Thursday, June 30, 2011

असली रहस्य

राम पचास साल की उम्र का किसान था। श्रृंगवर गाँव में ही नहीं, अड़ोस-पड़ोस के गाँवों में भी उसे बड़ा ही अ़क्लमंद और विवेकी कहते थे। जब वह बीस साल का था, इस गाँव में खाली हाथ आया था। उस गाँव में आकर उसने दस एकड़ की उपजाऊ भूमि व कितनी ही संपत्ति कमायी।
एक दिन राम गाँव के तालाब के बांध पर के बरगद के वृक्ष के नीचे बैठकर तैरते हुए बतखों और तालाब के पानी पर उड़ते हुए बगुलों को देख कर मज़ा ले कहा था। उस समय दो युवक वहाँ आये और उसके पास बैठ गये।
थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद एक युवक ने उससे पूछा, ‘‘चाचाजी, आपसे एक सवाल पूछना है।''
राम ने मुस्कुराते हए कहा, ‘‘ज़रूर पूछो। बड़ों से सवाल करके जानने की उम्र यही तो है।''
‘‘चाचाजी, लोग कहा करते हैं कि जब आप इस गाँव में आये थे, तब खाली हाथ आये थे । आपके पास कुछ भी नहीं था। परंतु अब गाँव के संपन्न लोगों में से आप एक हैं। इतनी जायदाद आपने कैसे कमायी? इतने संपन्न कैसे हुए? इसके पीछे जो असली रहस्य है, वह है क्या? उस रहस्य को हमें बतायें।''
बडे ही प्यार से युवक की पीठ थपथपाते हुए राम ने कहा, ‘‘बेटे, सहनशक्ति, परिश्रम, ईमानदारी, कौशल, ये ही असली रहस्य हैं। संपत्ति कमाने के लिए संक्षिप्त रास्ते नहीं होते।'' कहते हुए वह ज़ोर से हँस पड़ा।

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