
शिव पच्चीस साल की उम्र का अशिक्षत युवक था। वह मनुष्यों से अधिक जंतुओं को चाहता था। वह मेमनों को गोद में लेता था और उन्हें प्यार से चूमता रहता था। गाँव के कुत्तों के साथ वह दौड़ता रहता था। घर में घुसे चूहों और छिपकलियों को बड़ी चालाकी से पकड़ता था, उन्हें थैली में बंद करके गाँव के बाहर छोड़ आता था।
चमन उस गाँव में दूध का व्यापार करता था। नीलवेणी उसकी इकलौती बेटी थी। शिव उसे बहुत चाहता था। एक दिन शाम को वह गाँव के बाहर नीम के पेड़ के नीचे बैठकर गुनगुना रहा था, तभी नीलवेणी वहाँ पानी भरने आयी।
अगल-बग़ल में कोई नहीं था, इसलिए शिव ने साहस बटोरकर उससे कहा, ‘‘मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ। क्या, तुम्हें यह शादी पसंद है?''
‘‘इसके बारे में मेरे पिता से पूछना'' यह कहकर हँसती हुई वह वहाँ से चली गयी।
शिव ने भांप लिया कि नीलवेणी को यह प्रस्ताव पसंद है तो उसने उसके पिता चमन से मिलने का निश्चय किया। शिव की बातें सुनकर नीलवेणी का बाप एकदम नाराज़ हो उठा और कहने लगा, ‘‘बिल्कुल अनपढ़ हो। कोई नौकरी नहीं करते हो। चूहों और छिपकलियों को पकड़ने का काम करते हो। तुम अव्वल दर्जे के सुस्त हो। ऐसे बेकार आदमी से अपनी बेटी की शादी करूँ? असंभव। जा, जा।''
शिव को लगा कि चमन ने उसका घोर अपमान किया। वह दुखी और निराश हो गया। उसने महसूस किया कि चमन की बात में सचाई है। वह कर भी क्या सकता है? उसे कोई काम भी नहीं देगा तो शादी करके पत्नी को खिलायेगा कहॉं से। यही सब सोचता हुआ वह सो गया। उस दिन रात को उसने एक अजीब सपना देखा। शिव समुद्र में तैर रहा है। पास ही, एक काला लंबे बालोंवाला आदमी डूब रहा है। उसको बचाने के उद्देश्य से वह उसे किनारे तक ले आता है। उस समय एक बड़ी लहर उठती है और उसके प्रवाह में बहते हुए दोनों किनारे आ जाते हैं। परंतु, लंबे बाल वाला एक गढ्ढे में गिर गया और शिव रेत के एक टीले पर आ गिरा। दूसरे ही क्षण उसकी आँखें खुल गयीं।
शिव की समझ में नहीं आया कि इस सपने का क्या मतलब हो सकता है। गाँव के लोग कहा करते हैं कि जंगल के उस तरफ़ की पहाडी गुफा में जो तिरछी आँखवाला है, वह ऐसे सपनों के मतलब समझता है और समझाता भी है। वह इन सपनों को साकार करने के उपाय भी सुझाता है। उस अजीब सपने के मतलब को जानने के लिए शिव उस बाबा से मिलने निकला।

जंगल के बीचों बीच एक जगह पर एक पतला रास्ता था। उस रास्ते से होते हुए जब वह जाने लगा, जोर की वर्षा होने लगी। पास ही के देवी के उजडे मंदिर में उसने आश्रय लिया। देखते-देखते चारों ओर अंधेरा छा गया।
उस समय एक बैलगाडी वहाँ आयी। उसे देखते ही शिव की जान में जान आयी। तेज़ी से वह उसके पास पहुँचा। गाड़ी हांकनेवाला दिखाई तो नहीं पड़ा पर उसने देखा कि गाड़ी के अंदर कोई आदमी लेटा हुआ है। वह गाड़ी के अंदर गया, उस आदमी को गौर से देखा और जाना कि वह आदमी सख्त बीमार है। उसका बदन बुख़ार के कारण जला जा रहा है। उसे लगा कि तुरंत इस आदमी का इलाज करवाया न जाए तो उसकी मौत निश्चित है। उसने गाड़ी को राजधानी की ओर मोड़ा।
राजधानी पहुँचते-पहुँचते सूर्योदय हो गया। शिव ने गाड़ी रोकी और वहाँ खड़े सैनिकों से उसने पूछा, ‘‘महाशय, समीप ही कोई वैद्य है?''
संदेह भरी दृष्टि से देखते हुए सैनिकों ने उससे पूछा, ‘‘तुम कौन हो?'' कहते हुए एक सैनिक ने अंदर झांका। बस, एकदम वह चिल्ला उठा ‘‘बाप रे, यह आदमी तो महाचोर लट्टू है।''
सैनिकों ने गाड़ी के अंदर ढूँढ़ा तो उन्हें उसमें एक पेटी मिली। उसमें गहने व अशर्फियाँ भरी पड़ी थीं।
‘‘लगता है, तुम महाचोर के अनुचर हो।'' कहते हुए एक सैनिक ने शिव का गला पकड़ लिया।

शिव दर्द के मारे कराहने लगा और कांपते हुए स्वर में कहने लगा, ‘‘साहब, मैं चोर नहीं हूँ। अगर चोरी करने का साहस ही होता तो मैं आपकी पकड़ में नहीं आता। कल रात को मैंने एक अजीब सपना देखा। उसका मतलब जानने के लिए गुफा में आसीन तिरछी आँखवाले बाबा से मिलने निकला और मार्ग मध्य में इस बीमार आदमी को देखा। इसका इलाज कराने यहाँ ले आया और आपके चंगुल में फंस गया।''
सिपाही ने तुरंत उसका गला छोड़ते हुए कहा, ‘‘पहले ही यह बता सकते थे। मैं भी उस तिरछी आँखवाले बाबा का भक्त हूँ। हर अमावास्या के दिन जाता हूँ और उनके दर्शन कर आता हूँ। परंतु, एक सैनिक होने के नाते मेरा फर्ज़ बनता है कि तुम्हें महाराज के पास ले जाकर खड़ा करूँ। वे ही यह निर्णय करेंगे कि तुम उस महाचोर के अनुचर हो या बाबा के भक्त हो।''
शिव को दरबार में सिंहासन पर आसीन महाराज के पास ले जाया गया। सिपाही ने पूरा विवरण सविस्तार महाराज को सुनाया।
राजा ने शिव को ध्यान से देखा और गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘अच्छा, तो तुम महाचोर लट्टू के अनुचर हो, कहो, तुम्हें क्या कहना है?''
शिव ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘महाराज, मैं लट्टू का अनुचर नहीं हूँ।'' फिर उसने जो अजीब सपना देखा, उसके बारे में बताया।
राजा ने मुस्कुराते हुए, पास ही बैठे राजगुरु की ओर देखा। राजगुरु ने शिव से कहा, ‘‘उस अजीब सपने में डूबते हुए उस झुर्रियों वाले आदमी को बचाने के प्रयत्न में किनारे पर आकर बिना पानी मछली की तरह फंस गये।'' फिर उसने राजा के कहा, ‘‘यह दोषी नहीं है। इसे क्षमा कर दीजिये।''

तब बड़े ही उत्साह के साथ शिव ने, राजगुरु से कहा, ‘‘धन्यवाद। मुझे उस तिरछी आँखवाले बाबा के दर्शन के लिए जाने से बचा लिया।''
इतने में, बगल के कमरे से बारह सालों की उम्र की राजकुमारी चीखती-चिल्लाती हुई, अपनी वेणी को इधर-उधर हिलाती हुई वहाँ आयी। शिव ने तुरंत देखा कि एक छिपकली उसकी वेणी में चिपककर बैठी है, इसीलिए राजकुमारी चीख रही है।
शिव तत्क्षण ही आगे बढ़ा और छिपकली के गले को अपनी दोनों उंगलियों के बीच में दबाकर पकड़ लिया। राजकुमारी चकित होकर देख ही रही थी कि शिव ने छिपकली को राज प्रासाद की दीवार के उस पार फेंक दिला।
‘‘कितने साहसी हो! छिपकलियों से क्या तुम्हें डर नहीं लगता?'' राजकुमारी ने शिव से पूछा।
शिव ने विनय-भरे स्वर में कहा, ‘‘हमारे गाँव में, जिस किसी के घर में जो चूहे या छिपकलियाँ होते हैं, उन्हें पकड़ लेता हूँ और गाँव के बाहर छोड़ आता हूँ। कहते हैं, छिपकलियों और बिल्लियों को मारना महापाप है।''
महाराज ने प्रसन्न होकर शिव से कहा, ‘‘राज प्रासाद में छिपकलियों को पकड़ने का ही काम नहीं बल्कि अन्य कीडे-मकोड़ों को भी दूर रखने की जिम्मेदारी सौंपता हूँ। यह नौकरी करोगे?''
‘‘इससे बढ़कर और क्या चाहिये, महाराज'' सिर झुकाकर शिव ने कहा। ‘‘अन्धा क्या माँगे? दो आँख। मेरे तो भाग्य ही खुल गये। मुझे लोग सुस्त और बेकार समझते हैं। वैसे कीड़ों-मकोड़ों को पकड़ने के अलावा मुझे कुछ आता भी नहीं है। आप की कृपा से मेरा जीवन सुधर गया।
यों सुस्त शिव को राजा के यहाँ नौकरी मिली। यह विषय जानकर चमन ने अपनी बेटी नीलवेणी की शादी बड़े ही धूमधाम से शिव से करायी।

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