Thursday, June 30, 2011

पाताल राक्षस

मगध देश के राजा शक्तिसेन के शासन में आन्दोलन शुरू हुआ। भि-भि जातियों और वर्गों के बीच कलह पैदा हुए, परिणाम स्वरूप देश में अराजकता फैल गई। सभी धर्मों, पेशेवर लोग तथा जाति व वर्ग के लोग अपने कर्तव्य भूलकर इस तरह लड़ने-भिड़ने को तैयार हो गये, मानो गृह युद्ध चल पड़ा हो।
इस हालत पर काबू रखने के लिए राजा शक्तिसेन ने कई कानून बनाये। लेकिन उन कानूनों के आधार पर जनता में और ज़्यादा भीतरी कलह शुरू हुए।
राजा ने अपनी असमर्थता को भांप लिया। उन्होंने अपने मंत्री व पुरोहित यज्ञशर्मा को बुलाकर पूछा- "महामंत्री, हमारे राज्य में इस अराजकता के फैलने का कारण क्या है? इस हालत में अगर हम देश में शांति और सुरक्षा स्थापित करना चाहते हैं तो हमें क्या करना होगा?" इस पर यज्ञशर्मा ने कहा- "महाराज, आपकी शंकाओं को दूर करने के लिए मैं आपको एक छोटा इतिहास बताता हूँ। आप कृपया सावधानी से सुन लीजिए।"
इन शब्दों के साथ यज्ञशर्मा ने कहाः पाताल लोक में राक्षसों का राज्य सब तरह से संप था। ऐसी हालत में अघोर नामक एक राक्षस ने अचानक राजा के विरुद्ध एक आन्दोलन शुरू किया। इस पर राजा ने अघोर को पाताल लोक से निकाल दिया। तब अघोर भूलोक में पहुँचा। उसने भूलोक में प्रवेश करते ही एक रेगिस्तान में अपना क़दम रखा। वहाँ पर उसे खाने-पीने को जब कुछ हाथ न लगा, तब वह मनुष्यों के निवास करनेवाले प्रदेश में आया। वहाँ पर जो भी मानव उसकी आँखों में पड़्रा, उसको पकड़कर खाने लगा।

इस वजह से भूलोक में बड़ी हलचल मच गई। लोगों को बिलकुल पता न चलता था कि अघोर न मालूम कब किस प्रदेश में आ धमकता है और कब किसको पकड़कर खा जाता है।
भूलोक में कई देश हैं, कई भाषाएँ और बोलियाँ हैं। सब कोई अपने को दूसरों से बड़ा मानते हैं। किन्हीं दो देशों के बीच दोस्ती नहीं है। हर देश दूसरे देश को जीतकर उस पर अपना हुक्म चलाना चाहता है। इस वजह से अक्सर उन देशों के बीच लड़ाड़याँ होती रहती हैं। उन लड़ाड़यों में जीतने के लिए नये-नये अस्त्र तैयार किये जाने लगे।
अघोर जब भूलोक में पहुँचा, तब कई वीरों ने आगे आकर अपने-अपने देश को उसके हाथों से बचाने की कोशिश की। लेकिन ताड़्र के पेड़्र के बराबर काले अघोर के बदन पर उनके साधारण हथियारों का कोई असर नहीं पड़्रता था। वह भूलोक में स्वेच्छापूर्वक संचार करते हुए सब जगह हलचल मचाता ही रहा।
आखिर यह बात स्पष्ट हो गई कि मनुष्यों के साहस और पराक्रम अघोर को झुका नहीं सकते, साथ ही वह राक्षस सभी देशों के लिए हमेशा ख़तरा बना रहेगा। इस पर सारे देशों के राजाओं ने एक जगह सभा बुलाई और राक्षस से पिण्ड छुड़ाने की योजना पर विचार करने लगे।
एक अनुभवी और दक्ष राजा ने यों सुझाव दिया - "लाखों चींटियाँ मिलकर एस सांप को मार सकती हैं। घास के तिनकों से मजबूत रस्सा बनाकर मत्त हाथी को बांधा जा सकता है। इसलिए एकता से बढ़कर कोई ज़बर्दस्त दूसरा साधन नहीं है। भूलोक के सारे मनुष्य एक हो जायें तो राक्षस का सामना करना कोई बड़ी समस्या नहीं है।"
राजा के ये विचार सुनने पर सब ने मान लिया कि एकता से बढ़कर दूसरा उपाय नहीं है।
इसके बाद अघोर का सामना करने के लिए सभी लोग एक जगह इकट्ठे हुए। पहले लोगों की भीड़ सैकड़ों व हजारों की संख्या में प्रारंभ हुई, अंत में लाखों और करोड़्रों तक पहुँची। सब लोग अपनी-अपनी भाषा और संस्कृति की बात भूलकर एकता के सूत्र में जुड़ गये।
इस तरह लोगों की जो एक महा सेना बनी, वह सेना दो दिन के अन्दर अघोर के समीप पहुँची। फिर क्या था, राक्षस और जनता के बीच लड़ाई शुरू हुई। पर कोई भी आदमी यह सोचकर नहीं डरा कि राक्षस को देखने या उसके पैरों के नीचे आने पर मर जायेंगे। लोगों ने अघोर को चारों तरफ़ से घेर लिया।


इसे देख राक्षस ने अपनी जिंदगी में पहली बार यह जाना कि डर क्या होता है। वह यह भी समझ गया कि इतने सारे लोगों के आक्रमण से उसका वज्र जैसा शरीर भी टिक नहीं सकता है। इसलिए वह जनता का सामना करने का विचार त्यागकर दौड़ने लगा। दौड़नेवाले राक्षस के पैरों के नीचे आकर कई आदमी कुचल गये। उसके शरीर पर लांघनेवाले कई आदमी नीचे कूदकर अपने हाथ-पैर तोड़्र बैठे। तो भी क्या हुआ? आखिर जनता को राक्षस का पिंड छूट गया।
इसके बाद अघोर ने फिर मनुष्यों का सामना करने का प्रयत्न किया पर घायल होकर भाग गया। फिर उसने जंगलों की शरण ली, अपनी जीवन पद्धति को बदल लिया, जानवरों को किफ़ायत के साथ मारकर खाने लगा।
इसके बावजूद मनुष्य के मांस खाने के लोभ का वह संवरण न कर सका। किस्मत की बात थी कि एक बार जंगल में उसे एक औरत दिखाई दी। उसे खाने के ख्याल से उसने हाथ फैलाकर उस औरत को पकड़ लिया। तभी वह औरत एक राक्षसी के रूप में बदल गई। इस पर अघोर चकित रह गया। उस राक्षसी को अघोर ने पाताल लोक में देखा था। उसका नाम अघोरिका था।
अघोरिका के साथ अघोर का अच्छा परिचय था। अघोरिका ने कहा- "तुम्हारे चले जाने के बाद मुझे ऐसा लगा कि पाताल लोक की शोभा नष्ट हो गई है। इसीलिए मैं तुम्हें खोजते हुए यहाँ पहुँची। सुरक्षा की दृष्टि से मैं मानवी के रूप में यों चली आई।"
इसके बाद अघोर ने उसे भूलोक के अपने अनुभव सुनाये। अघोरिका ने हँसकर कहा- "पगले, मनुष्य भले ही शक्तिशाली न हों, मगर अ़क्लमंद हैं। उनका सामना हमें ताक़त से नहीं, युक्ति के साथ करना है। उनके बीच रहते हमें उन्हीं लोगों के जैसे रूप धरकर उन्हें धोखा देना है। तब यहाँ की ज़िंदगी पाताल लोक से कहीं अच्छी मालूम होगी।"

उस दिन से वे दोनों मानव रूप धरकर मानवों के बीच जीने लगे। जल्द ही उन्हें मालूम हो गया कि मनुष्य अ़क्लमंद जरूर हैं, लेकिन स्वार्थी हैं। वे दोनों मनुष्यों के स्वार्थ को आसरा बनाकर उनके बीच आपस में लड़ाई-झगड़े पैदा करने लगे। फिर क्या था, जनता के बीच फिर से सब तरह के भेद-भाषा-भेद, जाति-भेद, वर्ण-भेद, वर्ग-भेद, धर्म-भेद पैदा हो गये। उनके बीच झगड़े-फसाद बढ़ गये। इस हलचल के बीच अघोर और अघोरिका मनुष्यों का अपहरण कर उन्हें खाने लगे, पर मनुष्य एक दूसरे पर संदेह करते रहे, लेकिन उनके बीच रहनेवाले राक्षसों पर संदेह नहीं कर पाये।
राक्षसों को यह जिंदगी बड़्री अच्छी लगी । उन्होंने भूलोक में स्थाई रूप से निवास करने का निश्चय कर लिया। उनकी संतान धीरे-धीरे दुनिया के कोने-कोने में फैलती गई। तब उन्होंने अपनी संतान को यों समझाया- "सावधानी से सुनो, मानवों को यह मालूम हो जाये कि तुम लोग राक्षस हो, तब वे लोग एक हो जायेंगे। पर मनुष्य रूप के भीतरी राक्षस का वे लोग बड़ा आदर करते हैं। इसी में हमारी खैरियत है।"
आज भी अघोर की संतान के लोग सभी जातियों, धर्मों, भाषाओं तथा देशों में फैलकर मानव जाति के एक होने में बाधा डाल रहे हैं। उनके निज रूप को प्रकट कर मानवों के बीच से जब तक हम उन्हें भगायेंगे नहीं, तब तक भूलोक में शाश्वत रूप से शांति पैदा नहीं हो सकती।
यज्ञशर्मा ने अपनी कहानी समाप्त कर कहाः "महाराज, जनता हमेशा शांतिपूर्ण जीवन ही बिताना चाहती है। अगर वे लोग आपस में लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं तो इसका मतलब है कि उन्हें उकसानेवाली ताक़तें उन्हीं के बीच हैं। इसलिए अराजकता से फ़ायदा उठानेवाले लोगों का पता लगाकर चाहे वे लोग आपके निकट के व्यक्ति क्यों न हो, जनता में अपना प्रभाव क्यों न रखते हों, उनका अंत करने पर देश में शांति सदा के लिए कायम हो जायेगी।"
यह कहानी सुनने पर शक्तिसेन ने अपने मंत्री का उद्देश्य समझ लिया और अपने राज्य के भीतर के प्रच्छ राक्षसों को हटाया। इसके बाद मगध राज्य की प्रतिष्ठा बढ़ गई।

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