
संगमरमर-नीले आसमान के तले किसानों का एक गाँव था जो आवासीय क्षेत्र से कहीं अधिक खेतों की इतराती और आकाश की नीलिमा से अपनी मिला न करती हरियाली के विस्तार तक फैला था।
प्रकृति कितनी मोहक है, किन्तु फिर भी, यदि वह फसलों को पकने और खेतों की समृद्ध मुस्कान में मदद नहीं करती तो खेतों पर खून-पसीना बहाकर मेहनत करनेवाले किसानों के लिए प्रकति की मोहक सुन्दरता का अर्थ नहीं रह जाता। बच्चो। ऐसा विश्वास करना उचित नहीं होगा कि केवल वर्षा ही फसलों के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। तुम्हें किसानों की धूसर-भूरी पीठ, छाती तथा कनपटियों से बहती पसीनों की धार को भूलना नहीं चाहिये। उन्हें अपने श्रम का इनाम लेने का हक है।
जो भी हो, अभी मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ, जिसे, मुझे आशा है, हर छोटा बच्चा या बच्ची बहुत पसन्द करेगी और हमेशा हमेशा के लिए याद रखेगी।
एक दिन शाम को सूरज मानो किसान की ही तरह अथक परिश्रम करके अपने घर अस्ताचल की ओर लौट रहा था। सचमुच, सूरज को आसमान का एक मात्र अकेला किसान कहा जा सकता है जो सितारों की दुर्लभ फसल उगाने के लिए अकेला अथक परिश्रम करता है।
हाँ, तो सूरज डूब रहा था और किसान-पुरुष-स्त्री दोनों अपनी फसलों को एकत्र कर, जिन्हें मैत्रीपूर्ण सहयोग के साथ बोये थे, अपनी-अपनी झोंपड़ियों में वे लौट रहे थे। उनके साथ उनके बच्चे आनन्द से खेलते-गाते, स्नेह और सुरक्षा के लिए अपनी माताओं से चिपके हुए चल रहे थे।
परन्तु एक छोटा बच्चा तितलियों को पकड़ने में मस्त था। कुछ तितलियों के पंख बड़े और काले थे जिन पर सफेद चित्तियाँ थीं। कुछ के पंख नारंगी और श्वेत रंग के थे और कुछ के लाल चित्तियों के साथ केवल श्वेत थे। तितली भी क्या शानदार चीज़ होती है। यह एक ‘‘फड़फड़ाहट'' है जो एक सुन्दर कविता के समान होती है। यह एक मानो उड़नेवाला फूल है जिस प्रकार फूल, नहीं उड़ सकनेवाली तितली है!
किसान अपनी झोंपड़ियों में लौट रहे थे जो खेतों से कोसों दूर थीं। पर किसान तो कोसों तक पैदल चलने के आदी होते हैं और मार्ग उनके पदचापों के अभ्यस्त हो गये थे। इनके बिना उन्हें आराम नहीं मिलता था।
तितली को पकड़नेवाले छोटे बच्चे ने अचानक अनुभव किया कि वह बहुत दूर निकल गया है, जबकि उसकी माँ विपरीत दिशा में चली गई थी। वह घबरा गया और माँ, माँ चिल्लाने लगा। पर तब तक सूरज पूरी तरह डूब चुका था और अन्धेरा धीरे-धीरे फैल रहा था।
बच्चे की सिसकती आवाज के साथ उसकी माँ माँ की पुकार हवा में गूँजने लगी। खेतों में और उनके आस-पास साटा था। एक नीरव शान्ति थी।

‘‘मुझे अपनी माँ चाहिये,'' बच्चे ने सिसकते हुए कहा। लगता था उसकी सांस अभी बन्द हो जायेगी।
‘‘तुम्हारी माँ किस तरह या कैसी दीखती है?'' किसान ने पूछा।
‘‘वह सुन्दर है।'' बच्चे ने कहा।
‘‘घबराओ नहीं!'' पके हुए सेब के रंग के किसान ने कहा। तभी सड़क पर एक सुन्दर स्त्री प्रकट हुई। ‘‘क्या यही तेरी माँ है? यह सुन्दर है।'' उसने बच्चे से पूछा।
‘‘नहीं, नहीं! मेरी माँ दुनिया की सबसे सुन्दर स्त्री है!''
शीघ्र ही एक और स्त्री वहाँ से गुजरने लगी। ‘‘क्या वह स्त्री तुम्हारी माँ है?''
बच्चा चिल्ला पड़ा, ‘‘नहीं! नहीं! मेरी माँ दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत है!''
एक के बाद एक अनेक औरतें आती गईं पहले से अधिक सुन्दर या पहले की ही तरह सुन्दर। पर बच्चा बेचैन और उदास हो गया और उसे डर हो गया कि अब उसकी माँ फिर कभी नहीं मिलेगी।
पर ऐसा नहीं होता। प्रेम का विधान अपने आप को परिपूर्ण करता है, यदि इसमें विश्वास और श्रद्धा हो।
बच्चे ने एक औरत को अपनी ओर आते हुए देखा और वह खुशी से उछल पड़ा। वह ऊँची आवाज में चीखता हुआ बोला, ‘‘यह है मेरी माँ! वह आ गई, मेरी माँ, आखिरकार!''
लाल पके सेब के चेहरेवाला किसान ठठाकर हँसा जिसे सुनकर स्वर्ग के देवताओं को शक हुआ कि धरती पर क्या हो गया!
बच्चे की माँ बहुत मामूली सी दीखनेवाली एक किसान-औरत थी। वह एक आँख से अन्धी भी थी और चेहरा धूप में पककर काला हो गया था।
‘‘तुम्हारी माँ? हे भगवान! दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत?'' किसान ठठाकर हँसता रहा, अट्टहास करता रहा।
‘‘हाँ, वह विश्व की सर्वाधिक सुन्दर नारी है- मेरी माँ!'' बच्चे ने एक ऐसी आवाज में कहा जिसमें, लगता था, बचपन के वसन्त-काल के सारे सुमन समाविष्ट हों।
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