
छोटा व्यापारी नारायण किराने की दुकान से अपनी जीविका चला रहा था। उसके घर के बग़ल में एक खाली जगह थी। उस जगह का मालिक उस जगह को लेकर कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाता था। इस वजह से गाँव का सारा कूड़ा-करकट वहाँ जमा हो जाता था। गाँव के लोग अपने घरों का कचरा वहाँ फेंक जाते थे। नारायण भी किसी से झगड़ा मोल लेने को तैयार नहीं था, क्योंकि वह उसकी जगह नहीं थी। जब मालिक ही चुप तो वह भला क्या कहे?
एक दिन नारायण का साला उसे और अपनी दीदी को देखने उसके घर आया। बातों-बातों में दीदी ने बगल की खाली जगह की बात उठायी और भाई से कहा, ‘‘कम से कम तुम ही सही, बहनोईजी को समझाना। मैं बहुत ज़ोर दे रही हूँ, लेकिन तुम्हारे बहनोई घर बदलने के लिए तैयार नहीं। उनसे कहते-कहते थक गयी हूँ। एक तरफ किराये की दुकान के खाद्य पदार्थों पर मक्खियाँ भिनभिना रही हैं, दूसरी तरफ़ कूड़े-करकट के कारण बदबू आ रही है। जीना मुश्किल हो गया है। इस ज़मीन को खरीदने के लिए भी कोई तैयार नहीं है। यही सिलसिला जारी रहा तो बच्चे अवश्य ही बीमार पड़ जायेंगे। भगवान ही उन्हें बचा सकता है।'' बेचारी रोती हुई बोली।
नारायण के साले से दीदी का दुख देखा नहीं गया। उसने ठान लिया कि कोई रास्ता ढूँढ निकालना है।
नारायण के साले ने कहा, ‘‘इस विषय में गाँव के प्रमुखों से बात की जा सकती है।''
‘‘हमने यह भी किया, पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। सब चुप्पी साधे बैठे हैं'', दीदी बोली।
‘‘ऐसी स्थिति में कर भी क्या सकते हैं। भगवान पर छोड़ दो। वही कोई रास्ता निकालेंगे।'' नारायण के साले ने भी अपनी लाचारी व्यक्त की और चला गया।

तीसरे दिन दुपहर को पास ही के गाँव की एक बूढ़िया ने आश्चर्य-भरे स्वर में गाँववालों से कहा, ��उस जगह पर नीम के तले विनायक आसीन हैं।�� इस विचित्र दृश्य को पूरे गाँववाले देखने आने लगे। इतने में दूध बेचनेवाली लक्ष्मी ने उस पेड़ के चारों ओर साफ किया और पानी छिड़का। साथ ही वहाँ रंगोली भी सजायी। बगल में ही रहनेवाली सुगुणा नारियल, कुंकुम व हल्दी ले आयी और पूजा करने लगी। अब वहाँ अगरबत्तियों व फूलों की सुगंध फैलने लगी।
उस दिन से नारायण के व्यापार ने भी ज़ोर पकड़ा। कपूर और नारियलों की बिक्री बहुत बढ़ गयी।
दो हफ्तों के बाद नारायण का साला जब वहाँ आया तब उसकी दीदी ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, ��तुमने जो कहा, सच निकला। भगवान ने हमारी सुन ली।��
नारायण भी तभी भोजन करने दुकान से आया था। उसने पत्नी की बात सुन ली थी। इसलिए पूछा, ��तुम्हारे भाई ने क्या कहा था?��
��कहा था, भगवान पर छोड़ दो। वही इस समस्या का परिष्कार ढूँढ़ेगा और हुआ भी यही।��
नारायण की पत्नी ने कहा। नारायण ने साले से कहा, ��क्या सचमुच ही विनायक वहाँ प्रकट हुए?��
��हमारे लिए यह जानना ज़रूरी नहीं है। बस, इतना बता दो कि अब आराम से रहते हो या नहीं?�� साले ने कहा। नारायण ने कहा, ��इसमें कोई शक नहीं कि अब हम यहाँ आराम से रह रहे हैं। पर अब भी मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि उस पेड़ के नीचे विनायक प्रकट हुए हैं।��
��हाँ बहनोईजी, मैंने ही पेड़ के तने में विनायक की मूर्ति रखी। आप लोग उस कचरे की वजह से तंग आ गये, इसीलिए मैंने यह उपाय सोचा। हमारे लोग मंदिर को अपवित्र बनाने का साहस नहीं करेंगे। अब आपके अगल-बग़ल में सफाई ही सफ़ाई है। मैं नहीं समझता कि ऐसा करके मैंने लोगों को धोखा दिया। एक कहावत भी है, जहाँ उपाय नहीं वहाँ अपाय है।��
साले का उपाय सफल हुआ, इसपर नारायण ने उसकी बड़ी तारीफ़ की।

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