Thursday, June 30, 2011

दो बहनों की कहानी

दुर्गापुर में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ रहता था। बेटियों के नाम थे- उमाबी और जुमाबी। ब्राह्मण बहुत दरिद्र था, फिर भी वह कुछ काम करना नहीं चाहता था। भीख माँगने में शर्म आती थी। सोचता था कि कहीं से मुट्ठी भर चावल और दाल मिल जाये तो बस वही उसके लिए बहुत है।
एक दिन उसने कहीं से चावल का चूर्ण और नारियल के कुछ टुकड़ों का इन्तज़ाम कर लिया। उसकी पत्नी ने कहा कि वह उससे पीठा (दक्षिण भारत के दोसा के समान) बना लेगी। उसने लपसी बनाकर सेकने के लिए तवे पर डाल दिया। जब ब्राह्मण ने तवे को श-श कहते सुना तब वह एक धागा लेकर रसोईघर में गया। उसने एक गाँठ बाँधी। तवे ने फिर श-श की आवाज लगाई। ब्राह्मण ने दूसरी गाँठ बाँधी। जब उसने अन्त में देखा कि उसकी पत्नी लपसी का बर्तन साफ कर रही है, तब उसने समझा कि अब और पीठा नहीं बनेगा।
स्नान करने के बाद वह खाने के लिए बैठ गया और खाना माँगा, ‘‘अब भोजन परोस दो।'' उसने एक पीठा खाकर एक गाँठ को खोला। उसने दूसरा पीठा खाया और एक और गाँठ को ढीला किया। ऐसा तब तक चलता रहा जब तक उसकी पत्त्नी ने ‘‘बस'' नहीं कहा। ‘‘अब पीठा नहीं है।''
ब्राह्मण ने देखा कि धागे पर दो गाँठें रह गई हैं। ‘‘दो पीठों का क्या हुआ?'' उसने पत्नी को घूरते हुए पूछा। ‘‘तुमने खा लिया, है न?'' ‘‘नहीं नहीं! मैं नहीं खाई। लड़कियों को भूख लगी थी, इसलिए मैंने उन्हें दे दिया।'' पत्नी ने कहा। ब्राह्मण को यह जानकर दुख हुआ कि उसकी पत्नी को भूखी रहना पड़ा। लेकिन उसने पहले ही बच्चों को सजा देने का निश्चय कर लिया था। फिर वह सो गया।

दूसरे दिन सुबह उसने लड़कियों को जगाया, ‘‘उठो, और जल्दी तैयार हो जाओ। मैं तुम्हें तुम्हारे चाचा के घर ले जाऊँगा।''
पिता के साथ बेटियाँ अपनी माँ को अलविदा कह कर चल पड़ीं। वे चलते गये, चलते गये और बहुत देर के बाद एक घने जंगल में पहुँच गये। लड़कियाँ कुछ देर के लिए आराम करना चाहती थीं। वे एक छायेदार बरगद के पेड़ के नीचे लेट गईं। जब लड़कियों को नींद आ गई, तब ब्राह्मण ने कुछ पत्थरों को तकिये की तरह रखा और इसके चारों ओर सिन्दूर मिला हुआ पानी छिड़क दिया। फिर वह लड़कियों को सोता हुआ छोड़कर चुपचाप चला गया। जब लड़कियों की नींद खुली तो शाम हो चुकी थी। उन्होंने पत्थरों के पास खून की तरह कुछ लाल-लाल देखा। ‘‘पिता को कुछ जंगली जानवरों ने मार दिया होगा।'' जुमाबी ने कहा।
‘‘लेकिन यह खून नहीं है, जुमाबी।'' उमाबी ने अपनी राय बताई। ‘‘क्या पिता हमें यहाँ छोड़ कर चले गये?'' दोनों बहनें सुबह होने तक एक दूसरे से चिपटे रहे। फिर वे वहाँ से चल पड़े। एक गाँव में पहुँचने पर उन्हें राहत की सांस मिली। उस गाँव में मार्ग और द्वार-मण्डप फूलों से सजे हुए थे। उन्होंने एक बूढ़ी औरत को अपने घर से बाहर निकलते देखा। ‘‘क्या यहाँ किसी का विवाह होने जा रहा है?'' उमाबी ने पूछा।

‘‘नहीं, मेरी बच्ची'', उस औरत ने उत्तर दिया, ‘‘ये पूजा के दिन हैं।'' ‘‘लेकिन दादी, दुर्गापूजा तो बहुत पहले खत्म हो गई,'' उमाबी ने उसे याद दिलाया। ‘‘फिर तो यह दिवाली का समय होगा,'' जुमाबी ने कहा।
‘‘नहीं, मेरे नन्हें मुन्ने,'' उस बूढ़ी औरत ने कहा। ‘‘दिवाली भी चली गई। हमलोग सूर्य का त्योहार मना रहे हैं। हमलोग सूर्य की उपासना स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए करते हैं। लेकिन यह तो बताओ कि तुमलोग कौन हो?''
‘‘हमलोग दुर्गापुर के रहनेवाले हैं। हमारे पिता हमें चाचा के पास ले जा रहे थे। मार्ग में हमलोग थक जाने के कारण एक पेड़ के नीचे सो गये। हमलोग जब रात में नीन्द से उठे तो उन्हें नहीं देखा। दादी, हमें नहीं मालूम कि हमलोग दुर्गापुर कैसे जायें।'' उमाबी ने बताया।
‘‘घबराओ नहीं। तुम कुछ दिनों के लिए मेरे पास ठहर सकती हो। मैं अकेली हूँ।'' बूढ़ी महिला ने कहा। ‘‘तुम दोनों तालाब में जाकर नहा लो। उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा अवश्य करो। बूढ़ी औरत ने उन्हें कुछ वस्त्र दिये और वे तालाब पर चली गयीं। लड़कियों को यह देख बहुत आश्चर्य हुआ कि पानी में उनके कदम पड़ते ही पानी अदृश्य हो गया।
उन्होंने बूढ़ी औरत के पास जाकर इस विचित्र घटना के बारे में बताया। ‘‘यह एक विशेष सरोवर है। यह सूखी घास ले जाओ और इस तालाब में फेंक दो। पानी फिर से आ जायेगा।'' बूढ़ी औरत ने कहा। लड़कियों ने उस पवित्र घास को तालाब में फेंक दिया। और कमाल हो गया! पानी तालाब में ऊपर उठने लगा।
चमकता हुआ सूरज प्रकट हुआ। उमाबी और जुमाबी ने सोचा कि सूरज भगवान उनसे प्रसन्न हैं। शीघ्र ही तालाब पानी से भर गया और लड़कियों ने अच्छी तरह स्नान कर लिया। फिर वे दूसरे कपड़े पहनकर बूढ़ी स्त्री के पास गयीं। उसने इनसे सूरज की पूजा करने के लिए कहा। इन्होंने कुछ देर तक पूजा की। फिर इन्हें खाने के लिए चावल और फल दिये गये।

बूढ़ी औरत के साथ ठहरने की अवधि में उनकी गाँव के अन्य लोगों से दोस्ती हो गई, जो कभी-कभी इन्हें खाना दे देते थे। एक दिन राजा और प्रधानमंत्री के बेटे उधर से गुजर रहे थे। वे शिकार खेलने के बाद भूखे और प्यासे थे। उन्होंने उन लड़कियों को देखकर पानी माँगा। और पानी पीकर ताजा महसूस किया।
इन दोनों युवकों ने अनुभव किया कि ये लड़कियाँ बहुत शिष्ट और मिलनसार हैं। इन लड़कियों ने कहा कि उनकी दादी लकड़ी लाने गई है और युवकों को ठहरने के लिए अनुरोध किया। लेकिन युवकों ने कहा कि वे प्रातःकाल से निकले हुए हैं और अब उन्हें महल लौट जाना चाहिये। तभी उमाबी और जुमाबी को मालूम पड़ा कि ये युवक कौन हैं।
कुछ दिनों के बाद महल से कुछ सन्देश वाहकों ने बूढ़ी औरत से मिलकर उसकी लड़कियों के विवाह का प्रस्ताव रखा। वह गर्व और उल्लास से फूली न समाई। उसने लड़कियों की राय ली। वे खुशी से झूम उठे। लेकिन उन्हें इस बात का दुख हुआ कि बूढ़ी औरत से उन्हें अलग रहना पड़ेगा।
उमाबी इतनी उत्तेजित थी कि वह विवाह के लिए महल में रथ से जाना चाहती थी। जुमाबी पूजा के पात्रों के साथ पालकी में गई, क्योंकि वह सूर्य भगवान की पूजा बन्द नहीं करना चाहती थी।
उमाबी ने महल में जाने से पहले सूर्य भगवान की पूजा नहीं की थी इसलिए उसकी यात्रा में कठिनाई आ गई। महल में वह काफी देर में पहुँची। फिर भी वैवाहिक अनुष्ठान पूरे कर लिए गये, पर मालाओं का आदान-प्रदान शुभ मुहूर्त्त के अन्दर नहीं हो सका। रानी ने सोचा कि राज्य के लिए यह अशुभ लक्षण है।


प्रधानमंत्री के आवास पर बड़े शानदार ढंग से विवाह सम्पन्न हुआ। जुमाबी के आग्रह पर उसके पति ने उसके गाँव में मिठाई भेज दी। बूढ़ी स्त्री तथा गाँववालों को आश्चर्य हुआ कि महल से उन्हें कोई मिठाई नहीं भेजी गई।
एक साल के बाद जब उमाबी के कोई बच्चा नहीं हुआ तब रानी ने राजकुमार को कहा कि वह उसे अपने गाँव में वापस भेज दे। राजकुमार ने अपने मित्र प्रधान मंत्री के बेटे से विचार-विमर्श किया। प्रधानमंत्री के बेटे ने अपनी पत्नी जुमाबी से सलाह-मशविरा किया।
जुमाबी ने सलाह दी कि क्योंकि वह माँ बननेवाली है इसलिए उमाबी को अपने घर पर बुला लेते हैं, जिससे बच्चे के जन्म के बाद वह उसकी मदद कर सके। इस प्रकार उमाबी एक बार फिर अपनी बहन के साथ रहने आ गई।
वे अक्सर याद किया करते थे कि कैसे वे जंगल में छोड़ दिये गये थे और फिर गाँव में पले-बढ़े। अब उमाबी और जुमाबी दोनों बड़ी भक्ति से सूर्य भगवान की पूजा करने लगे। शीघ्र ही जुमाबी को एक बच्चा हुआ और प्रधान मंत्री के घर पर खुशियाँ मनाई गईं। उसके बेटे ने अपने मित्र राजकुमार को समारोह में आमंत्रित किया।
प्रधानमंत्री के घर पर राजकुमार ने अपनी पत्नी उमाबी को देखा। वह पश्चाताप से अभिभूत हो गया। उसने तुरन्त अपनी पत्नी को महल में ले जाने का निश्चय किया। इस घोषणा से प्रधानमंत्री के निवास पर सबको बहुत खुशी हुई।
जब राजकुमार ने उमाबी के साथ महल में प्रवेश किया तब राजा और रानी दोनों ने उमाबी का बहुत प्यार के साथ स्वागत किया, क्योंकि तब तक वे इसकी कमी को महसूस करने लगे थे। रानी को इस बात का बड़ा दुख हुआ कि उसने बेटे को यह सलाह दी कि वह अपनी पत्नी को महल से बाहर निकाल दे। उमाबी ने अनुभव किया कि रानी के हृदय में परिवर्तन इसलिए हुआ कि वह जुमाबी के साथ रहते समय प्रतिदिन सूर्य भगवान की पूजा कर रही थी।



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