
बहुत दिन पहले की बात है। महोबा नामक गाँव में कई धनवान रहा करते थे। उसी गाँव में रामगुप्त नामक एक बनिया था। उसके दो पुत्र थे। बाप-बेटे सब मिल कर छोटा-मोटा व्यापार किया करते थे।
रामगुप्त एक जमाने में बड़ा धनी था। मगर व्यापार में उसने अपना सर्वस्व खो दिया था। अब उसके यहाँ सिवाय एक बड़ा घर के संपत्ति के नाम पर कुछ न था। फिर भी वह निराश नहीं हुआ। इस आशा से उसने पुनः व्यापार शुरू किया कि भविष्य में उसकी क़िस्मत खुल जायेगी। पहले की हालत में पहुँचने की प्रबल आशा उसके मन में बनी ही रही।
महोबा धनी गाँव था, इसलिए जब-तब लुटेरे उस गाँव पर हमला कर बैठते थे। लुटेरों के आने का समाचार मिलते ही गाँववाले अपनी सारी संपत्ति कहीं गाड़ देते अथवा अपने साथ लेकर दूसरे गाँवों में भाग जाते।
एक बार ऐसी ही आफ़त उस गाँव में आई। लुटेरों के आने की ख़बर मिलते ही सब ने अपने घर खाली कर दिये। मगर रामगुप्त ने अपने बेटों से कहा - ‘‘बेटे, मैं तुम लोगों के साथ आ नहीं सकता। दो दिन यहीं-कहीं अपना सर छिपा लूँगा। हमारे पिछवाड़े में पुआल के ढेर में खाना पानी रख के चल जाओ।''
फिर क्या था, रामगुप्त के बेटे उसे बड़ी युक्ति के साथ पुआल के ढेर में छिपा कर भाग गये।
लुटेरे गाँव में आ ही गये। लुटेरे घर-घर की तलाशी ले रहे थे। उनका नेता घोड़े पर एक गली से होकर गुजरा। लुटेरों ने जो कुछ लूटा, उसे दो बोरों में भर कर घोड़े पर लाद दिया था। आख़िर लुटेरों के नेता की नज़र बहुत बड़े मकान और उसके पिछवाड़े पर पड़ी। वह घर और किसी का नहीं, बल्कि रामगुप्त का ही था।
लुटेरों का नेता जब उस घर में घुसा, तब मानों रामगुप्त की जान छटपटा उठी। रामगुप्त बड़ी सावधानी से उसकी हरकतें देखता रहा।


लुटेरों के नेता ने अपने घोड़े को पुआल के ढेर के पास एक पत्थर से बांध दिया और बड़े ही इतमीनान से घर में घुस पड़ा। घोड़े को भूख लगी थी, वह घास चरने लगा।
मौक़ा पाकर रामगुप्त पुआल के ढेर से बाहर आया, घोड़े की पीठ पर से धन के बोरों को उतारा और घोड़े के रस्से को खोल दिया। तब वह उस धन के साथ ढेर के भीतर जा छिपा। रस्सा खुल जाने से घोड़ा दूर जाकर घास चरने लगा।
सारे घर की बड़ी देर तक तलाशी लेने पर भी लुटेरों के नेता के हाथ कुछ न लगा। उसने बाहर आकर देखा कि घोड़ा रस्सा तोड़ कर दूर जा घास चर रहा है और उसकी पीठ पर धन की गठरियाँ नहीं हैं।
लुटेरों का नेता यह सोच कर सारे पिछवाड़े में खोज रहा था कि कहीं गठरियाँ गिर तो नहीं गयी हैं। तभी उसके अनुचर वहाँ आ पहुँचे। उन्हें देखते ही लुटेरों के नेता ने आतुरता के साथ पूछा - ‘‘क्या तुम लोगों में से किसी ने घोड़े पर से गठरियाँ निकालीं?''
चोरों ने एक दूसरे के चेहरे देखे। उनके मन में यह संदेह पैदा हो गया कि लूट के माल को छिपा कर वह ऐसा अभिनय कर रहा है। तब सभी लुटेरों ने मिल कर अपने नेता से पूछा, ‘‘इस गाँव में हमें छोड़ एक भी प्राणी नहीं है। गठरियाँ तो भारी थीं, कैसे गायब हो सकती हैं?''
इसके बाद सबने गठरियों की खोज की, लेकिन कोई फ़ायदा न रहा। लुटेरों के नेता ने उन्हें खोजने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली।
दूसरे दिन लुटेरे महोबा को छोड़ चले गये। उनके जाने का समाचार मिलते ही गाँव वाले सब फिर गाँव में आ गये। रामगुप्त ने उन गठरियों को अपने ही घर में बडी होशियारी से छिपा रखा था। उसने अपने बेटों से भी यह बात नहीं कही। उसने सुन रखा था कि लुटेरों के नेता ने उन गठरियों की खोज करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है।

रामगुप्त ने जैसे सोचा था, वैसे लुटेरों का नेता अपने को घोड़ों का व्यापारी बताते उस गाँव में आया और वह गाँव के अमीरों के बारे में पूछ-ताछ करने लगा।
उसका उद्देश्य था कि हाल ही में अचानक जो धनवान बन गया हो, उसका पता लगा ले। रामगुप्त ने उसे देखते ही पहचान लिया।
रामगुप्त को संदेह हुआ कि चोर उसके घर उस रात को आ सकता है। इसलिए वह अपने पिछवाड़े पर बड़ी सावधानी से निगरानी रखे हुए था। उसकी शंका के अनुसार अंधेरे के फैलते ही लुटेरों का नेता चुपके से पिछवाड़े में घुस गया और घर की दीवार के पास दुबक कर बैठ गया। उसका विचार था कि घरवाले यदि धन के बारे में बातचीत कर ले तो सुने।
यह सब देखने वाले रामगुप्त ने अपने बेटों को बुला कर ऊँची आवाज़ में इस तरह कहा जिससे चोर भी सुन ले - ‘‘बेटे, परसों मैं पुआल के ढेर से सूखी घास खींच रहा था तो घास के नीचे गहनों की दो गठरियॉं मिल गयीं।''
बेटों ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘ऐसी बात है! पर आपने हमें बताया तक नहीं?''
‘‘बेटे, वे गठरियाँ किसकी हैं, जाने बिना मैं कैसे बताता! इसलिए मैंने उन्हें फिलहाल गुप्त रूप से छिपा रखा है।'' रामगुप्त ने कहा।
‘‘कहाँ पर छिपा रखा है?'' बेटों ने पूछा।
‘‘अपने कुएँ मैं डाल दिया है।'' रामगुप्त ने जवाब दिया।
‘‘लुटेरों का नेता यह सुनकर बड़ा खुश हुआ। सब के सो जाने पर वह एक रस्सी को, चक्री से बाँध उसकी मदद से कुएँ में उतर पड़ा।
तुरंत रामगुप्त ने अपने बेटों को असली बात बता दी। तीनों ने जाकर रस्से को काट डाला। चोर के सर पर पत्थर फेंककर उसे मार डाला। फिर बाहर निकाल कर उसकी लाश को पिछवाड़े में ही गाड़ दिया। इसके बाद रामगुप्त जिंदगी भर धनी बन कर रहा।

No comments:
Post a Comment