Thursday, June 30, 2011

दुश्मन में फूट

दुश्मन में फूट वेंकटगिरि नामक गाँव में वीरबाहू नामक एक किसान था। उसके चार एकड़ जमीन थी। वह कड़ी मेहनत करके फ़सल पैदा करता और उससे होनेवाली आमदनी से ज़ैसे-तैसे अपना परिवार चला लेता था।
एक साल बरसात न होने की वज़ह से अकाल पड़ा, साथ ही उस प्रदेश में चोरों का बोलबाला हो गया। मगर दूसरे साल अच्छी वर्षा हुई और खेत लहलहाने लगे।
वीरबाहू के खेत में ज्वार हरा-भरा था। उसमें भुट्टे निकल आये थे। पिछले साल अकाल पड़ने से चोरों का डर बना रहता था, इसलिए वीरबाहू रात के व़क्त खेत पर पहरा देता था। एक दिन की ठण्ढी रात में वह अपनी झोंपड़ी में लेटा हुआ था कि खेत में कोई आहट हुई। वीरबाहू ने सोचा कि खेत में चोर घुस आये होंगे। वह कंबल ओढ़, हाथ में लाठी लेकर खेत की ओर चल पड़ा।
थोड़ी दूर पर चार चोर खेत में घुसकर भुट्टे काट रहे थे। चांदनी रात थी। वीरबाहू ने उन्हें पहचान लिया। वे चारों उसी के गाँव के थे। उसे डर लगा कि अकेले ही चारों का सामना करना जान पर खेलना है।
वह सोच ही रहा था कि उसके दिमाग में एक उपाय सूझा। वह लाठी को वहीं पर छोड़ निडर चोरों के पास पहुँचा।
वीरबाहू के खेत से भुट्टे काटनेवाले चोरों में एक ब्राह्मण, एक बनिया, एक क्षत्रिय और एक किसान था।
वीरबाहू ने पहले ब्राह्मण के निकट पहुँचकर प्रणाम किया और कहा, ‘‘ब्राह्मण देवता, आपको इस आधी रात के व़क्त यहाँ आकर कष्ट उठाने की क्या ज़रूरत थी? आप किसी से कहला भेजते तो मैं ख़ुद भुट्टे लाकर आपके घर पहुँचा देता, आप जितने चाहें, उतने काट लीजिये। यह सब आपके आशीर्वाद का फल है।''

किसान की बातें सुन ब्राह्मण उछल पड़ा और तेजी के साथ भुट्टे काटने में निमग्न हो गया।
इसके बाद वीरबाहू क्षत्रिय के पास पहुँचा और बोला, ‘‘राजा साहब, यह खेत आपका ही है, आप भी जितने चाहें, उतने भुट्टे काट लीजिये। हम तो आपकी प्रजा हैं। यह खेत आपका है।''
क्षत्रिय भी निश्चिंत होकर भुट्टे काटने लगा। तब वीरबाहू बनिये के पास जाकर बोला, ‘‘सेठजी, आप मौक़े - बे मौक़े उधार देकर हमें उबारते हैं। इसलिए यहाँ पर आप को रोकने ही वाला कौन है? आप भी मन चाहा भुट्टे काटकर ले जाइये।'' इस पर बनिये का डर भी जाता रहा।
वीरबाहू तब किसान के पास जाकर बोला,‘‘अरे भाई, इन तीनों को हम-जैसे लोगों को दान देने, कर चुकाने या कर्ज के रूप में धन देना पड़ता है, लेकिन तुम मुझ जैसे एक किसान होकर चोरी करने आये हो, यह बिलकुल ठीक नहीं है । चलो, मेरी माँ के पास! वही इस चोरी का फ़ैसला करेंगी।'' यों कहकर उस किसान को वीरबाहू झोंपड़ी के पास ख़ींच कर ले गया। बाक़ी ने सोचा कि वीरबाहू के खेत से भुट्टे काटने का उन्हें हक़ है। लेकिन किसान को नहीं है, इसलिए उन लोगों ने किसान की कोई मदद नहीं की।
वीरबाहू थोड़ी देर बाद लौट आया और ब्राह्मण के निकट जाकर बोला, ‘‘महाशय, मेरी माँ कहती हैं कि ब्राह्मण को चाहिये कि दान देने पर ले, पर चोरी करना अपराध है, चलो उनके पास!'' यों कहते वीरबाहू ब्राह्मण का हाथ पकड़ कर खींच ले गया।

थोड़ी देर बाद फिर वीरबाहू लौट आया, तब तक बाक़ी दोनों चोर भुट्टे काट रहे थे। इस बार वह बनिये का हाथ पकड़ कर खींचते बोला, ‘‘अजी सेठ साहब, मेरी माँ कहती हैं कि आपने हमें कभी कर्ज़ नहीं दिया, इसलिए आपका भुट्टे काटना अपराध है, इसलिए माँ के पास आकर आप ही अपनी सफ़ाई दीजिये।''
बनिये ने क्षत्रिय की ओर याचना भरी दृष्टि से देखा, लेकिन क्षत्रिय ने कुछ नहीं कहा। वह भुट्टे काटने में मशगूल था।
बनिये को झोंपड़ी के पास छोड़ वीरबाहू लाठी लेकर खेत में आ पहुँचा। तब तक क्षत्रिय भुट्टों की गठरी बांध रहा था। वीरबाहू के हाथ में लाठी देख वह गठरी के साथ तेज़ी से भागने लगा।
वीरबाहू ने क्षत्रिय का पीछा किया और उस पर लाठी चलायी। क्षत्रिय मार खाकर नीचे गिर गया। वीरबाहू ने रस्सी से उसके हाथ बांध दिये और कहा, ‘‘तुम्हें तो और लोगों को चोरी करते देख दण्ड देना चाहिये, मगर तुम भी चोरी करने पर तुल गये हो! इसकी सज़ा तुम्हें भोगनी है, चलो, तुम्हें भी वही सज़ा दिलाता हूँ जो सजा बाक़ी तीनों को मिलने वाली है।''
‘‘मुझे भी अपनी माँ के पास ले चलो, बाक़ी तीनों को तुम्हारी माँ ने माफ़ कर दिया तो मुझे भी माफ़ करेंगी।'' क्षत्रिय ने कहा।
वीरबाहू ने हँसकर कहा, ‘‘भाई, मेरी माँ और कोई नहीं, यही ज़मीन है। उसकी ओर से मैंने तुमको बाँध दिया। बाक़ी तीनों को भी मैंने अपनी झोंपड़ी में बांध कर रखा है।''
इसके बाद वीरबाहू ने चिल्ला कर आसपास के खेतों में काम करनेवालों को बुलाया, और सारी घटना उन्हें सुनाकर सवेरे होते ही सबको थाने में भिजवा दिया।
इस प्रकार वीरबाहू ने अकेले ही अपनी बुद्धि के बल पर चारों चोरों का सामना किया और अपनी फसल की रक्षा के साथ-साथ चोरों को उचित सबक भी सिखाया।


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