पॉंच कल्प के पूर्व बोधिसत्व सेरिव नामक राज्य में बर्तन के एक व्यापारी के रूप में अपना जीवन बिताया करता था। वह पुराने बर्तन ख़रीदता और नये बर्तन बेचता था। इस व्यापार में बोधिसत्व न्यायोचित लाभ ही लिया करता था। उसी राज्य में बर्तन बेचने व खरीदने वाला एक और व्यापारी था। वह पक्का कंजूस था। दोनों मिलकर ही व्यापार किया करते थे।
एक बार वे दोनों तेलिवाहा नामक नदी को पार कर आन्ध्रपुर पहुँचे। वे दोनों एक-दूसरे के व्यापार में दखल न दें, इस विचार से वे नगर की गलियों को समान रूप से बांट लेते थे। आन्ध्रपुर में एक व्यापारी का परिवार था। वह परिवार एक जमाने में संपन्न था, पर अब निर्धन हो चुका था। उस परिवार में एक कन्या, एक बूढ़ी नानी तथा उनकी दरिद्रता बच गई थी। वे दोनों मजूरी करके अपना पेट पालती थीं।
उनके पास कई बर्तन थे। उनमें से एक सोने का पात्र था, जिसका उपयोग उस परिवार का प्रधान व्यापारी अपने जीवन काल में किया करता था। उस पर मैल जम गई थी, इस कारण वे दोनों औरतें समझ न पाईं कि वह पात्र असल में सोने का है। कंजूस व्यापारी गलियों में ‘‘पणिक चाहिए? या मणिक चाहिए?’’ चिल्लाते उन औरतों के मकान के पास पहुँचा। पणिक माने हार और मणिक माने मिट्टी के पात्र हैं । यह चिल्लाहट सुनकर छोटी लड़की ने बूढ़ी से पूछा-‘‘मॉं, मुझे कुछ खरीदकर दे दो न?’’
‘‘बेटी, मैं तुम्हें क्या ख़रीदकर दे सकती
हूँ? हमारे पास बचा ही क्या है?’’ मॉं ने जवाब दिया।
‘‘हमारे पास एक पुराना बर्तन है न?’’ बेटी ने कहा। इस पर उस औरत ने कंजूस व्यापारी को घर के भीतर बुलाया और उसके हाथ बर्तन देकर कहा-‘‘बेटा, तुम इसे लेकर अपनी बहन के वास्ते कोई चीज़ दे दो।’’
कंजूस व्यापारी ने उस बर्तन को उलट-पलटकर देखा, लोहे की छड़ी से खरोंचकर जांच की। तब इस निर्णय पर पहुँचा कि वह सोने का ही है। उसने अपने मन में उस बर्तन को सस्ते में हड़पने का दृढ़ निश्चय कर लिया। तब बोला- ‘‘बहन, इसकी क़ीमत तो नहीं के बराबर है।’’ फिर उस पात्र को वहीं फेंककर चला गया।
बोधिसत्व और कंजूस व्यापारी के समझौते के अनुसार एक के किसी गली में हो आने के बाद दूसरा जाकर अपना व्यापार कर सकता था। इस निर्णय के अनुसार बोधिसत्व थोड़ी देर बाद यह पुकारते उन औरतों के मकान के पास पहुँचा-‘‘मणिक चाहिए?’’ यह पुकार सुनकर बेटी ने अपनी मॉं से कहा-‘‘मॉं, मुझे कुछ ख़रीदकर दे दो न?’’
‘‘बेटी, हमारे घर में उस पुराने पात्र को छोड़ और बचा ही क्या है? एक व्यापारी उसे फेंककर चला गया । मैं और कौन चीज़ देकर तुम्हें कुछ खरीदकर दे दूँ,’’ मॉं ने कहा।
‘‘मॉं, वह व्यापारी भले आदमी जैसा नहीं लगता ! उद्दण्ड मालूम होता है! इस व्यापारी का कण्ठ देखो न, कैसा सौम्य मालूम होता है!’’ बेटी ने कहा।
इस पर मॉं ने बोधिसत्व को घर के भीतर बुलाया और वह पात्र उसके हाथ थमा दिया। बोधिसत्व ने उस पात्र को देखते ही समझ लिया कि वह सोने का पात्र है । बोला-‘‘बहन, इस पात्र का मूल्य एक लाख मुद्राओं के बराबर है। इसके मूल्य की चीज़ें मेरे पास नहीं हैं।’’
‘‘बेटा, एक और व्यापारी इसे कौड़ी के बराबर का भी नहीं, बताकर चला गया है। शायद यह सोने का हो, हम क्या जानें? तुम इसके बदले में कुछ दे जाओ।’’ बूढ़ी ने कहा।
बोधिसत्व ने अपनी थैली से पॉंच सौ चांदी के सिक्के और पॉंच सौ चांदी के सिक्कों के मूल्य के बर्तन उस औरत के हाथ सौंप दिया । तब कहा- ‘‘बहन, आठ चांदी के सिक्के, थैली और तराजू को छोड़ बाक़ी सारी चीज़ें व सिक्के तुम्हें सौंप देता हूँ, ले लो।’’ फिर वह सोने का पात्र लेकर चला गया। बोधिसत्व ने अपने पास आठ चांदी के सिक्के नदी को पार करने के लिए रखे थे ।
इसके बाद कंजूस व्यापारी फिर उन औरतों के पास पहुँचा और बड़ी दया व त्याग करनेवाले के स्वर में बोला-‘‘सुनो, वह पुराना पात्र देकर इनमें से कोई एक चीज़ ले लो।’’ बूढ़ी औरत का क्रोध उमड़ पड़ा। उसने उस कंजूस व्यापारी से कहा-‘‘भाई, तुमने तो एक लाख मुद्राओं के मूल्य के बर्तन को एक कौड़ी के बराबर भी नहीं बताया। एक और धर्मात्मा ने आकर इसके बदले में एक हज़ार मुद्राओं का मूल्य चुकाया और उसे ले गया है।’’
यह सुनते ही कंजूस का दिमाग ख़राब हो गया । ‘‘क्या एक लाख मुद्राओं के मूल्य के बर्तन को उसने हड़प लिया है? और मुझे इतना भारी नुक़सान पहुँचा दिया है?’’ यों कहते वह आवेश में आ गया। वह रोते हुए अपने माल के साथ मुद्राओं को भी छोड़कर तराजू हाथ में ले नदी के तट की ओर दौड़ पड़ा। उसके वस्त्र भी छूट गये थे। नदी तट पर पहुँचकर उसने देखा कि बोधिसत्व नौका में नदी को पार कर रहा है।
कंजूस ने नौका को वापस लाने को पुकारा, पर बोधिसत्व ने मना किया। इस पर कंजूस का क्रोध और बढ़ गया। उसका कलेजा तेजी के साथ धड़कने लगा। उसके मुँह से खून निकल आया। अधिक द्वेष के कारण उसका कलेजा फट गया और उस कंजूस व्यापारी ने वहीं पर दम तोड़ दिया। इसके बाद बोधिसत्व ने दान-पुण्य करते हुए अपना शेष जीवन बिताया।
No comments:
Post a Comment