Thursday, June 30, 2011

मूकाभिभूत राजा

एक समय की बात है। एक राजा के पास अनन्त सम्पति थी स्वर्ण या रजत मुद्राओं या मूल्यवान रत्नों के रूप में नहीं, बल्कि मवेशियों, हाथियों, घोड़ों, गधों तथा ऊँटों के रूप में।
एक बार उसने अपने सभी परिचारकों और सेवकों को एक निश्चित दिन और समय पर एकत्र होने का आदेश दिया। उसने इसका उद्देश्य किसी को नहीं बताया, इसलिए वे आपस में कानाफूसी कर अनुमान लगाने लगे।
निर्धारित दिन और समय पर राजा के महल के सामने आंगन में सब एकत्र हो गये। राजा ने आकर बिना किसी औपचारिकता के पूछा, ‘‘क्या हरेक व्यक्ति उपस्थित है?'' सब चुपचाप थे।
राजा ने एकत्र समूह पर एक व्यापक दृष्टि डाली और कहा, ‘‘तुम्हारी चुप्पी से मैं अनुमान लगाता हूँ कि कोई अनुपस्थित नहीं है। मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ और तुममें से प्रत्येक से इसका उत्तर चाहता हूँ।''
राजा ने तुरन्त पूछा, ‘‘क्या तुम बता सकते हो कि मेरे मन में क्या है? क्या मेरे मन में कोई चिन्ता या परेशानी है? मैंने यही जानने के लिए तुम सब को यहाँ बुलाया है।'' उसने विस्तार से कुछ नहीं समझाया। ‘‘तुम सब बारी-बारी से आगे आकर अपना उत्तर मुझे बताओ।''
वे सब एक-एक कर राजा के सामने आये और जो भी उत्तर उन्हें ठीक लगा, सबने बताया। राजा ने सिर हिला कर सब के साथ अपनी असहमति प्रकट की। सौभाग्यवश, उसके चेहरे से कोई भाव प्रकट नहीं होता था; यह निश्चय करना कठिन था कि वह क्रोधित, निराश, उदास या कुण्ठित है।

जब सबने अपना-अपना विचार दे दिया, तब राजा ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, ‘‘मुझे दुख है कि मैं किसी के उत्तर के साथ सहमत नहीं हूँ। तुम सब वापस जाकर अपना-अपना काम देखो।''
राजा का एक मात्र मंत्री आंगन के सामने की ड्योढ़ी के कोने से यह सब गतिविधि देख रहा था। राजा ने उसकी ओर देख कर कहा, ‘‘एक ऐसे व्यक्ति की खोज करो जो मेरे मन की बात जानता हो। एक महीने के अन्दर उसे मेरे पास लाओ, नहीं तो नौकरी से तुम्हें निकाल दिया जायेगा।'' यह अनिवार्य आदेश देकर राजा अन्दर चला गया।
मंत्री ने एक हाथ से अपनी ठुड्डी सहलाई और दूसरे हाथ से अपना माथा ठोका। फिर वह घर जाकर लेट गया और छत को निहारने लगा। ‘‘मैं कहाँ जाकर ऐसे व्यक्ति को खोजूं जो राजा के मन को जान सके?'' वह सारा दिन इसी चिन्ता में डूबा रहा। ‘‘मैं कल से उसकी खोज शुरू करूँगा।'' यह सोचकर वह सोने की कोशिश करने लगा।
दूसरे दिन वह जल्दी उठ कर बाहर चला गया। उसने राह में हर मिलनेवाले से अपनी समस्या बताई लेकिन हरेक ने उसे निराश किया। या तो वे अज्ञानी थे या राजा के क्रोध के भय से किसी का नाम बताना नहीं चाहते थे। वह बहुत दिनों तक घूमता रहा, लेकिन उसे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो राजा के मन की बात जान सके। अब राजा के पास जाने में कुछ ही दिन शेष रह गये थे।
मंत्री की भूख और नींद जाती रही। उसने खाना छोड़ दिया और अक्सर वह गहरे विचारों में खोया अपने विस्तर पर बैठा रहता। उसकी पत्नी ने खाने के लिए उससे अनुनय-विनय किया, किन्तु उसने एक कौर भी मुँह में लेने से इनकार कर दिया। उसकी बेटी ने उसकी यह दुर्दशा देखकर पूछा, ‘‘पिता जी, आप क्यों चिन्तित हैं? आप बहुत दुखी लगते हैं। आप खाना क्यों नहीं खा रहे हैं? क्यों नहीं सो रहे हैं? कृपया बताइये।''
मंत्री ने उसकी बातों की परवाह नहीं की। एक दिन उसने स्नान भी नहीं किया। उसकी बेटी और सहन नहीं कर सकी। ‘‘यदि आप स्नान नहीं करेंगे और भोजन नहीं करेंगे तो माँ और मैं दोनों ही खाना नहीं खायेंगी।'' उसने धमकी दी। ‘‘अन्यथा बताइये कि आप की चिन्ता क्या है? हो सकता है मैं कोई समाधान बता सकूँ।''

मंत्री उठ कर बैठ गया। यह पहला मौका था जब किसी ने उसकी समस्या का, जो इतने दिनों से उसे परेशान कर रही थी, समाधान देने का आश्वासन दिया है। उसने तब उसे राजा के आदेश के बारे में बताया और कहा कि कैसे वह अब तक किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में असफल रहा है जो राजा का मन जान सके। ‘‘अब कितने दिन और रह गये हैं पिता जी?'' बेटी ने पूछा।
‘‘एक या दो दिन शायद'', मंत्री ने कहा।
‘‘ठीक-ठीक तारीख बता दीजिये और मैं ठीक समय पर उस व्यक्ति को ले आऊँगी।'' उसकी बेटी ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा। ‘‘अब आप स्नान कर लीजिये और हमलोगों के साथ भोजन कीजिये।'' बेटी ने पिता को उठने के लिए बाध्य कर दिया और लगभग धकिया कर कमरे से बाहर कर दिया। भोजन करते समय मंत्री ने बेटी से कहा, ‘‘मुझे राजा के पास परसों जाना है। तुम उस व्यक्ति को कब लाओगी?'' उसने चिन्तित होकर पूछा।
‘‘परसों! चिन्ता न करें, पिता जी'', बेटी ने निश्चय के साथ कहा। ‘‘मैं उससे पहले ही उस व्यक्ति को ले आऊँगी और वह परसों आप के साथ जायेगा।''
लड़की कहीं नहीं गई। उसने उस लड़के के बारे में सोचा जो उसकी भेड़ें और बकरियॉं चराता था। उसके अपने तीन भेड़ थे। वह बहरा और गूँगा दोनों था। लड़की ने उसे बुला कर समझाया और उसे खाना देकर कहा कि उसे उसके पिता के साथ राजा से मिलने के लिए जाना है। उसने सहमति में सिर हिला दिया।
बेटी ने पिता को राजा के पास जाने के दिन तक दुविधा में रखा। जब चरवाहा मंत्री के पास लाया गया तो वह चकित और स्तब्ध रह गया। ‘‘लेकिन यह बहरा और गूँगा है, बेटी,'' मंत्री ने विरोध किया।
‘‘आप निश्चिंत होकर इसे ले जाइये'', उसकी बेटी ने विश्वास दिलाया, ‘‘राजा के मन में क्या है, यह जान जायेगा।''
मंत्री को अपनी बेटी पर बहुत विश्वास था, इसलिए वह चरवाहे को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गया। ‘‘ओ गूँगे, चल मेरे साथ!'' दोनों राजा के महल की ओर चल पड़े।


राजा, मंत्री और उस व्यक्ति को देखने के लिए, जो राजा को उत्तर देगा, भीड़ एकत्र हो गई। मंत्री के आगमन की सूचना पाकर राजा आया और अपने सिंहासन पर बैठ गया। मंत्री ने झुक कर राजा का अभिवादन किया। चरवाहे ने भी वैसे ही राजा का अभिवादन किया। राजा कुछ नहीं बोला। उसने केवल अपना हाथ उठा कर एक उंगली दिखाई। लड़के ने दो उंगलियाँ दिखा कर उत्तर दिया। राजा ने मुस्कुरा कर तीन उंगलियाँ दिखाईं। चरवाहे ने अपना सिर हिलाते हुए फिर दो उंगलियाँ दिखाईं।
राजा बहुत प्रसन्न हो गया। वह मंत्री की ओर मुड़ा। ‘‘तुम एक श्रेष्ठ व्यक्ति को लाये हो। उसने मुझे बहुत ठीक उत्तर दिया। मैं तुम्हारी प्रशंसा करता हूँ।''
‘‘धन्यवाद महाराज'', मंत्री ने एक बार फिर झुक कर कहा। ‘‘आप यदि बुरा न मानें तो क्या आप हमें और यहॉं एकत्र लोगों को समझा देंगे कि आपने क्या प्रश्न किया और उसने क्या उत्तर दिया?''
‘‘यह बहुत आसान था, मंत्री!'' राजा ने कहा। ‘‘जब मैंने एक उंगली दिखाई तो मैंने पूछा कि क्या मैं ही एकमात्र यहाँ का स्वामी हूँ। तब उसने दो उंगलियाँ दिखा कर यह कहा कि नहीं, मैं एक मात्र स्वामी नहीं हूँ, दूसरा स्वामी परमात्मा है। जब मैंने तीन उंगलियाँ दिखा कर यह पूछा कि क्या मेरे राज्य पर किसी तीसरी शक्ति का भी अधिकार है, तब उसने दो उंगलियाँ फिर दिखाईं और पुष्टि की कि हमारे राज्य पर केवल मेरा और परमात्मा का ही अधिकार है, किसी अन्य का नहीं। इस तरह उसने ठीक समझा कि मेरे मन में क्या है!''
राजा ने मंत्री और चरवाहे को अलग-अलग मुद्राओं की थैली देकर बिदा किया। घर पहुँच कर मंत्री ने अपनी बेटी की मदद से चरवाहे से पूछा कि उसने राजा के मन की बात को कैसे जान लिया। उस गूंगे ने समझाया कि ‘‘राजा ने यह पूछा था कि क्या मैं एक भेड़ उसे बेच सकता हूँ। मैंने उसे कहा कि मैं उसे दो भेड़ तक बेच सकता हूँ, क्योंकि वह राजा है। लेकिन जब राजा ने कहा कि वह मेरे तीनों भेड़ खरीद सकता है तब मैंने सिर हिला कर कहा कि नहीं, मैं केवल दो ही भेड़ बेच सकता हूँ!''
मंत्री और उसकी बेटी ठठा कर हँस पड़े।

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