जब तुम किसी को कुछ स्वादिष्ट खाद्य खाते देखते हो, तब क्या तुम्हारे मुँह में पानी नहीं आता? और तब तुम्हें कैसा लगेगा जब वह तुम्हें तो थोड़ा-सा दे और अपने लिए ज्यादा और बड़ा हिस्सा रख ले? हममें से अधिकांश को तो बहुत खराब लगेगा। लेकिन किसी को हर चीज़ में बराबर की भागीदारी में दृढ़ विश्वास था। उसकी छः वर्ष की आयु में ही उसमें न्याय और समानता के प्रबल बोध के संकेत मिलते थे।
वह बालक अपने घर के सामने अपने एक मित्र के साथ खेल रहा था, जो उससे उम्र में थोड़ा बड़ा, सम्भवतः 8 वर्ष का रहा होगा। जब वे खेल रहे थे तब बालक की मॉं एक प्लेट में एक चपाती लेकर घर से बाहर आई। जब उसने देखा कि उसका बेटा अकेला नहीं है तब उसने चपाती के दो भाग कर दिये।
उसने चपाती के दोनों टुकड़ों को अपने बेटे को देकर बड़े टुकड़े की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘बेटे, यह तुम्हारे लिए है और दूसरा भाग तुम्हारे दोस्त के लिए है!’’बालक ने अपने हाथ में रखे दोनों टुकड़ों को देखा। फिर उसने बड़ा टुकड़ा अपने मित्र को दे दिया और स्वयं छोटा टुकड़ा खाया। उसकी मॉं यह देखकर चकित रह गई। ‘‘तुमने ऐसा क्यों किया?’’ उसकी मॉं ने पूछा।
उत्तर में बालक ने कहा, ‘‘क्या तुमने पहले मुझे नहीं कहा है कि दोस्त भाई के समान होता है। इसलिए क्या यह उचित नहीं है कि बड़े भाई को बड़ा टुकड़ा मिलना चाहिये और छोटे भाई को छोटा टुकड़ा?’’ उसकी मॉं अपने बेटे के ज्ञान भरे शब्दों को सुनकर चकित रह गई। यह बालक बड़ा होकर एक महान शिक्षक बना तथा बाद में बम्बई हाई कोर्ट का न्यायाधीश हुआ। भारत भर में लोग इन्हें महादेव गोविन्द रानाडे के नाम से जानते हैं।
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