Thursday, June 30, 2011

संगमरमर का महल

पश्चिमी घाट के नीचे एक घाटी में सोमनाथपुर नाम का एक छोटा सा राज्य था। वहाँ का राजा सोमदेव साहसी स्वभाव का था। उसने पड़ोसी राज्यों में भ्रमण करके उन सबके साथ मैत्री सन्धि कर ली। उनके मंत्री निर्विघ्न शासन चला रहे थे। राजा को उनकी योग्यता में पूरा विश्वास था।
राजकुमार सोमराज राजा का एकलौता पुत्र था। बड़ा होकर वह एक सुन्दर नौजवान बन गया। कालक्रम में उसे भी साहसिक कारनामों का शौक हो गया। अचानक उस पर देशाटन करने का भूत सवार हो गया। वह अपने पिता के पास गया। ‘‘मैं अपने देश का भ्रमण करना चाहता हूँ। मैं अकेला जाऊँगा और सुरक्षित लौट आऊँगा।''
उसने अपने पिता से कहा।
राजा सोमदेव ने झिझक के साथ कहा, ‘‘क्यों अकेले जाना चाहते हो, पुत्र? कुछ अंगरक्षकों को साथ में ले जाओ। या, क्या तुम्हारे कुछ मित्र साथ में जाना नहीं चाहेंगे?''
‘‘नहीं पिता जी, मेरी इच्छा अकेले ही जाने की है। मैं अपना ख्याल अच्छी तरह रखूँगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ।'' राजकुमार सोमराज ने आश्वासन दिया। ‘‘पहले अपनी माँ से अनुमति ले लो और तब मेरे पास आओ।'' राजा ने कहा।
तब राजकुमार सोमराज अपनी माँ के पास गया। ‘‘यद्यपि तुम्हारे अकेले जाने पर मैं खुश नहीं हूँ फिर भी यदि तुम वचन दो कि तुम किसी कठिनाई में नहीं पड़ोगे और सही सलामत लौट आओगे तब जा सकते हो।'' राजकुमार ने माँ के चरण स्पर्श किये और पुनः पिता के पास गया।

‘‘तुम कब जाना चाहते हो?'' राजा ने पूछा। ‘‘कल नये वर्ष का पहला दिन है।'' राजकुमार ने कहा। ‘‘हमारे सैनिक हमारे राज्य की सीमा तक तुम्हें छोड़ आयेंगे।'' राजा ने कहा। अगले दिन राजकुमार अपने सफेद घोड़े पर सवार होकर चल पड़ा। महल के मुख्य द्वार पर छः सैनिक उसके साथ हो गये।
सीमा पर पहुँचकर सैनिकों ने राजकुमार को विदाई दी और पीछे मुड़कर लौट आये। अब वह बिलकुल अकेला रह गया। वह जल्दी में नहीं था, इसलिए वह धीरे-धीरे, सभी दिशाओं में दृष्टि डालते हुए, चारों ओर देखते हुए जाने लगा। कई दिन गुजर गये। प्रायः वह नदियों के किनारों पर रुक जाता और जल धाराओं की मधुर कलकल ध्वनि का आनन्द लेता।
फिर जल में डुबकी लगाकर तरोताजा महसूस करता। जब उसे फलों से लदे वृक्ष दिखाई पड़ते तो उनकी शाखाओं पर चढ़कर उन फलों का स्वाद लेता। अचानक, एक दिन उसके मार्ग में एक चौड़ी नदी आ गई। उसने नदी की धारा को कुछ देर निहारा, फिर घोड़े के साथ उसे पार करने का निश्चय किया।
थोड़ी देर में वह नदी के दूसरे किनारे पर था। उसके सामने एक घना जंगल दिखाई पड़ा। वह धीरे-धीरे लंबे पेड़ों और घनी झाड़ियों से होते हुए आगे बढ़ता गया। जब वह घने जंगल को पार कर एक खुले मैदान में पहुँचा, उसका घोड़ा अचानक रुक गया। कारण जानने के लिए राजकुमार ने चारों ओर नजर दौड़ाई तब उसे एक बहुत बड़ा भवन दिखाई पड़ा।
वह लाल संगमरमर का बना एक महल के समान लग रहा था। सोमराज को उस महल में एक ऊँचा चौड़ा फाटक दिखाई पड़ा लेकिन वहाँ पर कोई फाटक का रखवाला नहीं था। वहाँ एक घण्टा लटक रहा था। उसने घण्टा बजाना शुरू किया, लेकिन महल से यह देखने कोई नहीं आया कि आगन्तुक कौन है।
राजकुमार ने महल के अन्दर जाने का निश्चय किया। उसने एक निकट के संगमरमर के खम्भे से घोड़े को बाँध दिया और महल के अन्दर प्रवेश किया। अन्दर जाकर उसने बहुत सारे अंगरक्षकों, सेवकों तथा दरबारियों के समान दिखनेवाले लोगों को देखा। लेकिन वे सब निष्प्राण और निश्चल थे। ऐसा लग रहा था मानों वे चलते हुए या कुछ काम करते हुए मूर्तियों में बदल गये हों।

उसने सैनिकों, घोड़ों तथा हाथियों को भी देखा जो संगमरमर की मूर्तियों के समान लग रहे थे। सोमराज ने एक कमरे में प्रवेश किया। उसमें धनुष-बाण, तलवार, छूरे आदि हथियार रखे हुए थे। अगला कमरा बड़ा हॉल था जिसके एक किनारे में दो सिंहासन रखे थे।
एक सिंहासन पर राजसी पोशाक में राजा बैठा था और दूसरे पर चमकते अलंकारों में सजी रानी बैठी थी। हॉल के दोनों ओर के कुछ आसनों पर सम्भवतः राजा के मंत्री बैठे थे। वे सभी संगमरमर की मूर्तियों की भाँति निश्चल थे।
राजकुमार पास के कमरे में गया जिसमें संगमरमर से सुसज्जित पलंग पर उसने एक सुन्दर स्त्री को देखा। पलंग के निकट एक दासी खड़ी थी मानो राजकुमारी के आदेश की प्रतीक्षा कर रही हो। पलंग के निकट एक मेज़ पर दो छड़ियाँ रखी थीं जिनमें से एक चाँदी की तथा दूसरी सोने की थी ।
सोमराज ने सोने की छड़ी से राजकुमारी के हाथ को स्पर्श किया। अरे वाह! चमत्कार हो गया। उसे एक मीठी आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘कौन है।'' राजकुमारी अपने पलंग पर से उठी और आश्चर्य चकित आँखों से राजकुमार को निहारने लगी। ‘‘मैं सोमनाथपुर का राजकुमार सोमराज हूँ। मैं यहाँ हरेक व्यक्ति और हर चीज़ को संगमरमर में परिवर्तित देखकर भौचक रह गया।
यदि मैंने आपके कमरों में अनधिकार प्रवेश किया है तो कृपया क्षमा कीजियेगा। लेकिन यह बताइये कि संगमरमर का रहस्य क्या है?'' राजकुमार ने पूछा। ‘‘यह एक लम्बी कहानी है, राजकुमार।'' वह सुन्दर स्त्री बोली। ‘‘मैं राजकुमारी रत्नकुमारी हूँ। मेरे पिता रत्नगिरि के राजा हैं। कुछ वर्ष पूर्व यह भूमि एक दानव की थी।
जब मेरे पिता ने इस राज्य की स्थापना की और राजधानी रत्नगिरि के केन्द्र में इस महल का निर्माण किया तब हमें दानव के बारे में कुछ मालूम न था। लेकिन एक दिन वह लौट आया और महल पर आक्रमण करने लगा।


हमारी काफी सेना मारी गई। अन्त में मेरे पिता ने उससे बात करके समझाया कि कैसे उन्होंने पर्वत शृंखलाओं के नीचे रत्नगिरि की घाटी में राज्य स्थापित करने से पूर्व इस महल का निर्माण किया।''
‘‘दानव की क्या प्रतिक्रिया थी?'' राजकुमार सोमराज ने उत्सुकतापूर्वक पूछा। ‘‘हाँ, दानव ने वादा किया कि रत्नगिरि की प्रजा को वह परेशान नहीं करेगा, लेकिन उसने एक शर्त रखी।'' राजकुमारी रत्नकुमारी बोली।
‘‘क्या शर्त थी?'' राजकुमार ने चिन्तित होकर पूछा। ‘‘दानव की शर्त थी कि मैं उससे विवाह कर लूँ तब वह महल और प्रजा को कोई हानि नहीं पहुँचायेगा।'' ‘‘अभी दानव कहाँ है? मैं उसका वध कर दूँगा ताकि वह तुम्हें कभी परेशान न करे। आज तक कोई मेरी तलवार या बाण से बच नहीं पाया।'' उसने अपनी बलिष्ठ भुजाओं को दिखाते हुए कहा।
‘‘हमलोगों को नहीं मालूम वह कहाँ है?'' राजकुमारी ने कहा। ‘‘लेकिन मेरे पिता के उसकी शर्त मानने से इनकार करने पर वह, जो जादूगर भी था, अपनी चाँदी की जादुई छड़ी से अपने सामने आनेवाली सभी सजीव और निर्जीव चीजों को छूने लगा। वह इस काम को इतनी तेज गति से करने लगा कि मेरे पिता, उनके अंगरक्षक और सैनिक उसे रोक न पाये। उसने जाते-जाते यह शाप दिया कि हर व्यक्ति निष्प्राण हो जायेगा और उनमें तभी प्राण आयेंगे जब एक राजकुमार आकर हर कमरे में रखे जल को उन पर छिड़केगा और सोने की जादुई छड़ी से उन्हें स्पर्श करेगा।'' ‘‘आओ, मैं हरेक को पुनर्जीवित करने में मदद करता हूँ।'' राजकुमार ने कहा।
राजकुमार ने पहले राजकुमारी के कमरे में रखे पानी के कटोरे को स्पर्श किया। राजकुमारी ने जल को दासी पर छिड़का और राजकुमार ने सोने की छड़ी से उसे छुआ। दासी पुनर्जीवित हो गई। रत्नकुमारी और सोमराज ने दरबार में जाकर राजा, रानी तथा मंत्रियों को पुनर्जीवन दिया। उन्हें राजकुमार सोमराज के बारे में बताया गया तो वे फूले न समाये।
एक मंत्री ने कहा, ‘‘राजकुमारी, तुम यहीं माता-पिता के पास ठहरो, मैं राजकुमार सोमराज के साथ जाकर बाकी सब को जगाता हूँ।''

शीघ्र ही, महल हर तरह की ध्वनि और संगीत से जीवन्त हो उठा। इस बीच राजा ने विचार-विमर्श के लिए मंत्रियों और दरबारियों को बुलाया। ‘‘पहले हमें यह निश्चय करना है कि दानव के फिर से आने पर हमें क्या करना चाहिये।''
राजा के बगल में बैठे राजकुमार सोमराज ने कहा, ‘‘दानव जादू की दोनों छड़ियाँ यहीं छोड़कर चला गया है। हमें यह ध्यान में रखना चाहिये कि ये छड़ियाँ फिर उसके हाथ न लगें। मुझे यह लगता है कि वह इन छड़ियों के बिना कुछ न कर सकेगा। और, आप के सैनिक उसे पकड़ लेने में समर्थ हो जायेंगे।''
मुख्य मंत्री ने कहा, ‘‘राजकुमार सोमराज बिलकुल ठीक कह रहा है। इसमें अलौकिक बुद्धि है और इसे हमेशा के लिए हमलोगों के पास ही रहना चाहिये।'' राजा मुस्कुराया। ‘‘इसमें कोई कठिनाई नहीं है। यदि राजकुमारी से विवाह करना इसे स्वीकार हो तो वह हमेशा के लिए हमारे साथ रहेगा। वह हमारे सिंहासन का उत्तराधिकारी भी बन जायेगा।''
राजकुमार सोमराज एक बार फिर उठा, ‘‘महाराज, मैं अपने राज्य से बाहर अपने लिए एक दुल्हन पाने का सपना लेकर निकला था। और मैं समझता हूँ कि मैंने उसे यहाँ पा लिया है। आपकी तथा यहाँ उपस्थित सभी महत जनों की आज्ञा से मैं अपने राज्य में वापस जाऊँगा और अपने माता-पिता की स्वीकृति लेकर आऊँगा।''
दरबार में उपस्थित सभी लोगों ने खड़े होकर राजकुमार सोमराज का अभिवादन किया। ‘‘राजकुमार, तुम अकेले नहीं जाओगे। मेरे मुख्य मंत्री तुम्हारे साथ जायेंगे और तुम्हारे पिता से वह सब कुछ बतायेंगे जो यहाँ घटित हुआ है तथा हमलोगों की इच्छा क्या है!'' राजा ने कहा।
राजा सोमदेव और उसकी रानी अपने बेटे का कुमारी रत्नकुमारी के विवाह का समाचार सुन कर अति प्रसश्न हुए। वे बड़ी संख्या में सम्बन्धियों के साथ रत्नपुरी के लिए चल पड़े। बड़े धूमधाम से दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ। बहुत सालों तक रत्नगिरि में किसी ने दानव को फिर नहीं देखा।





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