Thursday, June 30, 2011

शूर-वीर भयंकर

भद्रगिरि और रत्नगिरि पड़ोसी राज्य थे। पीढ़ियों से उन दोनों देशों के बीच शत्रुता थी। इस वजह से कभी-कभी रक्तपात भी होता रहता था। दोनों देशों के राजा साहसी और युद्ध व्यूह में कुशल भी थे। इससे सेना नष्ट होती थी, पर कोई भी विजयी नहीं हो पाता था।
इन परिस्थितियों में भद्रगिरि के राजा की अकाल मृत्यु हो गयी। उसका बेटा रणधीर शासक बना। उसने शत्रु को हराने का निश्चय कर उस राज्य पर आक्रमण की घोषणा कर दी।
दो ही दिनों के अंदर दोनों राज्यों की सेनाएँ युद्ध के लिए सरहदों पर तैनात हो गयीं ।
युद्ध किसी भी क्षण शुरू होने ही वाला था, तब भद्रगिरि का एक छोटा-सा दलाधिपति शूर-वीर भयंकर, सेना को छोड़कर भागने लगा। एक और दलपति ने यह देखा और उसे पकड़ लिया। वह उसे राजा रणधीर के पास ले गया और उसे पकड़ने का कारण बताया।
रणधीर ने, उसे क्रोध-भरी आँखों से देखते हुए पूछा, ‘‘अरे, तुम तो हट्टे-कट्टे हो, तुम्हारा शरीर दृढ़ है, और देखने में सचमुच ही बड़े ही शूर-वीर भयंकर लग रहे हो। युद्ध शुरू भी नहीं हुआ, मैदान छोड़कर एक कायर की तरह भाग निकले। तुमने ऐसा क्यों किया?''
वीर-शूर भयंकर ने बड़े ही विनय के साथ कहा, ‘‘महाराज, कायरता की वजह से मैं भाग नहीं निकला। रत्नगिरि के सैनिकों से मुझे बेहद चिढ़ है। उनके चेहरे देखते ही मुझे घृणा होने लगती है। इसीलिए मैं भाग निकला।''

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