
करीबन एक हजार साल पहले शेख अब्दुल क़ादिर अल-जिलानी नाम के एक भारी सन्त पैदा हुए थे। जब वे केवल 8 वर्ष के थे, उन्होंने एक दिन एक गाय को यह कहते हुए सुना, ‘‘चरागाह के मैदान में यहाँ तुम क्या कर रहे हो? इसके लिए तुम्हें नहीं बनाया गया है।'' वह डरकर तुरन्त दौड़ता हुआ अपने घर चला गया और अपने घर की छत पर चढ़ गया। वहाँ से उन्होंने देखा कि भारी संख्या में लोग हजारों मील दूर मक्का के पास अरफात पहाड़ से हज करके लौट रहे हैं।
अब्दुल क़ादिर के मन में जिज्ञासा पैदा हो गई। वह माँ के पास गया और बगदाद जाकर ज्ञान की खोज करने की स्वीकृति माँगी। उसकी माँ ने भगवान का आदेश सुना और तुरन्त स्वीकृति दे दी। उसने उसे सोने के 40 सिक्के भी दिये जो पिता के दाय से प्राप्त उसका हिस्सा था। माँ ने उन सिक्कों को उसके कोट के अस्तर के अन्दर सी दिया। उसने बेटे को विदा करते समय कहा, ‘‘ओ मेरे बेटे! तुम जा रहे हो। मैंने अल्लाह के लिए अपने को तुम्हारे मोह से मुक्त कर लिया है क्योंकि मैं जानती हूँ कि कयामत के दिन तक मैं तुम्हारा मुखड़ा फिर नहीं देख पाऊँगी। लेकिन अपनी माँ से एक सलाह लेते जा। भले ही प्राण चले जायें, तब भी तुम्हें हमेशा सत्य को ही महसूस करना चाहिये, सत्य वचन ही बोलना चाहिये और सत्य का ही प्रचार करना चाहिये।''
अब्दुल क़ादिर बगदाद जानेवाले एक कारवाँ के साथ यात्रा पर चल पड़ा। मार्ग में एक बीहड़ मैदान पार करते समय कारवाँ पर कुछ घुड़सवार डाकुओं ने हमला कर दिया और मुसाफिरों को वे लूटने लगे। किसी ने अब्दुल क़ादिर की ओर ध्यान नहीं दिया। आखिर एक डाकू ने उसे देखकर कहा, ‘‘तुम एक गरीब भिखारी लगते हो। फिर भी, क्या तुम्हारे पास कुछ माल है?''
सरदार की आँखों में आँसू छलक पड़े। उसने आँसुओं को पोंछते हुए कहा, ��तुमने अपनी महान माता की सलाह का दृढ़ता से पालन किया है, जबकि हम सब अपने माता-पिता के विश्वास और अल्लाह के वचन को कितने सालों से तोड़ते आ रहे हैं। अब से हमारे प्रायश्चित में तुम हमारे पुरोधा रहोगे।�� सभी डाकुओं ने चोरी छोड़ देने का निश्चय किया और उस दिन से वे नेक और धर्म परायण हो गये। यहाँ संसार ने एक माँ के दिये हुए सत्य से एक महान सन्त शेख अब्दुल क़ादिर अल-जिलानी को जन्म लेते हुए देखा।
��मेरे पास 40 अशर्फियाँ हैं जिन्हें मेरी माँ ने मेरे कोट के अस्तर में काँख के नीचे सी कर रख दी हैं।�� डाकू ने मुस्कुराते हुए सोचा कि यह लड़का मज़ाक कर रहा है। वह उसे छोड़कर चला गया। दूसरे डाकू ने आकर उससे वही सवाल पूछा। अब्दुल क़ादिर का जवाब वही था। उसने भी बालक की बात पर विश्वास नहीं किया और चला गया। कुछ अन्य डाकू उसे सरदार के पास ले गये और बोले, ��यह लड़का देखने में भिखारी लगता है मगर कहता है कि इसके पास 40 अशर्फियाँ हैं। हमलोगों ने सबको लूट लिया है, किन्तु इसे नहीं छुआ है, क्योंकि इसकी बात पर हमें विश्वास ही नहीं हुआ। हो सकता है यह हमें बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा हो।��
सरदार ने भी अब्दुल क़ादिर से वही सवाल पूछा और अब्दुल क़ादिर ने भी वही उत्तर दिया। सरदार ने तब उसके कोट को चीरकर देखा। उसमें सचमुच सोने के 40 सिक्के थे।
सरदार ने चकित होकर बालक से पूछा कि उसने क्यों कबूल किया कि उसके पास सोने के सिक्के हैं। अब्दुल क़ादिर ने कहा, ��मेरी माँ ने हमसे वादा लिया था कि मैं हमेशा प्राण जाने पर भी सत्य का ही पालन करूँगा। यह तो केवल चन्द सिक्कों की बात थी। मैंने उसे वादा किया था कि मैं कभी भी आजीवन उसके विश्वास को नहीं तोडूँगा। इसलिए मैंने सच बता दिया।��

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