जलपोतों के एक धनी व्यापारी के सात बेटे और एक बेटी थी। बेटों की शादी हो चुकी थी और वे सब व्यापार में पिता की मदद कर रहे थे। व्यापारी पूरे परिवार के साथ एक बड़े भवन में रहता था। सबसे छोटी बेटी तपोई सबकी आँखों का तारा थी। परिवार के सभी सदस्य उसे बहुत प्यार करते थे। विशेष रूप से उसके पिता उसकी हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करते। फिर भी, तपोई ने ऐसा कभी प्रकट नहीं होने दिया कि वह एक धनी पिता की एकलौती बेटी है और वह साधारण खिलौनों के साथ ही खेलने में मस्त रहती थी।

'' तपोई ने खेलना बन्द कर दिया, और अन्दर जाकर शान्तिपूर्वक सोचने लगी। मिट्टी के खिलौनों और गुड़ियों से खेलने में क्या खराबी है? उसने अपने आप से सवाल पूछा। यदि उसके पिता एक सुनहला चाँद लाकर उसे दे भी दें तो वह उसका क्या करेगी? अधिक से अधिक, वह अपनी सहेलियों से यह कहेगी कि उसके पास एक सुनहला चाँद है। "क्या वे मुझसे ईर्ष्या करेंगे अथवा मुझ पर केवल हॅंस भर देंगे?''
उसकी सबसे छोटी भाभी नीलेन्दी उसके पास आकर उसके साथ जमीन पर बैठ गई और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोली, "तपोई, क्या मुझसे नहीं बोलोगी? बोलो न, क्या बात है? मैं तुम्हारी समस्या का समाधान निकालूंगी। चलो, बोलो न मेरी छोटी प्यारी बच्ची!'' वह उसके के बालों को सहलाने लगी।
तपोई ने सोचा कि इस पर भरोसा किया जा सकता है। "वह बूढ़ी औरत! उसने मुझे मिट्टी के खिलौनों के साथ खेलते देखकर मेरा मजाक उड़ाया। उसने कहा कि यदि मैं चाहूँ तो मेरे पिता मुझे एक सुनहला चाँद दे सकते हैं। क्या मैं एक सुनहला चाँद पिता से माँग लूँ, भाभी?''

"ओह! तो यह है तुम्हारी समस्या! अच्छ, ठीक है। मैं माँ से बात करूँगी और वे पिता जी को बतायेंगी। निश्चय ही, वे तुम्हारे लिए सुनहला चाँद ला देंगे। जो भी खिलौना और गुड़िया है, उसी से खेलो।'' नीलेन्दी ने उसे प्यार से थपथपाया ।
जब व्यापारी भोजन के लिए घर पर आया, उसकी पत्त्नी ने धीरे से तपोई की अभिलाषा की चर्चा की। वह सिर्फ मुस्कुराया और बोला, "जब मैं आराम करता हूँ तब उसे मेरे पास भेज देना। मैं उससे पूछूँगा कि उसे कितना बड़ा सुनहला चॉंद चाहिये।'' उसकी पत्नी को इस बात की खुशी हुई कि व्यापारी को क्रोध नहीं आया और तपोई पर नाराज नहीं हुआ। वह जानती थी कि वह बेटी को बहुत प्यार करता है।
वह अभी मुश्किल से लेटा ही था कि तपोई आ गई। "पिताजी, क्या आपने मुझे बुलाया?''
व्यापारी ने तपोई से यह नहीं पूछा कि उसके मन में यह विचार कैसे आया। उसने सिर्फ यह जानना चाहा कि सुनहला चाँद कितना बड़ा होना चाहिये। "क्या खाने के प्लेट के बराबर?''
तपोई को अब जवाब देने में शर्म आने लगी। "तुम इसके साथ खेलना चाहती हो, यही न? मुझे मालूम है, इसे कितना बड़ा होना चाहिये। तुम्हें यह जल्दी ही मिल जायेगा।'' उसने प्यार से तपोई के सिर और मुखड़े को सहलाया और छाती से लगाते हुए कहा, "जाओ, अब खाना खा लो, मेरी अच्छी बच्ची!''
व्यापारी ने स्थानीय सुनार को एक सुनहला प्लेट बनाने का आदेश दे दिया। सुनार ने तुरन्त उसे बनाना शुरू कर दिया। दुर्भाग्यवश इसी बीच व्यापारी की मृत्यु हो गई। जब सुनहला चाँद बनाकर दे दिया गया तब उसकी माँ की भी मृत्यु हो गई। अब तपोई की सुनहला चाँद से खेलने की रुचि जाती रही । वह यह सोचकर परेशान रहने लगी कि सुनहले चाँद की उसकी इच्छा के कारण ही शायद उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई है।
तपोई ने सोचा कि इस पर भरोसा किया जा सकता है। "वह बूढ़ी औरत! उसने मुझे मिट्टी के खिलौनों के साथ खेलते देखकर मेरा मजाक उड़ाया। उसने कहा कि यदि मैं चाहूँ तो मेरे पिता मुझे एक सुनहला चाँद दे सकते हैं। क्या मैं एक सुनहला चाँद पिता से माँग लूँ, भाभी?''

"ओह! तो यह है तुम्हारी समस्या! अच्छ, ठीक है। मैं माँ से बात करूँगी और वे पिता जी को बतायेंगी। निश्चय ही, वे तुम्हारे लिए सुनहला चाँद ला देंगे। जो भी खिलौना और गुड़िया है, उसी से खेलो।'' नीलेन्दी ने उसे प्यार से थपथपाया ।
जब व्यापारी भोजन के लिए घर पर आया, उसकी पत्त्नी ने धीरे से तपोई की अभिलाषा की चर्चा की। वह सिर्फ मुस्कुराया और बोला, "जब मैं आराम करता हूँ तब उसे मेरे पास भेज देना। मैं उससे पूछूँगा कि उसे कितना बड़ा सुनहला चॉंद चाहिये।'' उसकी पत्नी को इस बात की खुशी हुई कि व्यापारी को क्रोध नहीं आया और तपोई पर नाराज नहीं हुआ। वह जानती थी कि वह बेटी को बहुत प्यार करता है।
वह अभी मुश्किल से लेटा ही था कि तपोई आ गई। "पिताजी, क्या आपने मुझे बुलाया?''
व्यापारी ने तपोई से यह नहीं पूछा कि उसके मन में यह विचार कैसे आया। उसने सिर्फ यह जानना चाहा कि सुनहला चाँद कितना बड़ा होना चाहिये। "क्या खाने के प्लेट के बराबर?''
तपोई को अब जवाब देने में शर्म आने लगी। "तुम इसके साथ खेलना चाहती हो, यही न? मुझे मालूम है, इसे कितना बड़ा होना चाहिये। तुम्हें यह जल्दी ही मिल जायेगा।'' उसने प्यार से तपोई के सिर और मुखड़े को सहलाया और छाती से लगाते हुए कहा, "जाओ, अब खाना खा लो, मेरी अच्छी बच्ची!''
व्यापारी ने स्थानीय सुनार को एक सुनहला प्लेट बनाने का आदेश दे दिया। सुनार ने तुरन्त उसे बनाना शुरू कर दिया। दुर्भाग्यवश इसी बीच व्यापारी की मृत्यु हो गई। जब सुनहला चाँद बनाकर दे दिया गया तब उसकी माँ की भी मृत्यु हो गई। अब तपोई की सुनहला चाँद से खेलने की रुचि जाती रही । वह यह सोचकर परेशान रहने लगी कि सुनहले चाँद की उसकी इच्छा के कारण ही शायद उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई है।
"कौन? वह शैतान छोकरी? और तुम सब उसे खुश रखने के लिए पसीना बहा रहे हो ! यह सोचना बेवकूफी होगी कि वह तुम्हारे पतियों को तुम्हारे बारे में अच्छी बात कहेगी। तुम उसे किसी काम पर जरूर लगा दो।'' वह बुढ़िया पास में जाकर उसके कान में फुसफुसाई, "मैं बताऊँगी क्या करना है। उसे भेड़ चराने के लिए जंगल में भेज दो। या तो कोई लोमड़ी खा जायेगी या साँप काट लेगा। तुम कह देना कि बीमारी से मर गई।''

जब बुढ़िया चली गई तब बड़ी बहू ने अन्दर जाकर दूसरी बहुओं को भिखारिन के बारे में बताया। सभी बहुओं को बुढ़िया की सलाह अच्छी लगी। लेकिन नीलेन्दी को नहीं। पर अकेली वह क्या कर सकेगी? उस दिन से तपोई का भाग्य विपरीत हो गया और जिन्दगी मुसीबतों से भर गई। उसे हर तरह का घरेलू काम करना पड़ा। उसके काम में, उसकी भाभी कुछ न कुछ नुख्स ज़रूर निकालती। उसे भर पेट खाना भी नहीं मिलता था। वह आधा पेट खाकर यह प्रार्थना करती हुई सो जाती, "हे मंगलादेवी, कृपा करके मेरे भाइयों को शीघ्र वापस ला दो।''
एक दिन उसकी सबसे बड़ी भाभी ने उसे बुलाकर कहा, "आज भेड़ों को चराने के लिए जंगल में ले जाओ। यह रहा तुम्हारा भोजन।''
तपोई ने किसी प्रकार अपने आँसुओं को रोका। तपती धूप में वह पैदल जंगल कैसे जायेगी? भेड़ों को चरने के लिए छोड़ने के बाद वह भोजन करने बैठी। लेकिन भोजन के पैकेट में थोड़ा सा चावल और लकड़ी का बुरादा भरा पड़ा था। उसने खाना छोड़ दिया और शाम को घर भूखी ही लौटी। दूसरे पाँच दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। सातवें दिन नीलेन्दी ने भोजन का पैकेट दिया जिसमें भर पेट खाने के लिए काफी खाना था। दिन और सप्ताह गुजरते गये। जिस दिन नीलेन्दी खाना देती, उस दिन को छोड़ कर बाकी दिनों में तपोई को भूखी रहना पड़ता। एक दिन शाम को भेड़ों के झुण्ड से एक मेमना गायब हो गया। तपोई ने उसे इधर-उधर खोजा, उसका नाम लेकर पुकारा। कहीं से कोई उत्तर नहीं मिला। अन्धकार हो रहा था और फैले बादल मंडरा रहे थे। इसलिए तपोई मेमने की अधिक खोज न कर शेष भेड़ों को लेकर घर वापस चली गई।
पोत के पहुँचने की खबर पाकर सभी बहुएँ उत्तेजित हो अपने पतियों का स्वागत करने के लिए समुद्र तट पर पहुँचीं। सबसे बड़ी बहू ने सबको यह हिदायत कर दी थी कि भाइयों के पूछने पर तपोई के बारे में उन्हें क्या बताना है। उन्हें बल्कि तपोई को सबके पीछे, गहनों और महॅंगे लिबास में सजी धजी देखकर ताज्जुब हुआ। अपनी पित्त्नियों को देखकर सभी भाइयों की भौहें चढ़ गईं। घर पहुँचकर उन सबने सारे उपहार नीलेन्दी को दे दिये और अन्य पत्त्नियों को अपनी बहन के साथ दुर्व्यवहार के लिए कोड़ों से पिटाई की। बहुत दिनों तक भाइयों ने तपोई को राजकुमारी की तरह रखा।
सबसे बड़ी भाभी उस पर बरस पड़ी और उसे मारने के लिए एक मोटी लकड़ी लेकर दौड़ी। तपोई डर कर जंगल की तरफ भाग गई। जंगल में घना अन्धकार था। तपोई ने डर से चिल्लाती हुई मंगलादेवी से प्रार्थना की, "माँ त्राहि माम, त्राहि माम! दया करो, माता! मेरे भाइयों को शीघ्र बुला दो माँ! मुझसे अब दुख सहा नहीं जाता।'' वह बार-बार रोती-बिलखती रही और मंगलादेवी को रक्षा के लिए बुलाती रही।
संयोग से, सातों भाइयों का पोत जंगल से गुजरते हुए वापस आ रहा था। भाइयों को एक लड़की की रोती-बिलखती आवाज सुनाई पड़ी। उन्हें सन्देह हुआ कि इतनी अन्धेरी रात में कौन रो रही होगी। दो भाई जहाज से उतरकर जंगल में उधर देखने गये जहाँ से रोने की आवाज आ रही थी। उन्होंने एक लड़की को देखा लेकिन उसे पहचानने और जानने में देर लगी कि यह उन्हीं की बहन तपोई है।
"तपोई, तुम इस समय जंगल में कैसे आई?'' दोनों भाइयों ने पूछा। तपोई ने अपनी दुख भरी कहानी सुनाई। भाइयों ने उसे सान्त्वना दी और वे अपने साथ पोत में ले गये। अन्य पाँचों भाइयों ने भी उसका बड़े प्यार से स्वागत किया। उन सब ने यह अनुभव किया कि नीलेन्दी को छोड़ कर बाकी सभी भाभियों ने इसके साथ निर्दयतापूर्वक व्यवहार किया है।

दन्तकथाओं के अनुसार तपोई की कहानी करीब पाँच शताब्दी पुरानी है। उड़िया लड़कियाँ आज भी "तपोई त्योहार'' मनाती हैं और उपवास रख कर मंगलादेवी से आशीर्वाद माँगती हैं ।
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