
परंधाम किराने की दुकान चलाता था। हर किसी को वह संदेह की दृष्टि से देखता था। उसका समझना था कि मुझसे बड़ा अक्लमंद कोई है ही नहीं। अपने यहाँ काम करनेवाले गुमाश्तों का बारंबार अपमान किया करता था।
एक दिन घर के लिए आवश्यक चीज़ें खरीदने उसका दोस्त गुरुनाथ उस दुकान पर आया। परंधाम ने उससे कहा कि उसे एक अक्लमंद गुमाश्ते की ज़रूरत है और हो सके तो वह इसका इंतजाम करे। गुरुनाथ की गली के नुक्कड में रंगा नामक एक लड़का रहता था । अगली बार वह अपने साथ उस लड़के को भी ले आया।
परंधाम ने रंगा से पूछा, ‘‘तुम हिसाब बखूबी जानते हो?'' रंगा ने सिर हिलाते हुए ‘हाँ' कहा।
परंधाम बग़ल के कमरे में गया और रुपयों का एक पुलिंदा ले आया। फिर रंगा से कहा, ‘‘इस पुलिंदे में पाँच हज़ार रुपये हैं। गिनना और बताना कि इसमें इतने रुपये हैं या नहीं। बगल के कमरे में जाना और इन्हें गिनकर ले आना।''
जैसे ही रंगा कमरे में गया, परंधाम ने गुरुनाथ से कहा, ‘‘आजकल किसी का भी विश्वास नहीं किया जा सकता। इस लड़के को पाँच हज़ार रुपयों का पुलिंदा दिया। उसमें पचास रुपये के नोट हैं, उनमें पचास का एक नोट ज़्यादा रख दिया। वह उस पचास के नोट को जेब में रख लेगा और कहेगा कि ठीक पाँच हज़ार रुपये हैं। पता लग जायेगा कि वह कैसा लड़का है।'' कहते हुए वह हँसने लगा। इतने में रंगा वहाँ आया और रुपयों का पुलिंदा उसके सुपुर्द किया। उसने रंगा से पूछा, ‘‘पूरी रक़म है न?'' उसने कहा, ‘‘नहीं, पचास रुपये का एक नोट कम है।''
‘‘देखा, तुमने ठीक तरह से गिना नहीं होगा। तुम्हें हिसाब नहीं आता। देखना, फिर से एक और बार गिनेंगे।'' फिर गुरुनाथ से कहा, ‘‘गुरुनाथ, इस पुलिंदे में कितनी रक़म है, ज़रा गिनना।'' कहते हुए उसने वह पुलिंदा गुरुनाथ के सुपुर्द किया। गुरुनाथ ने नोटों को गिनने के बाद कहा, ‘‘इसमें निनानवे ही हैं।''

‘‘यह तो सरासर झूठ है, धोखा है। मैंने एक सौ एक नोट दिये तो दो नोटों को ग़ायब कर दिया और कहते हो, निनानवे ही हैं?'' वह नाराज़ हो उठा और रंगा का कुर्ता पकड़ लिया। उसकी जेबें ढूँढ़ डालीं। कमरे में जाकर ढूँढ़ा, लेकिन कहीं रुपये नहीं मिले। तब गुरुनाथ ने, परंधाम से कहा, ‘‘तुमने ग़लत गिना होगा। बेकार ही इस लड़के पर संदेह कर रहे हो। ठीक है, किसी और को नौकरी पर रख लेना।'' कहते हुए वह बाहर आया।
गली में थोड़ी दूर मुडने के बाद रंगा ने गुरुनाथ से कहा, ‘‘मालिक, सच कहा जाए तो पुलिंदे में एक सौ एक नोट हैं। सब कहा करते हैं कि परंधाम किसी का विश्वास नहीं करता। संदेही प्राणी है। मेरी परीक्षा लेने के लिए उसने ऐसा किया होगा। जब यह बात वह आपसे कह रहा था, तब मैंने सुन भी लिया। इसलिए उसके साथ एक और नोट भी निकाला और छिपा दिया। जो हर क्षण संदेह करता रहता है, उसके पास काम करना नहीं चाहिये। यह मुझे बिलकुल पसंद नहीं। भीख माँगकर जीना उससे कहीं अच्छा है। ये रुपये लीजिये और उसे दे दीजिये।'' कहते हुए उसने अपनी धोती में से पचास के दो नोट निकाले और गुरुनाथ के हाथ में रख दिया।
गुरुनाथ ने रंगा की तारीफ़ की और वह रक़म परंधाम को दे दी। उसने परंधाम से कहा, ‘‘परंधाम, गली भर के सब लोगों को मालूम है कि तुम किसी का एतबार नहीं करते। रंगा ने साबित कर दिया कि ऐसा स्वभाव बिलकुल अच्छा नहीं है। उससे तुम्हारी हानि होती है । सोचोगे तो जान जाओगे।'' कहकर वह वहॉं से लौट पड़ा।
इस घटना से परंधाम में परिवर्तन आया। उस दिन से वह किसी गुमाश्ते का अपमान नहीं करता। उन्हें संदेह की दृष्टि से नहीं देखता। अब वह अच्छा आदमी कहलाया जाने लगा।

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