Thursday, June 30, 2011

ध्रुवीकरण पत्र

जमींदार बजरंग राय स्वयं व्यक्तियों के व्यवहार -ज्ञान तथा उनकी ईमानदारी के बारे में तहक़ीक़ात करते थे और उन्हें ग्रामाधिकारी के पद पर नियुक्त करते थे। उन्हें समाचार मिलने लगे कि इनमें से चंद ग्रामाधिकारी घूसखोर हैं। एक दिन पहले उन्हें गुप्तचरों से समाचार मिला कि ग्रामाधिकारी नवीनचंद्र अव्वल दर्जे का घूसखोर है। उन्होंने तुरंत दिवान को बुलवाया और हुक्म दिया कि उस घूसखोर के बारे में विवरण इकठ्ठे किये जायें। पूरा विवरण मिल चुकने के बाद दिवान को इसमें संदेह नहीं रह गया कि नवीनचंद्र बड़ा ही घूसखोर है।
दिवान ने एक हफ्ते के अंदर ही उसका तबादला समस्तपुर में कर दिया। समस्तपुर वह गाँव है, जहाँ लोग आपस में नहीं झगड़ते, चोरियाँ नहीं होतीं। जहाँ सदा शांति छायी रहती है। दिवान ने सोचा कि ऐसे प्रशांत गाँव में भेजने से नवीनचंद्र को घूस लेने का कोई मौक़ा ही नहीं मिलेगा।
महीना बीत गया, पर कोई भी शिकायत लेकर नवीनचंद्र के पास नहीं आया। इससे वह बड़ा ही दुखी हुआ। बिना घूस लिये उससे रहा नहीं गया।
एक दिन वह सबेरे खिडकी के पास खड़े होकर गली से होते हुए आने जानेवालों को देख रहा था। उसने देखा कि दो आदमी ऊँची आवाज़ में वाद-विवाद करते हुए गुज़र रहे हैं। नवीनचंद्र ने चिल्लाकर उन्हें बुलाया और उनसे पूछा, ‘‘बीच रास्ते में किस बात को लेकर तुम दोनों आपस में झगड़ रहे हो?'' उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, ‘‘महोदय, हम दोनों जिगरी दोस्त हैं। हम चर्चा कर रहे थे कि इस साल उड़द दाल का दाम अधिक होगा या मूँग दाल का।''
‘‘ठीक है, दोनों दस-दस रुपये दो। तुम दोनों दोस्त हो, इसका ध्रुवीकरण पत्र दूँगा।'' नवीनचंद्र ने कहा।


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