Thursday, June 30, 2011

सुकेशिनी

श्रीमती सुधा मूर्ती इनफोसिस फाउण्डेशन की चेयरपर्सन हैं। ये एक टेक्नोक्रैट, शिक्षिका, लेखिका तथा एक सामाजिक कार्यकर्त्री हैं। लोकोपकार की भावना इनके रोम-रोम में बसी है। इन्होंने इंजीनियरिंग के पूरे अध्ययन काल में हमेशा प्रथम स्थान अर्जित किया। इन्होंने 1974 में इण्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से एम.टेक. की स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। अध्ययन-काल में इन्होंने स्वर्ण और रजत पदक जीते। इन्हें पद्मश्री, चार डॉक्टॅरेट मानोपधियाँ तथा 35 भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जित करने का भी श्रेय प्राप्त है। अनेक उपन्यासों, यात्रा-विवरणों, तकनीकी पुस्तकों, आत्मानुभूतियों तथा बाल-पुस्तिकों की लेखिका श्रीमती सुधा मूर्ति अब तक 92 ग्रंथो की रचना कर चुकी हैं जिनमें कई पुरस्कृत हैं।
सुकेशिनी एक सुन्दर लड़की थी। वह मेरु पर्वत के नीचे रामापुरा गाँव में रहती थी। रामापुरा अक्सर सूखाग्रस्त रहता था। लोगों को एक बाल्टी पानी के लिए मीलों जाना पड़ता था। खेती-बाड़ी प्रायः बन्द रहती थी और लोग अत्यन्त गरीबी में दिन काट रहे थे।
सुकेशिनी अपनी माँ के साथ झोंपड़ी में रहती थी। वे गरीब थीं पर बहुत परिश्रमी थीं। उनके पास कुछ भेड़ें थीं जिनकी वे देखभाल करती थीं। सुकेशिनी के बाल असामान्य रूप से लम्बे थे। चलते समय वे ज़मीन से लगते थे। इसीलिए उसका नाम सुकेशिनी पड़ा।
एक दिन अपनी भेड़ों को चराने के लिए उसे कहीं घास नहीं मिली। उसने घास लाने के लिए मेरु पर्वत पर जाने का निश्चय किया। पर्वत पर चढ़ना कठिन काम था। आधी दूरी जाते-जाते वह थक गई और आराम करने के लिए एक नीम के पेड़ के नीचे बैठ गई। उसकी नज़र अचानक एक लता पर पड़ी जिसमें पत्ते ताजे लग रहे थे। उसने ऐसी लता पहले कभी नहीं देखी थी। वह उसे अपनी भेड़ों के लिए ले जाना चाहती थी। उसने जैसे ही ताकत लगाकर लता को खींचा, ज़मीन के नीचे से एक बड़ा कद्दू निकला और वहाँ से पानी छलकता हुआ उसके चेहरे पर आ गया। उसने पीकर देखा। वह बहुत मीठा था। वह खुशी से उछल पड़ी। आखिर में उसे पानी का एक स्रोत मिल गया। उसे अपने गाँव की याद आई। यदि गाँव के लोग इस स्रोत से लाभ उठा सकें तो पानी की उनकी समस्या सदा के लिए दूर हो जायेगी।

तभी उसने आँधी की उपस्थिति महसूस की और ज़मीन पर रखा कद्दू ऊपर झरने के स्रोत पर चला गया और पानी का निकलना बन्द हो गया। क्या हो रहा है, वह समझ पाये कि उसके पूर्व ही वह पर्वत की चोटी पर पहुँचा दी गई। वहाँ पर उसने एक सुन्दर नीली झील देखी।
उसने यह भी देखा कि एक राक्षस गुस्से में उसे घूर रहा है। ‘‘ऐ लड़की, मैं इस पहाड़ का मालिक हूँ। मेरे पास पानी के दो स्रोत हैं। एक यह झील है और दूसरा वह झरना है। अब तुम मेरे रहस्य को जान गयी हो। तुम इसे गाँव में बताने का दुस्साहस न करना। यदि ऐसा किया तो मैं तुम्हें झील के नीचे दफ़ना दूँगा और झील का पानी हर रोज तुम्हारे बालों से होकर बहेगा। मैं यह तुम्हें चेतावनी दे रहा हूँ। अब तुम अपने गाँव में वापस जा सकती हो।''
वह कुछ कहे, इसके पहले ही आँधी ने उसे गाँव में वापस पहुँचा दिया।
यह सब क्षण भर में हो गया। सुकेशिनी के लिए यह सपना जैसा था। सच्ची घटना के प्रमाण के रूप में उसके हाथ में लता का एक पत्ता था। वह इसके बारे में बहुत दिनों तक सोचती रही। वह पानी की समस्या को सुलझाने में अपने गाँव की मदद करना चाहती थी। लेकिन उसकी सज़ा के बारे में सोचती कि ‘‘ठण्डा पानी लगातार तुम्हारे बालों से होकर बहेगा'', तो वह काँप उठती और फिर चुपचाप रह जाती।
दिन गुजरते गये। कई महीने चले गये। सुकेशिनी अधिक शान्त रहने लगी। पानी की समस्या बदतर होती गई और वह अधिक चिन्तित रहने लगी। चिन्ता के कारण उसके बाल सफेद हो गये। अब सुकेशिनी के बाल लम्बे घने सफेद थे। उसकी सुन्दरता हमेशा के लिए चली गई।
एक दिन उसे अपनी बीमार माँ तथा प्यासी भेड़ों के लिए एक बाल्टी भी पानी नहीं मिला। गर्मी असह्य हो गई। वह बहुत देर तक सोचती रही। फिर उसने कुछ निश्चय कर लिया। उसने महसूस किया कि पूरे गाँव को बचाने के लिए एक व्यक्ति का मर जाना कहीं बेहतर है।


दूसरे दिन सुबह उसने गाँववालों की एक सभा बुलाई और उन्हें पूरी कहानी बता दी। अन्त में उसने कहा, ‘‘मैं सबको पानी के स्रोत पर ले चलूँगी।''
सभा में से एक युवक बोला, ‘‘सुकेशिनी, हम नहीं चाहते कि तुम हमारी खुशी के लिए अपना बलिदान दो। मेरे पास इसका समाधान है। हमलोग सुकेशिनी के समान ही लकड़ी की एक गुड़िया बनायेंगे। तुम अपने बाल कटवा दो। तुम्हारे बालों को हम गुड़िया में चिपका देंगे। बालों के बिना तुम्हारा चेहरा कोई पहचान नहीं पायेगा। तब राक्षस यदि गुड़िया को ले जाकर झील में दफना देगा तो दफनाने दो।''
हरेक ने माना कि यह अच्छा विचार है। दूसरे दिन सभी युवक और स्वस्थ व्यक्ति मेरु पर्वत पर चढ़ गये। उन्होंने नीम के पेड़ और लता को देखा।
सुकेशिनी ने सबको हिदायत दी, ‘‘कद्दू को निकालने से पहले यहाँ से गाँव तक एक नहर खोदो और जैसे ही मैं लता को उखाडूँ, कद्दू को नष्ट कर दो। बाकी सब भगवान पर छोड़ दो।''
लोगों ने उसके आदेश का पालन किया। जब उसने लता को उखाड़ा तो पानी नहर से होकर गाँव की ओर बहने लगा। तुरन्त आँधी आई और राक्षस ने लम्बे सफेद बालोंवाली गुड़िया को उठा लिया गया और झील के अन्दर दफना दिया। उसे यह मालूम नहीं पड़ा कि यह एक गुड़िया है। उसने झील का निकास-द्वार खोल दिया तथा बर्फ की तरह शीतल जल उसके रेशमी लम्बे सफेद बालों से होकर प्रवाहित होने लगा ।
सुकेशिनी के बाल इतने लम्बे थे कि पानी पर्वत के शिखर से घाटी में झरनों की तरह उतरता था। इससे गाँववालों को खेती करने में मदद मिली। नहर के पानी से भी उन्हें लाभ हुआ। इस प्रकार गाँव की सूखा से रक्षा हो गई।
क्रोधित राक्षस निराश होकर मेरु पर्वत छोड़ कर चला गया। कालक्रम में सुकेशिनी के बाल पहले की भाँति पुनः उग आये। लम्बे, काले और खूबसूरत। रामापुरा के निवासी सुकेशिनी के निःस्वार्थ कार्य के लिए उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहे।



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