Thursday, June 30, 2011

राजकुमार को मिल गई दुल्हन

एक राजा के कोई सन्तान नहीं थी। बहुत दिनों तक राजा और रानी सन्तान के लिए, खास कर एक पुत्र पाने के लिए तड़्रपते रहे। रानी ने राजा को दूसरा विवाह कर लेने की सलाह दी। पर दूसरी रानी से भी कोई सन्तान नहीं हुई। राजा ने तीसरा और चौथा विवाह भी किया, परन्तु राजा निःसन्तान ही रहा। मन्दिर जाने और भगवान की पूजा को छोड़कर राजा ने कितने ही व्रत और मत माने और अपने मंत्रियों से सलाह ली। फिर भी कोई सन्तति प्राप्त नहीं हुई। अन्त में वह यह सोचकर निराश हो गया कि उसके भाग्य में निःसन्तान होना ही बदा है। राज-काज के कामों में भी उसकी रुचि नहीं रही।
प्रजा को चिन्ता होने लगी। एक दिन एक महात्मा भ्रमण करते हुए राज्य की राजधानी में पहुँचे। राजकर्मचारियों से सूचना मिलने पर मुख्य मंत्री महात्मा के दर्शन करने आया और आदर के साथ महल में ले गया। राजा ने विनय और सम्मान के साथ महात्मा का स्वागत किया। आसन ग्रहण करने के बाद महात्मा ने राजा से कहा, "राजन, पता चला है कि आप अभी तक निःसन्तान हैं।"
"हाँ, महात्मन! यह सच है!" उदासीन और चिन्तित राजा ने उत्तर दिया।
"आश्चर्य है, तुम्हारी किसी रानी से कोई सन्तान नहीं हुई।" योगी ने भी चिन्ता व्यक्त की।
"मैंने कितने ही व्रत रखे, कितने मत माने और अपने उन मित्रों और शुभचिन्तकों के परामर्शों का पालन किया जो मेरे उत्तराधिकारी को देखने के लिए उत्सुक थे।" राजा ने कहा।
महात्मा कुछ देर तक आँखें बन्द करके ध्यानमग्न हो गये। फिर राजा से पूछा, "राजन, पर क्या सर्वशक्तिमान परम प्रभु की कृपा के लिए कभी प्रार्थना की?"

"नहीं, कभी नहीं, महात्मन!" राजा ने कहा।
"यही आप से भूल हो गई!" योगी बोले। "पर क्या अब भी कोई सन्तान या पुत्र की इच्छा आप के मन में है?"
"हाँ मुनिवर", राजा बहुत उत्सुक होकर बोला। "लेकिन कैसे मेरी यह मनोकामना पूरी होगी, कृपा करके वह उपाय मुझे बताइये स्वामी।"
"आपने परम प्रभु से प्रार्थना करने के अलावा अपनी इच्छापूर्ति के लिए सब कुछ कर लिया है। इसलिए मेरी सलाह यह है कि अब आप परम प्रभु की शरण में जायें और उनके अनुग्रह के लिए प्रार्थना करें। आप की प्रार्थना वे अवश्य सुनेंगे।" योगी ने कहा। "हाँ एक बात और; साथ ही, अपनी सम्पत्ति की एक चौथाई गरीबों पर खर्च करें। प्रभु आप पर प्रस होंगे और कृपा करेंगे। मैं एक वर्ष के उपरान्त फिर आऊँगा और निश्चित रूप से यहाँ एक नन्हें मु को खिलखिलाता देखूँगा।"
राजा ने महात्मा के चरणों में प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लिया। मंत्री महात्मा को महल के मुख्य द्वार तक विदा करने गये।
राजा उसके बाद हर रोज काफी समय प्रार्थना और ध्यान में बिताने लगे। उन्होंने भूमिहीनों को भूमि का दान दिया, गरीबों को अश्न, रोजगार के लिए पूंजी और वृद्धजनों के लिए तीर्थयात्रा का प्रबन्ध किया। कुछ दिनों के बाद सबसे छोटी रानी की दासी ने समाचार दिया कि रानी माँ बननेवाली है। राजा की प्रसता की सीमा न रही। रानी ने समय पूरा होने पर एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। बच्चे के जन्म पर राजा ने स्वयं राज्य भर में इस शुभ सन्देश की यथोचित घोषणा भी। राज्य में खुर्शियाँ मनाई गईं। और काफी दिनों तक उनका आनन्दोत्सव चलता रहा।

कई वर्ष बीत गये। राजकुमार अब एक सुन्दर युवक था- गोरा बदन और आकर्षक शारीरिक गठन। एक दिन राजा अपनी चारों रानियों के साथ राजसी उद्यान में बातचीत कर रहा था।
"अपने बेटे के लिए एक सुन्दर दुल्हन कहाँ मिलेगी?" राजा ने पूछा।
"आप जहाँ से भी कहेंगे," चुटकी लेते हुए सभी रानियों ने कहा, "हम सब वहीं से दुल्हन ले आयेंगी।"
सभी रानियों ने उन ज्योतिषियों को बुला कर जानकारी प्राप्त की जो राज्य के बड़्रे घरानों से परिचित थे। उन्हें यह भी बताया गया कि विवाह योग्य कन्याओं के सभी परिवारों में जाकर उनकी सूचना लाकर दें। तभी राजा भी उनकी बातचीत में सम्मिलित होकर कहा, "कन्या चाहे तुम सब कहीं से भी लाओ, धनी परिवार से या गरीब घर से - पर वह मेरे सुन्दर बेटे के समान ही रूपवती और मोहक हो!"
ज्योतिषियों ने राजा को आश्वासन देते हुए कहा, "हम तभी वापस आयेंगे जब हमें राजकुमार के योग्य वैसी ही कोई कन्या मिल जायेगी।" पूरे राज्य में उन सब ने बहुत तलाश की, किन्तु राजकुमार की दुल्हन के योग्य कोई सुन्दर कन्या नहीं मिली। कुछ वर्ष बीत गये।
जब राजकुमार को मालूम हुआ कि उसके विवाह के लिए दुल्हन की तलाश की जा रही है, वह मॉं के पास जाकर बोला, "माँ, पिताजी को कृपा करके बता दीजिये कि वे मेरे विवाह के लिए किसी वधू की खोज न करें क्योंकि मैं अभी विवाह करना नहीं चाहता। मैं कुछ समय तक और अविवाहित रहना चाहता हूँ। और उसके बाद जब मैं विवाह के योग्य हो जाऊँगा, मैं स्वयं अपने लिए दुल्हन ले आऊँगा।"
सबसे छोटी रानी ने राजा को अपने बेटे का सन्देश सुना दिया। राजा बेटे का यह विचार सुनकर नाराज हो उठा। उसने राजकुमार को बुला कर फटकारा। "तुम क्यों नहीं चाहते कि हम सब तुम्हारे विवाह के लिए योग्य दुल्हन खोजें? तुम हमें लज्जित करोगे। लोग हमें कृपण कहेंगे और यह कहकर दुत्कारेंगे कि यह कैसा राजा है, इसका एक ही पुत्र है, फिर भी उसके विवाह के लिए दुल्हन नहीं लाता! क्या मैं ऐसी बदनामी के लायक हूँ?"

राजकुमार चुपचाप रहा। उसकी चुप्पी से राजा और भड़्रक उठा। ‘‘यदि तुम मेरी बात नहीं सुनोगे और तुम यही चाहते हो कि मेरी बदनामी हो तब तुम महल में नहीं बल्कि कारागार में रहोगे। मैं जानता हूँ, लोग कहेंगे- देखो, यह कैसा राजा है, इसने अपने एकलौते बेटे को सिर्फ इसलिए बन्दी बना दिया है कि वह विवाह करना नहीं चाहता। मैं उनके ऐसे बकवासों की परवाह नहीं करता।''
राजा ने मंत्री को बुलाकर कहा, ‘‘हमसे बिना कुछ सवाल किये राजकुमार को ले जाओ और इसे कारागार में डाल दो। जब तक विवाह के लिए वह राजी नहीं हो जाता, तब तक वहीं रहेगा।''
राजकुमार विनीत भाव से मंत्री के साथ चला गया। मंत्री ने उसे कारागार में रख कर सलाखों के बन्द होने पर उससे कहा, ‘‘यदि राजा के आदेश का आप पालन करें तो हम सब आप का राजा के समान ही सम्मान करेंगे।'' मंत्री भारी मन के साथ लौटा।
कुछ समय के बाद राजा ने कारागार में आकर रक्षकों से कहा, ‘‘ध्यान रखो कि मेरी रानियाँ यहाँ नहीं आ पायें और उसे छोड़्रने के लिए न कहें। उस पर कोई मेहरबानी न करना और न किसी को उसके लिए सहानुभूति दिखाने देना। उससे हर रोज पूछना कि क्या वह विवाह के लिए तैयार है। यदि वह ‘हाँ' कहे तो फौरन मुझे आकर बताना और उसे कारागार से मुक्त करने के लिए मैं स्वयं यहाँ आऊँगा। दूसरे कैदियों की तरह उससे भी सख्त काम लेना।''
रक्षकों ने राजा के आदेश का अक्षरशः पालन किया। वे राजकुमार से हर रोज सवाल पूछना नहीं भूले। लेकिन राजकुमार हर बार यही कहता रहा कि वह विवाह करना नहीं चाहता। एक रात को रक्षकों ने कुछ आवाजें सुनीं लेकिन उन्हें कोई दिखाई नहीं पड़्रा। परन्तु उनकी बातचीत सुनने से उन्होंने समझा कि बात करनेवाला वह व्यक्ति पावन उपवन का शासक परगना का सरदार है । वह अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ राजकुमार के बारे में सुनकर उससे मुलाकात करने आया था।

रक्षकों ने उन लोगों की बातचीत सुनी। सरदार ने कहा, "मनुष्यों में ऐसी कोई लड़की नहीं है जो राजकुमार की दुल्हन बन सके। इसलिए शायद वह हमारी किसी लड़की को अपनी दुल्हन बनाना चाहता हो।"
"यदि इनमें से कोई उसकी दुल्हन बनने को तैयार हो", सरदार की पत्नी ने कहा।
यह सुनकर बड़ी बेटी ने कहा, "पिता और माँ, यदि आप मुझे यहाँ रात भर रहने की अनुमति दें तब मैं यहीं रुक जाऊँगी और राजकुमार का दिल जीतने की कोशिश करूँगी।"
वे लोग उसकी बात से सहमत हो गये और अपनी बेटी को कारागार में छोड़ कर चले गये। माता-पिता और छोटी बहन के चले जाने के बाद बड़ी बहन सलाखों से किसी तरह निकल कर राजकुमार के कमरे में पहुँच गई। राजकुमार नींद में था। वह उसकी चारपाई के निकट जाकर उसके जागने का इन्तजार करने लगी। शीघ्र ही राजकुमार जाग पड़ा। उसे एक सुन्दर लड़की को अपने कमरे में देख कर आश्चर्य हुआ। पर वह अन्दर कैसे आई?
लड़की के मोहक रूप ने राजकुमार को वशीभूत कर लिया। उसने उससे पूछा, "क्या तुम मुझसे विवाह करोगी?" लड़की ने कहा, "तहे दिल के साथ!" राजकुमार ने अनुमान लगाया कि यह लड़की न केवल रूप की रानी है बल्कि कुछ करामत भी जानती है जिसकी मदद से वह उसके कमरे के अन्दर आ गई। उसके पास एक अँगूठी थी। उसने वह अँगूठी लड़्रकी की उंगली में पहना दी। उसने देखा कि लड़की की उंगली में भी एक अँगूठी है । राजकुमार ने कहा कि वह अपनी अँगूठी उसकी उँगली में पहना दे। इस प्रकार उन दोनों का विवाह सम्प हो गया।
प्रातःकाल होने पर रक्षक ने राजकुमार के कमरे में एक लड़की को देख कर चकित रह गये। एक रक्षक ने राजा को इसकी सूचना दी। राजा अपनी चारों रानियों के साथ तुरन्त कारागार में पहुँचा।
उन्होंने महसूस किया कि उन्होंने राजकुमार के केवल विवाह कर लेने पर जोर दिया था। राजकुमार ने तब कहा था कि वह अपनी दुल्हन स्वयं लायेगा। उसने अपना वचन पूरा किया। इसलिए वे लोग सभी राजकुमार को अपनी पसन्द की दुल्हन के साथ देख कर बहुत प्रस हुए और उसे बधाई दी। अन्त भला तो सब भला!





No comments:

Post a Comment