Thursday, June 30, 2011

समझदारी

विद्याधर चोलसिंहापुर राज्य का शासक था। महारानी कौसल्या न्याय निर्णय में दक्ष थी। विषय के परिशीलन में, वास्तविकताओं को समझने में उसकी प्रज्ञा असाधारण थी। राजा ने अपनी पत्नी की समझदारी को जान लिया था, इसलिए शासन को चलाने के विषयों में उसकी सहायता अवश्य लिया करता था। विशेषतया न्याय निर्णय करते समय उसकी सलाह लिये बिना कोई निर्णय स्वयं लेता नहीं था। अपनी अनुपस्थिति में न्याय निर्णय करना पड़े तो वह प्रधान मंत्री को यह आदेश देकर जाता था कि वे ऐसे समय पर महारानी की सलाह अवश्य लें।
न्याय निर्णय करने के बाद जो लोग छोटी-मोटी चोरियाँ करते थे, उन्हें जेल की सज़ा भुगतनी नहीं पड़ती थी। उनसे प्रजा के लिए उपयोगी काम जैसे तालाबों को खोदना, नहरों में जमी मिट्टी को बाहर निकालना, पौधों को रोपना आदि काम उन अपराधियों से करवाती थी। ऐसा करने से जनता का भला होता था और साथ ही अपराधियों में अपराध करने का भाव दूर हो जाता था और उनमें मानसिक परिवर्तन होता था।
राज्य में अब शांति थी। यों कुछ साल गुज़र गये। एक दिन भोजन करते समय रानी ने देखा कि राजा परेशान हैं और उनके मुख पर दुख छाया हुआ है। महारानी ने यह भांप लिया और इसका कारण पूछा।
‘‘राज्य में सामान्य प्रजा के लिए दैनिक उपयोग की आवश्यक वस्तुओं की कीमत बढ़ गयी है। विशेषकर अनाज की कीमत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इस वजह से प्रजा को कष्टों का सामना करना पड़ रहा है।'' राजा ने कहा।

‘‘हाँ, प्रभु, अपनी परिचारिकाओं से मैंने भी यही बात सुनी। इसके मूल कारणों को हमें जानना होगा और तुरंत आवश्यक कार्रवाई करनी होगी। अन्यथा लोगों के कष्ट बढ़ते ही जायेंगे। आपके शासन पर धब्बा लग जायेगा और असंतोष की मात्रा भी बढ़ेगी।''
‘‘तुमने ठीक कहा। असली कारणों का पता चल नहीं रहा है। हम जान नहीं पा रहे हैं कि इसकी वजह क्या है। समझ में नहीं आ रहा है कि इस समस्या का परिष्कार कैसे हो?'' चिंतित राजा ने कहा।
‘‘आहार धान्यों की कमी के दो ही कारण हो सकते हैं। अच्छी फ़सलों का न होना या व्यापारियों द्वारा ही उस धान्य को छिपाकर उनकी कीमत बढ़ा देना। अब आप ही को बताना होगा कि कीमतों की वृद्धि का इन कारणों में से कौन-सा कारण सही है?'' रानी ने पूछा।
‘‘पिछले तीन सालों से समय पर वर्षा हो रही है, जिसके कारण ब़ड़ी मात्रा में फसलें भी हो रही हैं। अब हमें अपना ध्यान व्यापारियों पर केंद्रित करना होगा।'' राजा ने कहा।
दूसरे ही दिन राजा ने मंत्रियों को बुलाया और व्यापारियों की गतिविधियों पर गुप्तचरों को लगाने का आदेश दिया। तीन ही दिनों में असली विषय का पता लग गया। चंद लोभी व्यापारी माल को छिपा रहे हैं और कृत्रिम कमी की सृष्टि करते हुए अधिक दामों पर माल बेच रहे हैं। किसी को संदेह न हो, इसके लिए वे इस माल को व्यापारिक गोदामों में न छिपाकर कहीं और छिपा रहे हैं। अब गुप्तचरों ने संदेहास्पद घरों, भवनों पर छाया मारा। फिर भी उन्हें माल नहीं मिला।
नगर से थोड़ी दूरी पर कमला और विमला नामक दो स्त्रियाँ अलग-अलग जगहों पर सरायें चला रही थीं । मुसाफिरों को खाना खिलाकर उनसे पैसे वसूल करती थीं । अपनी सरायों के कुछ कमरों में बेइमान व्यापारियों के माल को छिपाकर उनसे अधिक धन भी कमाती थीं।
एक दिन सवेरे दो सिपाही कमला के पास आये और बोले, ‘‘महारानी ने तुम्हें महल में ले आने की आज्ञा दी है।'' कमला डरती हुई उनके साथ राजभवन गयी और शाम को लौट आयी।

विमला बेचैनी से उसके आने की प्रतीक्षा कर रही थी। उसके आते ही उसने उससे पूछा, ‘‘क्या बात है कमला, सवेरे ही चली गयी और अंधेरा छा जाने तक क्या राजभवन में ही रही? बताओ तो सही, महारानी ने तुम्हें क्यों बुलवाया? वहाँ क्या हुआ?'' यों सवाल पर सवाल पूछती रही।
कमला ने हँसते हुए कहा, ‘‘महारानी का समय बीत नहीं रहा है। किसी से बात किये बिना वे रह नहीं सकती। इधर-उधर की बातें जानने के लिए मुझे बुला लिया। सराय की मालकिन होने के नाते मुझे बहुत-सी बातें मालूम होती रहती हैं न। इसीलिए मुझे बुलवाया। महारानी ने मुझे आदेश भी दिया कि हर दिन एक सप्ताह तक वहाँ आऊँ। मध्याह्न का भोजन भी महारानी के साथ ही करना है।'' कहती हुई वह वहाँ से तेज़ी से चली गयी, जिससे विमला और कोई सवाल न पूछे।
विमला ने देखा कि दूसरे दिन भी सवेरे कमला घर से बाहर चली गयी। उसने यह बात पति से बतायी।
उसका पति चकित होकर बोला, ‘‘कहीं कमला महारानी की सहेली तो नहीं बन गयी? मध्याह्न का भोजन भी महारानी के साथ ही करती है। यह कोई मामूली बात नहीं है। उससे प्यार से बात करना, अधिक आदर दिखाना, जिससे वह तुम्हें भी अपने साथ ले जाए। महारानी की सहेली बन जाओगी तो समझना, हमारा भाग्य खुल गया।''
‘‘तुमने ठीक कहा। ऐसा हो जाए तो कोई भी अफ़सर यहाँ आने का साहस ही नहीं करेगा'', विमला ने बड़े ही आनंद के साथ कहा।
‘‘तुम मूँग के लड्डू बनाती रहती हो। उनमें से थोड़े-बहुत कमला को भी देते रहना। उससे कहना कि वह महारानी से तुम्हारा परिचय कराये। फिर तुम हर दिन वहाँ आ-जा सकती हो।'' उसके पति ने समझाया।
‘‘क्या मैं इतना भी नहीं जानती! क्या मुझे बुद्धू समझ रखा है?'' विमला थोड़ी तेज तर्रार होकर बोली। फिर उस दिन शाम को मूँग के लड्डू लेकर कमला के घर गयी। उसने उसकी खूब तारीफ़ की और मूँग के लड्डू देकर आयी।
परंतु, दूसरे ही दिन कुछ सिपाही दोनों की सरायों में आये और वहाँ छिपाया हुआ आहार धान्य ले गये। उस समय व्यापारी भी वहाँ मौजूद थे, पर वे उन्हें रोक नहीं सके।

विमला के पति ने सिपाहियों के जाते ही कहा, ‘‘सिपाहियों को शायद यह मालूम नहीं कि कमला महारानी की सहेली है।'' फिर थोड़ी देर तक सोचने के बाद कहा, ‘‘व्यापारियों ने सिपाहियों को नहीं रोका, यह एक प्रकार से अच्छा ही हुआ। थोड़ी-सी अक्ल का इस्तेमाल करूँ तो इस परिस्थिति को अपने अनुकूल बना सकता हूँ।''
विमला ने पूछा, ‘‘वह कैसे?''
‘‘तुम अभी महारानी के पास चली जाना। उनसे कहना कि सिपाही जो आहार धान्य ले गये थे, वे व्यापारियों के नहीं हैं, बल्कि हमारे अपने हैं। वहाँ उपस्थित कमला भी हमारा समर्थन करेगी। तब वह माल हमारा हो जायेगा'', विमला के पति ने कहा।
विमला को पति का कहा सही लगा। वह तुरंत रानी से मिलने गयी। पहरेदारों से उसने कहा, ‘‘महारानी की सहेली कमला के घर के सामने ही मेरा भी घर है। महारानी से फ़ौरन मिलना है।''
पहरेदार उसे महारानी के पास ले गये। विमला ने महारानी को अपना परिचय दिया और प्रणाम किया। तब महारानी ने कहा, ‘‘अरी विमला, इतनी जल्दी आ गयी हो तुम! मैं ही तुम्हें ख़बर भेजना चाहती थी। जो भी हो, अच्छा हुआ, तुम खुद आ गयी। वहाँ चार बोरों का अनाज है। उसे कूटो और चावल, भूसा, चोकर और चूनी को अलग-अलग करो। आज मुझे उसे अनाथालय भेजना है। जिन खाद्य पदार्थों को न्यायसंगत दाम पर प्राप्त होना है, उन्हें छिपाने में तुमने मदद पहुँचायी और ऐसा करके बहुत बड़ी ग़लती की। तुम जैसी नारियों को दंड देने की जिम्मेदारी महाराज ने मेरे सुपुर्द की। स्थिति अभी सुधर रही है। तुम्हारी ही तरह कुछ और लोग भी इसी क म पर लगे हुए हैं। एक हफ्ते तक तुम्हें आना होगा, और यह काम पूरा करके जाना होगा।''
विमला यह सुनकर निश्चेष्ट रह गयी। एक सिपाही ने उसके हाथ में मूसल थमा दिया और उसे एक विशाल कमरे में ले गया। वहाँ कमला के साथ-साथ और तीन स्त्रियाँ भी धान कूट रही थीं । रानी भी समझदारी में सेवा और सुधार के मिल जाने से न्याय निर्णय की त्रिवेणी बन गई।




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