Thursday, June 30, 2011

प्रकृति के प्रेम का रहस्य


एक किशोरवय बालक, बेचारे अंकस के पास खाने के लिए कुछ भी न था। वह दोपहर में जंगल की ओर इस उम्मीद से निकल पड़ा कि शायद भूख मिटाने के लिए कुछ फल मिल जाये। शीघ्र ही उसे एक मात्र वृक्ष पर मात्र एक फल दिखाई पड़ा जो न सिर्फ खाने योग्य या बरन बहुत स्वादिष्ट भी था। वह खुशी से उछल पड़ा। लेकिन हाय! वह तो वृक्ष की ऊपरी शाखा पर लटक रहा है और वृक्ष इतना पतला है कि चढ़ पाना सम्भव नहीं है। वह फिर दुखी हो गया।
तभी उसे एक वाणी सुनाई पड़ी, ‘‘वृक्ष के नीचे थोड़ी सी खुदाई करो तो जरूरत से अधिक धन मिल जायेगा।'' सचमुच ! ऐसा ही हुआ। वृक्ष के नीचे खोदते ही उसे सोने का एक ढेला मिला। उसने महसूस किया कि यहाँ अभी और सोना है, लेकिन वह सब एक ही बार में निकालना नहीं चाहता था। तुरन्त वह सोना लेकर बाजार चला गया और उसे अशर्फियों में बदल लिया। फिर एक बैलगाड़ी खरीद कर और उसे भोजन तथा अन्य जरूरी चीजों से लाद कर अपनी झोंपड़ी में लौटा।
दूसरे दिन उसने कुछ राजमजदूरों को बुला कर जंगल के निकट अपने लिए एक भवन निर्माण का कार्य आरम्भ कर दिया।वास्तव में वह भवन बन कर तैयार होने पर महल जैसा लगने लगा। वह गुप्त रूप से वहाँ जाकर, जहाँ उसे पहले सोना मिला था, और सोना लाने लगा। जब उसके पास एक महल और अनेक नौकर-चाकर हो गये तब वह चाहने लगा कि दूसरे भी उसके इर्द गिर्द रहें। उसने अपने महल के चारों ओर बसने में बहुतों की सहायता की।
अंकस ने विवाह कर लिया और कुछ वर्षों में ही एक सलोने बेटे और प्यारी गुड़िया सी एक बेटी का पिता भी बन गया। सुख शान्ति से दिन बीत रहे थे। लेकिन पास के राजा को यह डर हो गया कि अंकस कहीं अपने को एक दिन राजा न घोषित कर दे। इसलिए वह चाहता था कि अंकस का कोई वारिस न हो, जिससे उसके मरने पर उसकी सारी जायदाद वह हथिया ले। इसलिए उसने उसके पास अपने दो बदमाश दरबारियों को भेजा। ये दरबारी अभिनय करने में बड़े दक्ष थे। राजा के गुप्तचरों की सहायता से उन्होंने अंकस का प्रिय घोड़ा चुरा लिया और उसे घने जंगल के अन्दर एक पेड़ से बाँध दिया। जब अंकस घोड़े की खोज करने में परेशान था, तब वे ज्योतिषी बन कर उसके पास आये और कुछ गणना के बाद सचमुच घोड़े का पता लगा दिया।

अंकस ने उनसे अपने बच्चों, बेटे कर्मा तथा बेटी पुष्पनील, के भविष्य के बारे में जानना चाहा। ढोंगी ज्योतिषियों ने अंकस को विश्वास में लेकर कहा कि, ‘‘तुम्हारे बच्चे तुम्हारी, तुम्हारी पत्नी तथा तुम्हारे आस-पास रहनेवालों की मृत्यु के कारण बनेंगे। उन्हें जंगल में छोड़ देना ही अच्छा होगा।'' अंकस उदास हो गया। लेकिन उसने ज्योतिषियों की सलाह मान ली। रात्रि में बच्चों को दवा की एक खुराक खिला कर बेहोश कर दिया गया। फिर उन्हें घोड़ागाड़ी में जंगल के दूर दूसरे किनारे पर समुद्र के निकट पहुँचा कर एक पत्थर की पटिया पर छोड़ दिया गया।
सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर कर्मा और पुष्पनील जग पड़े। लेकिन रोने-धोने या जंगल में भटकने से भयभीत होने की अपेक्षा वे सूर्योदय की भव्यता और समुद्र की लुढ़कती स्वर्णिम लहरों को देख कर मुग्ध होने लगे। ‘‘हमारे माता-पिता ने हमें प्रकृति के सौन्दर्य का आनन्द देने के लिए ऐसा निश्चय किया होगा।'' कर्मा ने कहा। ‘‘तुम ठीक कहते हो। पुष्पों के उस गुच्छे को देखो। क्या उससे भी अधिक दिव्य सौन्दर्य कभी देखा है?''पुष्पनील ने पूछा। ‘‘नहीं, लेकिन देखो, ऐसे और भी वहाँ पर उतने ही प्रभावशाली सौन्दर्य बिखरे पड़े हैं।'' कर्मा ने अन्य अनेक पुष्पों से लदे वृक्षों व झाड़ियों की ओर संकेत करते हुए बहन का ध्यान आकर्षित किया।
वे जंगल के स्वादिष्ट फल खाते, झरनों का पानी पीते और आनन्द से उछलते-कूदते हुए अपना समय बिताने लगे। धीरे-धीरे जंगल में अन्धकार फैलने लगा। ‘‘हमारे पिता के आदमियों को शायद याद नहीं होगा कि उन्होंने हमें कहाँ छोड़ा है।'' पुष्पनील ने टिप्पणी की।
अचानक उन्हें अपने सामने चाँदनी से जगमगाता एक महल दिखाई पड़ा। ‘‘कैसा आश्चर्य है! अब तक हमने इसे देखा नहीं'', उन्होंने कहा। जैसे ही वे उस जादू-घर के निकट गये, एक स्नेह सिक्त वाणी ने उन्हें अन्दर आने के लिए आमंत्रित किया। वहाँ उनके लिए खाना और बिस्तर तैयार थे। ‘‘लेकिन हमारा मेजवान कौन है?'' दोनों चकित थे। ‘‘मैं प्रकृति की आत्मा हूँ। तुमने मेरे वृक्षों को, समुद्र को प्यार किया, मेरे वातावरण को स्नेह दिया। इससे हमें आनन्द मिलता है। अब बताओ, तुम्हें वरदान में क्या चाहिये? ढेर सारा स्वर्ण या प्रकृति का रहस्यमय प्रेम?'' अदृश्य आत्मा ने पूछा।

‘‘प्रकृति का रहस्यमय प्रेम!'' भाई-बहन ने एक साथ कहा। ‘‘श्रेष्ठ! प्रकृति हमेशा तुम्हारे साथ मित्रवत व्यवहार करेगी'', अदृश्य आत्मा ने कहा।
‘‘धन्यवाद'', बालक और बालिका ने उत्तर दिया। फिर वे भोजन करके सो गये। जब वे प्रातःकाल उठे तब उन्हें महल दिखाई नहीं पड़ा। बल्कि कुछ डरावने डाकुओं ने उन्हें घेरते हुए कहा, ‘‘चलो हमारे साथ, तुम हमारे गुलाम हो।''
‘‘हम तुम्हारी बात नहीं मानते,'' कर्मा ने दृढ़तापूर्वक कहा।
‘‘ए, नहीं मानते? गुस्ताख!'' बदमाशों के सरदार ने अपने तेज चमचमाते चाकू दिखाते हुए कहा।
लेकिन दूसरे ही क्षण वह पीला पड़ गया। एक भयंकर गर्जन से जंगल काँप गया। अन्य डाकू तो भाग गये लेकिन उनके सरदार को एक शेर घसीटता हुआ ले गया। फिर सब कुछ शान्त हो गया। आश्चर्य की बात यह थी कि कर्मा और पुष्पनील बिलकुल नहीं डरे। उन्होंने अनुभव किया कि प्रकृति का रहस्यमय प्रेम उनके अन्दर क्रियाशील है। वे समुद्र तट पर घूमने लगे। एक जलपोत लंगर डाले खड़ा था तथा उसका कप्तान अपने कर्मियों के साथ उनकी ओर बढ़ा चला आ रहा था।
‘‘हम अपने माता-पिता के पास जाना चाहते हैं। क्या आप हमारी मदद कर सकते हैं?'' कर्मा ने उनसे पूछा। फिर उसने कप्तान को अपने गाँव के बारे में बताते हुए कहा कि कैसे एक दिन प्रातःकाल अचानक उन्होंने अपने आप को बहन के साथ जंगल में पाया।
‘‘हम्म्...!'' कप्तान ने कहा। ‘‘यदि मेरे पोत पर चढ़ जाओ तो मैं तुम्हें तुम्हारे गाँव में पहुँचा दूँगा।''
प्रसन्नचित्त होकर कर्मा और पुष्पनील पोत पर बैठ गये। लेकिन जब पोत यात्रा पर चल पड़ा तब कप्तान ने ठठा कर हँसते हुए कहा, ‘‘लड़की मेरी बीवी और लड़का मेरा नौकर बनेगा। हा हा हा...!''
‘‘बीवी ! मैं तुम जैसे बदमाश की?'' पुष्पनील चिल्लाई। पुष्पनील के ऐसे कहते ही कप्तान ने उसे गुस्से में उठा कर लहराते सागर में फेंक दिया। ‘‘ओ मेरी बहन, मेरी जिन्दगी!'' कर्मा का हृदय फूट पड़ा। उसकी आँखों के सामने ही एक शार्क मछली ने देखते-देखते उसकी बहन को निगल लिया।
‘‘अब मेरा गुलाम बनो या मौत के लिए तैयार हो जाओ।'' कप्तान ने कर्मा को कहा। लेकिन तभी एक भयंकर तूफान ने पोत को अपनी चपेट में ले लिया। कर्मा को छोड़ कर सभी कर्मी ध्वस्त पोत के साथ सागर की कब्र में समा गये। अर्द्धचेतन अवस्था में एक लकड़ी के तख्ते के सहारे, जिसे कुछ डॉलफिन आगे बढ़ा रहे थे, कर्मा तट पर जा लगा।

होश में आने पर वह एक बुढ़िया की झोंपड़ी में था। ‘‘बेटे, तीन दिन पहले मैं तुम्हें समुद्र तट से उठा कर लाई हूँ। मेरा दुनिया में अपना कोई नहीं है, इसलिए भगवान ने तुम्हें मेरे लिए भेज दिया है। मैं तेरी देखभाल करूँगा और तुम मेरी देखभाल करना।'' बुढ़िया खुश होती हुई बोली।
कर्मा ने बुढ़िया के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। किन्तु अपनी बहन के लिए उदास था। फिर भी, उसने झोंपड़ी के चारों ओर की सूखी भूमि को हरा-भरा उद्यान बनाने में अपने आप को व्यस्त रखा। एक वर्ष बीत गया।
‘‘बेटे, राजधानी में युवराजा का विवाह सम्पन्न हो रहा है। बरात देखने योग्य होगी। चलोगे देखने?'' बुढ़िया ने बड़े प्यार से थपथपाते हुए कर्मा को कहा। दोनों उल्लास और उत्कण्ठा के वातावरण से ओतप्रोत राजधानी में पहुँच गये। अग्रदूतों ने घोषणा की कि राज्य के बाहर से आनेवाले दर्शक एक विशेष मंच पर खड़े हो जायें।
कर्मा को मंच पर लाया गया। शानदार बरात धीरे-धीरे गन्तव्य की ओर बढ़ रही थी। अचानक दुलहा-दुलहिन का रथ रुक गया।
‘‘मेरा भाई, मेरा जीवन।'' दुलहिन चिल्ला पड़ी। राजा के आदमी भीड़ को चीरते हुए कर्मा के पास गये और उसे रथ के पास ले आये। कर्मा को यह अनुभव करने में थोड़ी देर लगी कि दुलहिन और कोई नहीं बरन उसकी बहन है जिसे शार्क निगल गया था।
हाँ सचमुच! शार्क ने उसे निगल लिया था, लेकिन तट पर आकर उसने उगल दिया। प्रातः सैर करते समय राजकुमार ने उसे देख लिया और वह उसे महल में ले गया जहाँ उसकी सेवा-सुश्र्रूषा की गई। एक वर्ष तक वह अपने भाई की सब जगह तलाश करती रही, परन्तु व्यर्थ! राजकुमार पुष्पनील को प्यार करने लगा था। उसने इस शर्त पर पुष्पराज को अपने साथ विवाह कर लेने को राजी कर लिया कि वे भाई की खोज निरन्तर जारी रखेंगे।
विवाहोपरान्त कर्मा राजा का मुख्य सलाहकार बन गया । कुछ दिनों के पश्चात वह सेना लेकर अपने माता-पिता की खोज करने निकल पड़ा। वे दुष्ट पड़ोसी राजा के द्वारा दरिद्र बना दिये गये थे। वह उन्हें अपने नये घर में ले आया। फिर कुछ तैयारी के बाद उस दुष्ट राजा पर आक्रमण पर उसका राज्य ले लिया और स्वयं वहाँ का राजा बन गया।
‘‘हर घटना चक्र पर प्रकृति का रहस्यमय प्रेम हमारी रक्षा करता रहा । है न?'' भाई-बहन प्रायः आपस में यह कहते रहते।



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