Thursday, June 30, 2011

नास्तिक की नाराज़गी

शिवराम पक्का नास्तिक था। धान व सूद का व्यापार करके उसने लाखों रुपये कमाये। क्रमशः उसने बुढापे में क़दम रखा। तबीयत बिगडती जा रही थी। इस दशा में चंद परिचित लोगों ने उसे सलाह दी, ‘‘अब ही सही, अपनी नास्तिकता छोड़ो। देवभक्ति की आदत डालो। परलोक में सुखी रहने का प्रयत्न करो।''
खूब सोचने के बाद शिवराम को लगा कि उनकी सलाह में सत्य छिपा हुआ है। उसने उनसे कहा, ‘‘इहलोक में सुख भोगा। अगर परलोक हो तो वहाँ भी बिना किसी बंधन के सुख भोगूँगा।'' यों कहकर वह मंदिर के पुजारी केशव से मिलने निकला।
केशव केवल एक साधारण पुजारी ही नहीं था, बल्कि आध्यात्मिक व धार्मिक विषयों का ज्ञाता भी था। जब शिवराम उससे मिलने आया तब वह मंदिर के चबूतरे पर बैठकर कोई ग्रंथ पढ़ रहा था।
शिवराम ने वहाँ आकर पुजारी को नमस्कार किया। तब आश्चर्य भरे स्वर में केशव ने कहा, ‘‘कहीं रास्ता भूलकर तो यहाँ नहीं आ गये?''
शिवराम ने उसके पास आने का कारण बताया। चकित होते हुए पुजारी केशव ने कहा, ‘‘ऐसी बात है क्या? तुम्हें लोगों से जो रक़म मिलती है, जो रक़म तुम्हें चुकानी है, क्या सब से निपट चुके?''
शिवराम ने नाराज़ होते हुए कहा, ‘‘फुरसत नहीं है, फिर भी आपसे भक्ति, आध्यात्मिक व धार्मिक विषय जानने आया हूँ। पर आप तो व्यापार को लेकर बातें करने लग गये! मेरे मूल्यवान समय को व्यर्थ कर रहे हैं। यह आपको शोभा नहीं देता।'' कहकर वह वहाँ से तुरंत चलता बना।


1 comment:

  1. लखनऊ में तनाव तो धनीराम के गानों पर मस्‍त है सैफई
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