
मैं पिछले दो दिनों से उनके परिवार के साथ ठहरी हुई थी। मेरी कविता को जिस चीज से ‘चिन्तन के लिए आहार' मिल रहा था, वह ‘नगली ची भाखरी' (स्थानीय अनाज ‘नगली' की रोटी) थी जिसे साइकिल भाऊ की पत्नी ने बनाई थी।
मैंने कविता पूरी कर ली और अपने थैले में नोट बुक डाल लिया। तभी जया ताई और उसकी बेटी पैयवत (पगडंडी) से निकट की नदी पर जा रही थीं। दोनों के पास चार घड़े थे, जिससे यह पता चला कि खाना बनाने, पीने और सफाई के लिए नदी से वे जल लाने जा रही हैं। मैंने उनके साथ चलने का निश्चय कर लिया, क्योंकि पेट में पैक किये गये नगली को पचाने की जरूरत थी।
उनके साथ चलते हुए मैं दिल्ली में अपने घर और जीवन के बारे में सोचने लगी। मेरे लिए जरूरत भर पानी के लिए टैप खोलना कितना आसान है। इस गाँव में लोगों को इस बुनियादी जरूरत के लिए इतनी दूर चलकर नदी पर जाना पड़ता है। मैंने यह भी अनुमान लगाना शुरू किया कि इस गाँव के लोग भोजन बनाने और पीने के लिए पानी को कैसे शुद्ध करते हैं। क्या सभी कामों के लिए नदी के पानी का प्रयोग सुरक्षित है? मेरे मस्तिष्क में ढेर सारे सवाल थे।
चिन्तन करते-करते हमलोग नदी पहुँच गये। जया ताई की बेटी ने नदी के पानी से घड़ों को भरना शुरू किया। लेकिन जया ताई बेटी के साथ वहाँ पर नहीं थी। वह कुछ और कर रही थी...वह गड्ढा खोद रही थी।

तभी मैंने देखा कि जैसा गड्ढा जया ताई खोद रही थी, वैसे गड्ढों से पूरा नदी-तल भरा हुआ है। वे सब के सब नदी की धारा से करीबन 20-30 फुट दूर थे। आखिर मेरी जिज्ञासा फुट पड़ी और जया ताई से मैं पूछ बैठी कि वे आखिर क्या कर रही हैं। उन्होंने बड़ी सरलता से बताया कि वे पीने का पानी लेने के लिए गड्ढा खोद रही हैं। कुछ अधिक सावधानी से निरीक्षण करने पर प्रक्रिया समझ में आ गई। नदी तल में गड्ढा तब तक खोदा जाता है जब तक जल का उद्गम न आ जाये। तब उसमें पानी भर जाता है। यह पानी देखने में उस पानी से साफ था जो जया ताई की बेटी ने नदी के उस भाग से लिया था जहाँ तक वह पहुँच सकती थी। शायद इसीलिए गाँववासी इसे पीने और भोजन बनाने के लिए अधिक उपयुक्त समझते हैं।
मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। इस गाँव के सभी लोगों को ऐसा क्यों करना पड़ता था? क्यों नहीं ये कुआँ खोद लेते और उससे पानी लेते? क्या वह अधिक आसान नहीं होगा? लेकिन हो सकता है, वह सम्भव न हो।
हो सकता है, नदी से दूर, गाँव में साइकिल भाऊ के घर के पास पानी के स्तर तक पहुँचने के लिए काफी गहरा खोदना पड़े। शायद पहले गाँव के कुओं में पानी हुआ करता था जो अब सूख गये हों, क्योंकि गाँव के चारों ओर जंगल के सभी वृक्षों को काट दिया गयाहै ।
मैंने विचार करना शुरू किया, भूमि के अन्दर जल की मौजूदगी के लिए पेड़ों का होना कितना महत्वपूर्ण है? वृक्ष वर्षा के जल को यों ही बहने नहीं देते। वे सालों साल जमीन की गहराई में इसे निमग्न होने देते हैं।
हाँ, हो सकता है, यही अवस्था रही हो! मैंने सभी घटकों को एक-एक कर मिलाना शुरू किया। मैंने देखा था कि गाँव के इर्द गिर्द शायद ही कुछ जंगल बचा हो। साइकिल भाऊ की माँ ने मुझे कहा था कि उसे उन दिनों जंगल क्षेत्र में पहुँचने के लिए अधिक लम्बी दूरी तय करनी पड़ती थी और जंगल के करवण्ड (स्थानीय फल) वृक्ष गायब हो गये।
मैंने इनमें से किसी की पुष्टि नहीं की! मैं चुपचाप लौट आई और उस विशाल वृक्ष के नीचे बैठ गई और आँखें बन्द कर लीं...और सिर्फ यह कामना की कि उस रुईघर-उस गाँव को, जहाँ मैं ठहरी हुई हूँ और जहाँ साइकिल भाऊ का घर है, उसके सारे वृक्ष वापस मिल जायें...जल्दी ही।

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