मैं एक खुशनुमा सपना से जगी ही थी कि एक और सुस्त शनिवार सामने आ गया। उस सपने में हर व्यक्ति सुस्त था। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया सिवा इसके कि यह कुछ-कुछ हैरी, हैरी पॉटर के बारे में था।
बिस्तर में ही पड़ी-पड़ी मैं एक आदर्श शनिवार की योजना पर विचार करने लगी।
मैं बिस्तर से उठ कर बाथरूम में गई और जैसे ही टूथपेस्ट उठायी कि उसमें एक बेढंगा चिट चिपका दिखाई पड़ा। इसमें लिखा था, ‘‘श्रद्धा, हम लोग बाहर जा रहे हैं, जरूरी काम है। खाने की मेज़ पर जाओ। मम्मा।’’
मैंने निष्ठापूर्वक आदेश का पालन किया लेकिन यह अचरज के साथ सोच रही थी कि क्या मम्मी मेरे साथ, ‘‘खजाने की खोज’’ या कुछ और खेल रही है। मेज़ पर एक बड़ा चिट्ठा दिखाई पड़ा, जिसे हम चिट नहीं कह सकते। यह दिन भर के घरेलू कामों की सूची थी। यहॉं से हमारी मनोवांछित ग्रीष्म शनिवार की योजना खण्डित होने लगी। पहला काम था वाशिंग मशीन को ऑन करना। मैंने जल्दी-जल्दी सभी कपड़े उसमें ठूँस दिये और मशीन चालू कर दी। सब ठीक ठाक चलने लगा, लेकिन थोड़ी ही देर में मशीन घरघराने लगी और सारा पानी बाहर निकल गया।
पानी निकालने के बाद मैंने एक सहेली को बुलाने के लिए फोन किया। लेकिन अभी बात अधूरी ही थी कि लाइन कट गई और एक विचित्र लेकिन थोड़ी जानी-पहचानी आवाज ने मुझे बालकनी में जाकर चेक करने के लिए कहा। मैंने उस आवाज की परवाह नहीं की और हालांकि मैं डर गई थी फिर भी स्वाभाविक तरीके से रिसिवर को पटक कर रख दिया। लेकिन इस स्वाभाविक क्रिया से एक प्रतिक्रिया हुई। टेलिविजन अपने आप ऑन हो गया और दो अफगानी, भूतहा अफगानी आँखें दिखाई पड़ीं और तुरन्त अदृश्य हो गईं। मैंने बहुत कोशिश की कि अपने लिए सैंडविच बनाते समय इस घटना के बारे में न सोंचू, लेकिन अन्दर भी मैं इसे खत्म नहीं कर सकी। वह आवाज फिर सुनाई पड़ी, पर फोन से नहीं, बल्कि म्यूजिक सिस्टम से जो मेरे भाई के कमरे में था। इस बार मैं काफी डर गई और मैंने आदेश का पालन किया, बल्कि मुझे बाध्य होना पड़ा, पर अभी भी सोच रही हूँ कि मैंने उनकी बातें मान कर मूर्खता की।
मैंने जैसे ही दरवाजा खोला, एक मरा हुआ कौआ दिखाई पड़ा जिस पर हल्दी और कुमकुम चूर्ण पोता हुआ था। और उसके दोनों ओर दो खोपड़ियॉं धूप में चमक रही थीं जिनके चारों ओर भिन्न-भिन्न आकृति की हड्डियों का घेरा बनाया हुआ था। मैं इसे देख कर इतना घबरा गई कि मुझे चक्कर आ गया और बेहोश होकर फर्श पर गिर पड़ी।
दरवाजे की घंटी सुन कर मेरी चेतना वापस आई। दरवाजा खोलने पर कोई न दिखाई पड़ा। चारों ओर देखने पर एक सुन्दर पैकिंग में एक पुस्तक दिखाई पड़ी जिसके साथ लगे एक कार्ड पर मेरा नाम लिखा था। मैंने इसे बड़ी सावधानी से खोला, डरते हुए कि कहीं इसमें कौए की तरह कुछ अमंगलकारी न हो। लेकिन यह देख कर मुझे आश्चर्य हुआ कि इसमें सचमुच एक पुस्तक थी, ‘‘नैंसी ड्रिव एण्ड द ब्लूबियर्ड रूम।’’ पहले पृष्ठ पर लिखा थाः ‘‘श्रद्धा को, मि एक्स की ओर से।’’
किताबी कीड़ा होने के कारण मैं तुरन्त अपने कमरे में गई और साइकोज तथा मर्डरर्स के बारे में बेहद रुचि के साथ पढ़ने लगी। तभी अचानक पारभासी परदों से मैंने तीन आकृतियों को गुजरते हुए देखा।
मैंने जाकर दरवाजा खोला। दरवाजे के पीछे खड़े मॉं, पिता जी और भाई शरारती मुस्कान के साथ खड़े थे।
मेरे मन में सन्देह उठा और दिमाग ने तुरन्त सन्देश भेजाः ‘‘आज अप्रैल फूल्स डे है।’’ इसीलिए ये सारे ट्रिक्स खेले गये। मेरे डॉक्टर पिता ने कौए आदि रख दिये थे और तीक्ष्ण बुद्धि के मेरे सीधे-सादे भाई ने फोन तथा टी.वी. आदि के साथ तार जोड़ दिये थे।
मैं उन्हें सबक सिखाना चाहती थी, लेकिन खेल-भावना के साथ इसे स्वीकार कर लेने का भी विचार आया।
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