यक्ष हुआ और कहने लगा, ‘‘अपने दोस्तों से सलाह माँग ली?’’ करन चुप रहा।भूत को देखते ही दोनों दोस्त खुश हुए और कहने लगे, ‘‘हर छोटी-सी बात पर यह हमसे सलाह माँगता रहता है। हर समय सलाह माँगनेवाले इसे हमारे गॉंव के बरगद के पेड़ के नीचे की देवी के मंदिर के सामने पहुँचाना। उसी प्रकार, जैसे हमने माँगा, हमें पहुँचा देना। यह सहायता करोगे तो जीवन भर हम तुम्हारे ऋणी रहेंगे।’’
भूत हँस पड़ा और करन से बोला, ‘‘सलाहें लेना कोई ग़लत बात नहीं है। किन्तु हमें चाहिये कि हम अपनी अच्छाई-बुराई का निर्णय स्वयं करें। बुद्धिहीन होकर हर किसी निर्णय के लिए दूसरों से सलाहें माँगते रहेंगे तो हम आफ़तों में फंस जायेंगे और उन्हें भी आफ़तों में डाल देंगे।’’ फिर उसने उन तीनों को उनकी मनचाही जगहों पर पहुँचा दिया। करन को अब समझ में आ गया कि हर बात पर दूसरों से सलाह लेने से आदमी हमेशा मूर्ख बना रहता है। मेरी मूर्खता के कारण ही राम और सोम मुझे साथ ले जाना नहीं चाहते थे। उसने निश्चय किया कि अब से मैं अपनी ही बुद्धि का प्रयोग करूँगा और हर बात में स्वयं निर्णय लूँगा।
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