Thursday, June 30, 2011

मनानेवाला

एक दिन चंद ग्रामीण चबूतरे पर बैठकर गपशप कर रहे थे। बालकृष्ण नामक एक लड़का अचानक छींकने लगा। कामेश ने उसे सलाह दी, ‘‘हाल ही में मैं जुकाम से पीड़ित था। गोलियाँ खाते ही जुकाम गायब हो गया। जाओ मेरी पत्नी से गोलियाँ लेकर खा लो।'' लड़का ‘‘हाँ'' कहता हुआ वहाँ से चला गया।
‘‘बालकृष्ण किसी की बात सुनता ही नहीं। तुमने तो बड़ी आसानी से उसे मना लिया'', एक वृद्ध ने उसकी तारीफ़ करते हुए कहा। अपनी प्रशंसा से कामेश ने उत्साहित होकर कहा, ‘‘इस बालक को ही नहीं बल्कि हठी से हठी आदमी को भी मैं अपनी बातों से मनाने की शक्ति रखता हूँ।''
बग़ल में ही बैठे रामेश ने कहा, ‘‘दूसरे की बात क्यों करते हो? सामने कोई चीज़ दिखायी पड़े तो मैं उसे सच मान लेता हूँ। पर यह तब तक संभव नहीं, जब तक उसे मानने के लिए मैं तैयार नहीं होता। उदाहरण के लिए मेरे पीछे बरगद का पेड़ है। मुझसे यह मनाकर देखो कि वह नीम का पेड़ है।''
रामेश के पीछे सचमुच ही नीम का पेड़ था, इसलिए कामेश ने रामेश से कहा, ‘‘तुम्हारे पीछे तो नीम का ही पेड़ है, उसे बरगद क्यों कहते हो?'' चिढ़ता हुआ वह नीम के पत्ते तोड़कर ले आया और उन्हें रामेश को दिखाया। रामेश ने उन पत्तों को देखते हुए कहा, ‘‘मानता हूँ, ये नीम के पत्ते हैं। पर इसका क्या भरोसा कि ये पत्ते उसी पेड़ के हैं?'' तब कामेश वहाँ उपस्थित लोगों से सबूत देने को कहा। इसपर रामेश ने कहा, ‘‘उनसे क्यों कहलाते हो? मेरी आँखें देख सकती हैं, तब दूसरों की बातों को सुनने की क्या ज़रूरत है?''
‘‘ठीक है, पीछे मुड़कर देखो। तुम्हारी आँखें सही-सलामत हों तो वे तुम्हें बता देंगी कि वह नीम का ही पेड़ है,'' कामेश ने क्रोध के स्वर में कहा।
‘‘पीछे मुड़कर देखने की मेरी इच्छा नहीं है। चाहते हो तो उस पेड़ को मेरे सामने रखना। अन्यथा मान लेना कि तुम मुझे मनाने में असफल हो गये हो।'' रामेश की बातें सुनकर सब हँस पड़े।
कामेश फिर से एक और बार रामेश के हाथों हार गया।


No comments:

Post a Comment