Thursday, June 30, 2011

विरूप का विवाह

एक गाँव में व्रजभूषण नामक एक जमींदार था। उसके विरूप नामक विवाह योग्य एक पुत्र था। वह रात में अपने पिछवाड़े के पीपल के नीचे सोया करता था। सवेरे जागते ही पेड़ पर के पक्षियों को देख प्रसन्न हो उठता था।
एक दिन सवेरे विरूप ने जागते ही पेड़ की ओर देखा और चीख़कर बेहोश हो गया। बेटे की चीख़ सुनकर व्रजभूषण घटना स्थल पर पहुँचा, अचेत पड़े अपने पुत्र को नौकरों के द्वारा घर के भीतर पहुँचा दिया।
थोड़ी देर में विरूप होश में तो आया लेकिन वह पागल की तरह देख अंट-संट बकने लगा। विरूप की इस हालत पर व्रजभूषण के घबराने का एक और कारण भी था। क्योंकि उसी दिन विरूप की शादी तय करने कन्या पक्ष के लोग आनेवाले थे।
व्रजभूषण ने कन्या पक्षवालों के पास ख़बर भेजी कि वे एक हफ़्ते के बाद आवें। तब पड़ोसी वैद्य माधवाचार्य को बुला भेजा।
माधवाचार्य ने विरूप की जांच करके कहा, ‘‘वैसे लड़का बीमार नहीं है। शायद किसी पिशाचिनी ने इसे ग्रस लिया है। या किसी भूत-प्रेत से डर गया होगा! हमारे मठ में कोई साधु आये हुए हैं। उन्हें एक बार दिखला देंगे।''
इसके बाद लड़के को लेकर दोनों मठ में पहुँचे। उस व़क्त एक व्यक्ति साधु के चारों तरफ़ चक्कर काट रहा था। कहा गया कि उसे भूत ने ग्रस लिया है। साधु ने अपने हाथ की छड़ी से उस व्यक्ति के सर पर तीन बार प्रहार किया । उसका भूत उतर गया। व्रजभूषण का विश्वास साधु पर जम गया।
साधु ने सारी बातें सुनीं, तब कहा, ‘‘तुम्हारे पुत्र के अन्दर किसी भूत-प्रेत ने प्रवेश नहीं किया है। किसी दुश्मन ने इस पर मंत्र फुँकवा दिया है। कोई मांत्रिक ही यह काम कर सकता है। बताओ, तुम्हारे गाँव में कितने मांत्रिक हैं?''

‘‘हमारे गाँव में दो ही मांत्रिक हैं- शरभ और सांबु!'' व्रजभूषण ने कहा।
‘‘उनमें से किसी ने यह काम किया होगा। तुम उन दोनों के पास जाकर पूछो कि वे तुम्हारे पुत्र का इलाज़ करें। जो मांत्रिक इसका इलाज़ करने को तैयार होगा, तुम लौटकर उसका नाम मुझे बतला दो।'' साधु ने कहा।
व्रजभूषण और माधवाचार्य ने घर लौटकर दोनों भूतवैद्यों को, जो मांत्रिक थे, बुला भेजा। शरभ ने विरूप की जांच करके इलाज करने से मना कर दिया और चला गया। सांबु ने कहा, ‘‘मैं इसका इलाज़ करूँगा। आज रात को अंजन लगाकर मैं पता लगाऊँगा कि यह किसकी करतूत है? शरभ पैसे के पीछे पागल रहता है। मेरा संदेह है कि यह काम उसी ने किया है। इसलिए वह यहाँ से चुपके से खिसक गया है। मैं उसकी पोल खोल दूँगा।''
दोनों मांत्रिकों के बीच दुश्मनी थी। इसके बाद व्रजभूषण ने सांबु को भेज दिया और साधु के यहाँ जाकर बताया कि सांबु न केवल इलाज़ करने के लिए तैयार हो गया है, बल्कि उसका अनुमान है कि यह शरभ की करतूत है।
साधु ने कहा, ‘‘तुम भी शरभ पर शंका करते हो? लेकिन मैंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा है, यह करतूत सांबु की है। आज रात को वह अंजन लगाने के बहाने से तुम्हारे पुत्र के प्राण लेने का प्रयत्न करेगा। तुम मेरी बात मानकर अपने पुत्र की रक्षा कर लो।''
इसके बाद साधु ने व्रजभूषण को बताया कि इसके वास्ते उसे क्या करना होगा। उस दिन रात को व्रजभूषण तथा माधवाचार्य दो और आदमियों को साथ ले सांबु के घर की ओर चल पड़े और समीप में आड़ में छिपकर बैठ गये।
आधी रात के बाद सांबु ने अपने घर के मध्य रंगोली सजाई, रंगोली के बीच मरे हुए साँप को रखा। उस पर एक कपाल रख दिया, कपाल पर एक नींबू को खड़ा किया। इसके बाद धूप जलाया। तब अपनी एक उंगली काटकर उसके रक्त से कपाल पर तिलक लगाया।
इस क्रिया के बाद सांबु रंगोली के सामने बैठने ही वाला था, तभी चारों लोग सांबु के घर में घुस पड़े। उसको खंभे से बांधकर खूब पीटा, तब उसे घसीटकर साधु के पास ले आये।

सबने सांबु पर जोर डाला कि वह अपनी गलती को स्वीकार कर ले, पर सांबु ने रोते-पीटते हुए कहा, ‘‘महानुभाव, मैं भगवान की क़सम खाकर कहता हूँ कि मैंने कोई मंत्र नहीं फूँका है। मैं यह भी नहीं जानता कि किस दुष्ट ने यह अनर्थ किया है। इसी का पता लगाने के लिए मैं अंजन लगाकर देखनेवाला था, तभी ये लोग मुझे घसीट लाये ।''
तभी विरूप को साथ लेकर शरभ वहाँ पहुँचा और गरजकर बोला, ‘‘तुम लोग सांबु को पीटना बंद कर दो। वास्तव में मंत्र फूँकनेवाले साधु के वेश में आये पडोसी गाँव के इस मांत्रिक को पीटो। इसीने दुष्टता की, उलटे मुझे तथा सांबु को बदनाम करना चाहा। मुझे पहले से ही इस पर शक था।''
ये बातें सुनने पर साधु चुपके से खिसकने को हुआ। लेकिन शरभ और विरूप ने उसे पकड़कर उसकी ख़ूब मरम्मत कर दी।
वह चीख़ते हुए बोला, ‘‘भाइयो, मैंने लालच में पड़कर यह करतूत की है। मगर मुझसे दुष्ट कार्य करानेवाला बदमाश यहीं पर है।'' फिर उसने माधवाचार्य की ओर संकेत किया। माधवाचार्य का चेहरा स्याह पड़ गया।
व्रजभूषण ने उस पर थूककर कहा, ‘‘तो यह करतूत तुम्हारी है? तुम ने यह काम क्यों कराया?''
इसका उत्तर विरूप ने यों दिया,‘‘माधवाचार्य की कंजूसी से सभी लोग परिचित हैं। इसने अपनी इकलौती बेटी का ब्याह मेरे साथ करना चाहा। इसलिए एक पैसा भी ख़र्च किये बिना मुझे अपना दामाद बनाने के लिए इसने साधु के द्वारा यह प्रयोग कराया है। मैं पागल कहा जाऊँगा तो कोई भी अपनी कन्या देने आगे न आयेगा। इसलिए मेरे साथ अपनी लड़की का ब्याह रचकर फिर मुझे सामान्य बनाने के विचार से इसने यह करतूत की है। पेड़ पर एक भयंकर आकृति को देखकर मेरा मतिभ्रम हो गया था। शरभ की कृपा से मैं फिर से सामान्य बन गया हूँ।''
माधवाचार्य अपनी करनी पर लज्जित हो उठा। इस अपमान से माधवाचार्य की अक्ल ठिकाने लग गई। उसने काफ़ी धन ख़र्च करके अपनी पुत्री का विवाह विरूप के साथ ही कर दिया।


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