Thursday, June 30, 2011

दुर्ग्रह्य गुप्तचर

सन् 1917 का वर्ष था। प्रथम महायुद्ध चल रहा था। ब्रिटिश गुप्तचर विभाग का प्रधान धर्म संकट में था। जब वह पूरब में ब्रिटिश सेना के साथ था तब उसे मालूम हुआ कि सेना द्वारा अधिकृत क्षेत्र में दुश्मन के जासूस भरे पड़े हैं। वह सोच रहा था कि इस संकट का सामना करने के लिए सिपाहियों को प्रशिक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है।


शीघ्र ही, उस अधिकारी ने, जिसका नाम मैनरिंग था, यह अफवाह सुनी कि जर्मन जासूसी सेवा का एक एजेंट फ्रिट्ज महत्वपूर्ण सूचना लेने के लिए हमेशा ब्रिटिश मोर्चा के पीछे छद्म वेश में रहता है। लेकिन उसकी मौजूदगी अथवा उसकी गतिविधियों का कोई प्रमाण नहीं मिला। तब क्या यह केवल अफवाह थी? इसके बावजूद मैनरिंग ने यह सूचना अपने ऊँचे अधिकारियाों को दे दी। उन्होंने सेना को सावधान करने का निश्चय किया। जर्मन जासूस पर कड़ी नज़र रखने के आदेश जारी किये गये।


एक दिन मैनरिंग को युद्ध बन्दी शिविर का मुआयना करने का आदेश दिया गया। उसे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि उसके बारे में वहॉं लोग जानते थे, क्योंकि उसके पहुँचते ही उसे यह बताया गया कि एक यूनानी युद्धबन्दी, जो तुर्की सेना से भाग कर आया था, उससे मिलना चाहता है। मिलने के बाद कैदी की बात सुन कर वह अवाक् रह गया। ‘‘सर, मैं उस आदमी को जानता हूँ जिसे आप पकड़ना चाहते हैं। मैं कुछ दिनों तक एक फ्रिट्ज के लिए काम करता था!’’


‘‘क्या? क्या तुम मुझे धोखा दे रहे हो? चकित जासूस ने पूछा।


‘‘बिलकुल नहीं’’, यूनानी ने विश्वास दिलाया। ‘‘यदि आप मुझे यहॉं से आजाद कर देंे तब उसे कैद करने में मैं भरसक कोशिश करूँगा।’’ बहुत सोचने-विचारने के बाद मैनरिंग उसके प्रस्ताव से सहमत हो गया। लेकिन अपना निर्णय बताने से पूर्व उसने उसे यूनानी वाणिज्य दूतावास में ले जाकर यह निश्चय कर लिया कि वह वास्तव में यूनानी है।


अब यूनानी ने कुछ शर्त्तें रख दीं। उसने सफाई दी कि फ्रिट्ज के साथ झगड़ा होने के कारण ही उससे वह अलग हुआ था। अब वह पुनः उसके पास लौट जाने को तैयार था, यद्यपि उसे कुछ गुप्त सैनिक सूचना दे दी जाये। इससे फ्रिट्ज को विश्वास हो जायेगा। तब वह उसे तुर्की मोर्चे से एक निश्चित स्थान पर आने के लिए राजी करने की कोशिश करेगा। इससे फ्रिट्ज को कैद करना आसान हो जायेगा। यूनानी को उसके उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुछ अहानिकर सूचनाएँ दे दी गईं। उसके बाद उसे मुक्त कर दिया गया और वह शीघ्र ही गायब हो गया।


एक सप्ताह गुजर गया। अपने वचन के अनुसार यूनानी पुनः प्रकट हुआ और बोला कि फ्रिट्ज ब्रिटिश मोर्चे के अन्दर एक विशेष दिन पर आनेवाला है। यूनानी ने ब्रिटिश गुप्तचर विभाग के प्रधान और जर्मन जासूस फ्रिट्ज के मिलन के लिए एक आदर्श स्थल की व्यवस्था की थी। यह एक सूखी नदी में स्थित एक एकान्त स्थान था जो बहुत निकट आने पर ही दिखाई पड़ता था।


‘‘रहस्यमय फ्रिट्ज अन्ततः मेरे जाल में फंसेगा,’’ उस गुप्त स्थान पर जाने के लिए बड़ी आशा के साथ घोड़े पर सवार होते हुए मैनरिंग ने मन ही मन सोचा। जब वह निकट पहुँचा तब यह देख कर उसे खुशी हुई कि यूनानी पहले से ही वहॉं अपने घोड़े के पास खड़ा है।
तो उस आदमी ने अपना वचन पूरा किया। उसने मैनरिंग को बताया कि फ्रिट्ज एक अर्दली के साथ ब्रिटिश मोर्चे के अन्दर है। वे जल्दी ही आनेवाले हैं। प्रतीक्षा करते समय वे अनौपचारिक बातचीत करने लगे। यूनानी ने यह सिद्ध करने के लिए काफी कागजी सबूत पेश किये कि अब भी फ्रिट्ज के साथ उसका गहरा सम्बन्ध है।


‘‘क्या आप के पास हथियार है?’’ अचानक यूनानी ने प्रश्न किया।


‘‘हॉं, है।’’ जासूस अधिकारी ने कहा।


‘‘तब जैसे ही फ्रिट्ज को देखेंे, उसे गोली मार दें।’’ यूनानी ने सलाह दी।


जब अन्धेरा छाने लगा तब दूर से घोड़े पर आती हुई एक आकृति दिखाई पड़ी। ‘‘ब्रिटिश यूनिफॉर्म में वह अर्दली है। फ्रिट्ज शीघ्र ही उसके पीछे-पीछे आयेगा!’’ यूनानी बुदबुदाकर बोला। अर्दली यूनानी के निकट आया और उसे कुछ कागजात दिये। फिर उसने जर्मन भाषा में कहा कि फ्रिट्ज को, ब्रिटिश सेना द्वारा पीछा किये जाने का कारण, तुर्की सीमा में वापस लौटना पड़ा। यूनानी ने तुरन्त आश्चर्य और निराशा का भाव प्रकट किया। इसके बावजूद, उसने मैनरिंग को विश्वास दिलाया कि फ्रिट्ज कुछ ही दिनों में ब्रिटिश सीमा में लौट आयेगा। उसने दूसरी मुलाकात के इन्तजाम का वादा किया।


जब जासूस अधिकारी ने अर्दली को यूनानी से धारा प्रवाह जर्मन भाषा में बात करते हुए सुना तो उसे कुछ विचित्र लगा। यूनानी भाषा में क्यों नहीं? लेकिन अब उसके सामने यूनानी के परामर्श को मान लेने के सिवा और कोई विकल्प न था। क्योंकि अब भी उस दुर्ग्रह्य फ्रिट्ज को पकड़ने की उसे आशा थी! ‘‘ऐसे संकटकाल में मैं अर्दली को दुश्मन के शिबिर में लौटने नहीं दे सकता। क्योंकि तुम्हें मालूम है कि जिस रहस्य को तीन व्यक्ति जानते हैं, वह रहस्य नहीं है। उसे अभी कैद करना होगा।’’ मैनरिंग ने दृढ़तापूर्वक कहा।


यूनानी को यह बात तर्कसंगत लगी और वह सहमत हो गया। अर्दली कुछ गज की दूरी पर घोड़े की देखभाल कर रहा था। यूनानी ने मैनरिंग से अनुरोध किया कि वह घाटी के दूसरी ओर जाकर देख ले कि रास्ता साफ है। ‘‘तब उस आदमी को काबू में कर लेंगे।’’ उसने कहा।


मैनरिंग ने अपने पॉकेट में रखे ऑटोमेटिक पिस्तौल के घोड़े पर हाथ रखा। तब वह घोड़े को कुछ दूर तक ले गया और फिर जल्दी से उछल कर सैडल पर बैठ गया। उसी समय कान फाड़ देने वाले दो धमाकों की आवाज सुनाई पड़ी। गोलियॉं उसके पास से निकल गईं। घूम कर देखने पर वह अवाक् रह गया, अर्दली और यूनानी दोनों उस पर गोलियॉं चला रहे थे।


उसका घोड़ा डर से उछलने - कूदने लगा, फिर भी उसने अपने आक्रमणकारियों से यथासम्भव बचने की कोशिश की और गोली चलाई। अर्दली बुरी तरह घायल हो गया। यूनानी आराम से भाग निकला और शीघ्र ही क्षितिज में अदृश्य हो गया। अर्दली का घोड़ा बिना सवारी का उसके पीछे-पीछे चला गया।
मैनरिंग घोड़े से उतर कर उस आदमी के पास गया जो घातक रूप से घायल होकर जमीन पर पड़ा था। उसे अपनी आँखों पर रहसा विश्वास नहीं हुआ जब उसने देखा कि घायल व्यक्ति स्त्री है। स्पष्टतः वह जर्मन थी और ब्रिटिश यूनिफॉर्म में पुरुष की पोशाक में थी। शीघ्र ही उसके प्राण-पखेरु उड़ गये।


जब अधिकारी अपने घर की ओर लौटा तो सूर्यास्त हो चुका था। उसने इस बात पर बहुत दुःख और शर्म का अनुभव किया कि उसने एक स्त्री की हत्या कर दी, हालांकि उसने जान-बूझ कर ऐसा नहीं किया था। यूनानी ने उसे मूर्ख बना दिया था। यूनानी और उसके स्त्री-सहापराधी ने उसे जान से मारने की कोशिश की थी। ‘‘काश! मैं स्त्री के स्थान पर यूनानी को मार पाता!’’ उसने सोचा।


यूनानी कौन था? जर्मन स्त्री कौन थी? दुर्ग्रह्य फ्रिट्ज कहॉं था? वे सब रहस्य बने हुए थे, लेकिन बहुत दिनों तक नहीं। कुछ महीनों के पश्चात् युद्ध समाप्त हो गया। मैनरिंग को एक पत्र मिला। पत्र पढ़ कर उसे धक्का लगा और अविश्वास के साथ उसने आँखें बन्द कर लीं। यह सब उसे कोरी कल्पना लगने लगी। दुर्ग्रह्य फ्रिट्ज न तो हौआ था और न मनगढ़न्त व्यक्ति!


वह एक वास्तविक व्यक्ति था और पूरे महायुद्ध के दौरान जर्मन गुप्तचर विभाग के सभी एजेंटों में सर्वाधिक दक्ष और उपाय-कुशल था। यूनानी स्वयं फ्रिट्ज था! दुःख की बात है कि वह स्त्री उसकी पत्नी थी! एक दिन, कुछ वर्षों के बाद, ब्रिटिश अधिकार के अन्तर्गत एक क्षेत्र के कैफेटेरिया में फ्रिट्ज और मैनरिंग की आमने-सामने मुलाकात हो गई। निस्सन्देह, वे एक-दूसरे को पहचान गये। शायद वे एक दूसरे को देख कर मुस्कुराये भी। लेकिन वे एक शब्द भी न बोले।

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