
कुंटापुर गाँव में अशर्फीलाल नामक एक व्यापारी रहा करता था। फुटकर चीज़ों की दुकान चलाते हुए उसने खूब धन कमाया। पर, वह अव्वल दर्जे का कंजूस था।
अशर्फीलाल एक दिन अकस्मात् बुखार से पीड़ित हो गया। मुँह से बात भी निकल नहीं पा रही थी। ग्रम के वैद्य ने उसकी नब्ज की परीक्षा की। फिर सभी प्रकार की परीक्षाएँ भी कीं । बहुत ही चिंतित उसके परिवार के सदस्यों से वैद्य ने कहा, ‘‘शरीर में कोई दोष नहीं दीखता। लगता है कि यह भय का ज्वर है।''
वैद्य की बातों का विश्वास करके उसके बेटे जय ने भूत वैद्य को बुलवाया। उसने मंत्रों का पठन किया। ताबीज़ पहनवाया। पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। जय फिर से वैद्य के पास गया और कहा, ‘‘आपके कहे अनुसार भय के ज्वर के लिए इलाज करवाया। पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ।''
तब वैद्य ने कहा, ‘‘देखो बेटे, भय ज्वर का यह मतलब नहीं कि तुम्हारे पिता किसी भूत से डरते हैं। डरानेवाली किसी भी बात से यह बुखार आ सकता है। भय पैदा करनेवाली किसी घटना से भी यह भय ज्वर आ सकता है। कोई ऐसी घटना घटी होगी, जिसके कारण वे भय से पीड़ित हुए होंगे। खूब सोचो और उसके अनुसार उनका इलाज कराओ। उन्हें समझाओ और इस ज्वर को दूर भगाओ । अन्यथा दिन ब दिन उनके कमज़ोर होते जाने की संभावना है।''
वैद्य की ये बातें सुनते ही जय को एक घटना याद आयी। पिता की कंजूसी से तंग आकर दो दिन पहले उसने उनसे कहा था, ‘‘मेरी जायदाद मुझे सौंप दो। मैं जैसे भी हो, जी लूँगा।'' इस विषय को लेकर दोनों में बहुत देर तक वाद-विवाद हुआ। इस घटना की याद आते ही उसे लगा कि पिताजी शायद इसी कारण बीमार पड़ गये। इसपर उसे दुख भी हुआ। घर पहुँचकर उसने यह बात माँ और पत्नी से बतायी।
फिर वह पिता के पास गया और बोला, ‘‘पिताजी, मुझे माफ़ कीजिये। मैं घर छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा। आप ही के साथ रहूँगा। जायदाद का बँटवारा नहीं चाहूँगा।''

फिर भी अशर्फीलाल का बुखार कम नहीं हुआ। अशर्फीलाल के बीमार पड़ने से जय खुद दुकान संभालने लगा। जिस-जिसने पिता के बारे में पूछा, उस-उससे उसने पिता के बुखार के बारे में बताया।
कमलेश ने बहुत पहले अशर्फीलाल से पाँच सौ रुपयों का कर्ज़ लिया था। वह उस रक़म को लौटा नहीं रहा था। उसने और समय माँगते हुए अशर्फीलाल से विनती की। अशर्फीलाल ने उसकी विनती ठुकरा दी और तुरंत लौटाने पर ज़ोर दिया। इसपर कमलेश ने धमकी देते हुए कहा, ‘‘एक दमड़ी भी नहीं दूँगा। तुझे जो करना है, कर ले।''
पर, अब कमलेश को लगा कि रक़म न लौटाने के कारण ही डरकर अशर्फीलाल ज्वर ग्रस्त हो गया। सच कहा जाए तो कमलेश अच्छा आदमी था। बस, क्रोधित अवस्था में धमकी उसके मुँह से निकल गयी। रक़म लौटाने की उसकी इच्छा तो थी ही । अब उसकी हालत देखकर उसके हृदय में दया उभर आयी। उसने जाकर बीमार अशर्फीलाल से कहा, ‘‘डरो मत। तुम्हारी रक़म ब्याज सहित वापस कर दूँगा।''
फिर भी अशर्फीलाल के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ। गाँव भर को मालूम हो गया कि अशर्फीलाल भय ज्वर के कारण खाट पर से उठ ही नहीं पा रहा है। सबके सब आये और सहानुभूति प्रकट की। फिर भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
पास ही के गाँव के निवासी उसके समधी को भी यह बात मालूम हुई। वह आया और बोला, ‘‘दहेज देने पर ज़ोर दिया था। मुझे कोई जल्दी नहीं है। जब संभव हो, देना। अगर दे नहीं पाओगे तो भी कोई बात नहीं। आगे कभी भी दहेज का नाम ही नहीं लूँगा। तुम्हारी लाडली बेटी हमारे घर में सुखी है। इस दहेज को लेकर हमने उसे कभी भी तंग नहीं किया। परेशान मत होना।'' यों उसने उसे धैर्य दिया।

फिर भी अशर्फीलाल का बुखार कम नहीं हुआ। अशर्फीलाल की पत्नी गजलक्ष्मी यह सब कुछ देख रही थी। उसे अचानक एक बात याद आयी। उसने पति के कान में धीरे से कुछ कहा। अशर्फीलाल यह सुनते ही उठकर बैठ गया।
यह दृश्य देखकर उसका बेटा, बहू चकित रह गये। उन्होंने गजलक्ष्मी से पूछा, ‘‘तुमने क्या कहा? एकदम उठकर बैठ गये?''
शर्मिंदा होते हुए गजलक्ष्मी ने कहा, ‘‘जब से शादी हुई, तब से लेकर सोने का करधनी बनवाने के लिए ज़ोर देती आ रही हूँ। किन्तु उन्होंने कभी भी इस विषय में सोचा तक नहीं। एक हफ्ते के पहले मैंने धमकी दी कि करधनी नहीं बनवाओगे तो मैं कुएँ में गिरकर आत्महत्या कर लूँगी। लगता है, इसी को लेकर वे चिंतित हैं और ज्वर ग्रस्त हो गये। बड़ी देरी से मुझे यह बात याद आयी। मैंने उनके कान में कह दिया कि करधनी बनवाने की कोई ज़रूरत नहीं है। यही सुनकर वे बैठ गये होंगे।''
उसके बीमार हो जाने के बाद पत्नी, बहू और बेटा कितने परेशान और दुखी हुए, अशर्फीलाल ने देख लिया। सारी बातें एक-एक करके उसकी आँखों के सामने आने लगीं। गाँववालों के प्रति भी उसमें कृतज्ञता भाव जगा। पत्नी की ओर हाथ दिखाते हुए उसने कहा, ‘‘इतनी बड़ी कमर से लिए सोने की करधनी बनवानी हो तो जानती हो, कितना सोना चाहिये? इसी डर से मैं बीमार पड़ गया। पर अब समझ में आ गया कि मुझ पर जान देनेवाली पत्नी के लिए कितना भी खर्च क्यों न करूँ, कम ही है। अवश्य ही करधनी बनवाऊँगा।''
यह जानकर गाँव के सब लोग खुश हो गये कि अशर्फीलाल अब स्वस्थ हो बोलने लगे।
गजलक्ष्मी ने पति का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘अब आपकी तबीयत ठीक हो गयी। यही मेरे लिए सब कुछ है। आपकी कंजूसी से तंग आकर मैंने उस दिन ऐसी मांग पेश की, जिसके लिए मैं माफी माँगती हूँ। अब करधनी पर मेरा मोह नहीं रहा। अगर बनवाना ही है तो हमारी बहू के लिए बनवाइये। देखने में बड़ी ही अच्छी लगेगी।''
गजलक्ष्मी की बात पर सब बहुत प्रसन्न हुए।

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