
कामेश ने बहुत सोचा, पर उसकी समझ में नहीं आया कि रामेश उससे अधिक सदा संतुष्ट कैसे रह पाता है। जायदाद में, अ़क्लमंदी में, प्रसिद्धि में दोनों समान हैं, फिर भी यह अंतर उसे बहुत ही परेशान कर रहा था। ईर्ष्या के मारे वह जला जा रहा था। किसी भी हालत में, कैसे भी हो, उसकी संतुष्टि को दूर करने के लिए वह उपाय सोचने लगा। ऐसे समय पर हिमालय से एक जड़योगी उसके गाँव आये।
वे लोगों के बीच में बहुत ही कम आते थे। वे किसी भी समस्या को सुलझाने में निष्णात थे, किसी भी बीमारी को वे जड़ी-बूटी के द्वारा दूर करने में सिद्धहस्त थे और उन्हें जो पसंद आते थे, उन्हें वरदान भी देते थे। सबका मानना था कि वे जो भी करेंगे, उससे परोपकार ही होगा। कामेश ने जड़योगी को सादर अपने घर बुलाया और बड़े पैमाने पर उनका आतिथ्य किया। वे प्रसन्न हुए और बोले, ‘‘ऐसा वरदान माँगो, जिससे तुम्हारा लाभ हो, पर उससे किसी को हानि न पहुँचे।''
‘‘हर विषय में मैं पड़ोसी रामेश से बड़ा कहलाऊँ। ऐसा वरदान प्रदान कीजिये।'' कामेश ने मीगाँ।
जड़योगी ने कहा, ‘‘तुम्हारी इच्छा ख़तरनाक है। रामेश की एक आँख चली जाए तो तुम्हारी दो आँखें चली जायेंगी। उसे हज़ार अशर्फियों की क्षति पहुँचे तो तुम दो हज़ार अशर्फियाँ खो बैठोगे। मैं ऐसा वरदान नहीं देता।''
‘‘आपने मेरा उद्देश्य नहीं समझा। धन में, पहचान में, प्रसिद्धि में रामेश से मैं बड़ा बनूँ, कहलाऊँ, यही मेरा उद्देश्य है। इसके लिए कोई मार्ग सुझाइये'', कामेश ने कहा।
‘‘उसे हज़ार अशर्फियों का नुकसान हो और तुम्हें सिर्फ सौ अशर्फियों की हानि हो तो यह भी तो अनुचित है। इससे तुम्हारा भला नहीं होगा। अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी इच्छा का फल अच्छा हो तो रामेश को सदा सुखी तथा हरा-भरा रहना होगा। क्या यह तुम स्वीकार करते हो?''

‘धन में, प्रसिद्धि में अगर मैं बड़ा बन जाऊँ और रामेश सदा संतुष्ट रहे तो इसमें मेरा क्या जाता है। उसे संतुष्ट रहने दो,' यों सोचकर उसने अपनी सहमति दे दी।
तब जड़योगी ने कहा, ‘‘तुम्हारी मॉंग में स्वार्थ भरा हुआ है, पर इसके साथ परोपकार भी जुड़ा हुआ है, इसलिए तुम्हारी मॉंग प्रशंसनीय है। तुम धन में, प्रसिद्धि में रामेश की तुलना में बड़ा बने रहो, यह वरदान तुम्हें देता हूँ। परंतु एक बात याद रखना, एक बार ही सही, इसे नहीं चाहोगे तो मेरा वरदान शाश्वत रूप से रद्द हो जायेगा।''
दूसरे दिन सवेरे जब रामेश घर के पिछवाड़े में ज़मीन खोद रहा था तब उसे तांबे का एक लोटा मिला। उसमें अगली पीढ़ियों के लिए छिपायी हुई पूर्वजों की दस हज़ार अशर्फियाँ थीं। यह विषय जानकर गाँव के लोगों ने उसकी प्रशंसा की। कामेश को लगा कि यह जड़योगी के वरदान के कारण ही संभव हुआ। पर, उस दिन की शाम को ही कामेश को अपने खेत में पूर्वजों की छिपायी हुई निधि मिली। वह दस लाख अशर्फियों की निधि थी। ग्रमीणों ने यह जानकर उससे कहा, ‘‘भाग्य के विषय में तुम रामेश से बढ़कर हो। इस खुशी के अवसर पर हम सबको एक दावत देनी होगी।''

कामेश ने लोगों की इस माँग को स्वीकार किया और कहा, ‘‘आपमें से कोई इस दावत का प्रबंध कीजिये। इसके लिए जो भी खर्च होगा, मैं दूँगा।''
रामेश भी बड़े ही उत्साह के साथ उस दावत में भाग लेने आया। कामेश ने समझ लिया कि उसके आने में कोई ईर्ष्या और कपट नहीं है तो वह दुखी हो उठा। उसके मन को ठेस पहुँची।
थोड़े और दिनों के बाद रामेश के एक रिश्तेदार की मौत के बाद उसकी वसीयत के अनुसार उससे उसे चार एकड का खेत प्राप्त हुआ तो कामेश को दस एकड़ की ज़मीन प्राप्त हुई।
इस बार रामेश ने स्वयं कामेश को दावत पर आने के लिए निमंत्रण दिया। इस कारण कामेश ने क्रोध में आकर रामेश से कह दिया, ‘‘तुम्हें फायदा अवश्य हुआ है, लेकिन मुझे तुमसे अधिक लाभ हुआ है, इसपर तुम्हें दुःख होना चाहिए, लेकिन तुम खुश क्यों हो रहे हो?''
रामेश ने हँसकर कहा, ‘‘मुझे लाभ पहुँचे तो वह आनंद मेरे लिए तात्कालिक है, कुछ समय तक ही सीमित है। फिर इसके बाद मैं वह खुशी भुला देता हूँ।
‘‘मैं सदा चाहता हूँ, नित्य संतोष। हर दिन थोड़े ही मुझे लाभ होता रहता है। ऐसे तो गॉंव में किसी न किसी को लाभ पहुँचता ही रहता है। ऐसे लोगों को देखकर संतुष्ट होना चाहिये। यह आदत डालें तो हमें हर दिन संतोष होगा, नित्य संतोषी होंगे।''
कामेश चकित रह गया। उसे बड़ा लाभ हुआ और रामेश को कम, फिर भी उसे रामेश के छोटे-से लाभ पर दुख हुआ, मन में जलन हुई। रामेश तो कहता है कि दूसरों के आनंद को भी अपना आनंद मानना चाहिये, इसकी आदत डालनी चाहिये। जड़योगी ने उसे जो वरदान दिया, उससे रामेश का संतोष दूर नहीं हुआ, पर उसे होनेवाले छोटे-मोटे लाभ उसके मन को तड़पा देते हैं। उसने तत्काल चाहा कि जड़योगी का वरदान निष्फल हो, काम न करे।
ऐसे वरदान की प्राप्ति के बाद भी कामेश, रामेश को जीत नहीं पाया, वह पुनः हार गया।

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