Thursday, June 30, 2011

समय का पालन

राधामोहन सुप्रसिद्ध पंडित थे। उस दिन शाम को समस्तपुर के ज़मीन्दार की अध्यक्षता में उनका सम्मान संपन्न होनेवाला था। उनका इरादा था कि उस अवसर पर एक संदेशात्मक कविता सुनाऊँ। वे इसी विषय को लेकर तीव्र रूप से सोचने लगे। ‘सूर्योदय-अस्तमन, दिन-रात, पूर्णिमा, अमावास, ग्रीष्म, पावस सबके सब निश्चित समय पर आते हैं। प्रकृति का हर अणु समय का पालन करता है। मनुष्य को अन्य जंतुओं से अलग करता है, अनुशासन। अनुशासन का प्रथम व अंतिम चरण है, समय का पालन। प्रगति चाहनेवाले हर व्यक्ति का प्रथम कर्त्तव्य है समय का पालन। यह उसकी सांस के बराबर है।' उन्होंने सोचा कि यह सन्देश आज के वातावरण के अनुकूल रहेगा, क्योंकि मंत्री, नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सभी अपनी-अपनी ड्य़ूटी पर विलम्ब से पहुँचते हैं और समय का मूल्य नहीं समझते। इसलिए इस अर्थ की कविता रचने के लिए वे दीर्घ सोच में पड़ गये।
उस दिन दुपहर को उन्होंने ज़मीन्दार के यहाँ स्वादिष्ट भोजन किया, जिसकी वजह से उन्हें थोड़ी देर से निकलना पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद घोड़ागाड़ी की गति बढ़ गयी। वे उस वेग को देखकर ज़रा घबरा गये और उन्होंने गाड़ीवाले से कहा कि वह वेग को कम करे।
‘‘पहले ही देरी हो चुकी है। अभी और बहुत दूर जाना है।'' गाड़ीवाले ने कहा।
‘‘सभा में पहुँचने में देर होगी, इसलिए इसके लिए दस साल पहले ही वहाँ पहुँचना उचित भी तो नहीं है,'' पंडित ने कहा।
इसपर गाड़ीचालक हँस पड़ा और गाड़ी की गति धीमी कम कर दी।

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