Thursday, June 30, 2011

भीड़ से अलग - जोसेफ मैज़िनी

रास्ते पर भिखारी को देख कर तुम क्या करते हो? अपनी जेब से कुछ सिक्के निकालते हो और उसकी झोली में डाल देते हो! यही न! लेकिन क्या इससे अधिक कुछ कर पाते हो? क्या करुणा या सहानुभूति दिखाते हो? अच्छ तो छः वर्षीय एक बालक की यह कहानी पढ़ो, जिसकी एक भिखारी के प्रति प्रतिक्रिया साधारण लोगों से भिन्न थी ।


वह बालक इटली की एक गली में अपनी मॉं के साथ घूमने के लिए निकला । अचानक उन्हें रास्ते पर चिथड़ों में लिपटा एक भिखारी मिला । बालक ने पहले कभी ऐसा दृश्य नहीं देखा था । उसे धक्का लगा और वह हक्का-बक्का सा हो गया । वह भिखारी के पास गया और उसके गले में अपनी बाहें डाल कर अपनी आयु से कहीं अधिक, करुणा भरी दृष्टि से उसे देखने लगा और उसके कानों में सहज भाव से उसने सान्त्वना के कुछ शब्द बुदबुदाये । तब अपनी मॉं के पास आकर उसने उसे कुछ देने की प्रार्थना की ।


तुम अच्छी तरह से मॉं और भिखारी दोनों की प्रतिक्रिया समझ सकते हो! वे अवाक् रह गये । भिखारी की आँखों में आँसू छलछला आये । उसने बालक की मॉं से कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा साधारण बालक नहीं है । वह हमारे देश और देशवासियों के लिए महान कार्य करेगा । इसकी देखभाल अच्छी तरह से करना मैम!’’


भिखारी के वचन अक्षरशः सच निकले । बालक बड़ा होकर एक करुणामय व्यक्ति निकला । उसने अपने गरीब देशवासियों के दुख-दर्द को दूर करने का भरसक प्रयास किया । वह एक प्रबल देशभक्त था । वह प्रायः कहा करता था कि यदि मेरे हृदय को चीरा जाये तो वहॉं ‘इटली’ शब्द अंकित मिलेगा! अन्ततः उसने अपना सारा जीवन अपने देश की सेवा में समर्पित कर दिया । वह प्रसिद्ध इटलीवासी जोसेफ मैजिनी था ।

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