Thursday, June 30, 2011

प्रथम पान सुपारी

स्कंध षष्टि के उत्सव के अवसर पर उस गाँव में हाट लगती है। दुकानें नाना प्रकार की सामग्रियों से सजायी जाती हैं। रामेश, कामेश और चार ग्रमीण हाट जाने निकले। हाट में पहली दुकान थी खजूरों की ।
दुकानदार कह रहा था, ‘‘ये कोई मामूली खजूर नहीं हैं। स्वाद चखिये और फिर खरीदिये।'' रामेश जब उस दुकान के पास जाने लगा, तब कामेश ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘कहीं भी हो, प्रथम पान सुपारी मुझे ही मिलना चाहिये।
कहते हुए वह आगे आया और फल के स्वाद को चखते हुए बोला, ‘‘अगर मैं सबसे पहले खरीद लूँगा तो समझ लो, तुम्हारा सारा माल देखते-देखते बिक जायेगा। मुझे दो किलो देना।''
बाकी लोगों ने भी वे फल खरीदे। जब सब दुकानदारों को यह बात मालूम हो गयी तो वे कामेश का स्वागत करने लगे और उसे प्रथम पान सुपारी देने लगे। थोड़ी दूर जाने के बाद उन्होंने देखा, एक दुकान में सुंदर संगमरमर की प्रतिमाएँ सजी हुई हैं। दुकानदार उन प्रतिमाओं का दाम ज़्यादा बता रहा था, इसलिए आगे बढ़ने में कामेश संकोच कर रहा था।
तब रामेश ने पास जाकर दुकानदार से कहा, ‘‘इतना दाम बताओगे तो इस गाँव में इन्हें कोई नहीं खरीदेगा । सही दाम बोलो।''
‘‘ये मामूली प्रतिमाएँ नहीं हैं। ताजमहल जिन संगमरमर के पत्थरों से बना है, उन पत्थरों से ये प्रतिमाएँ बनायी गयी हैं। बड़ी प्रतिमा का दाम है, एक अशर्फी। छोटे आकार की एक अशर्फी में तीन मिलेंगी। बड़ी प्रतिमा खरीदने पर एक छोटी प्रतिमा मु़फ़्त में दूँगा,'' दुकानदार ने कहा।
‘‘बड़ी दो खरीदूँगा। तीन छोटी मु़फ़्त में देना,'' रामेश ने कहा। दुकानदार ने शर्त मान ली। बाकी लोग पीछे हट गये और बोले, ‘‘ऐसे खिलौनों को खरीदने के लिए कला के प्रति रुचि होनी चाहिये। कामेश, तुम्हारी क्या राय है?''
रामेश ने कहा, ��कामेश, ये लोग यों क्या कह रहे हैं कि कलाओं के प्रति तुम्हारी विशेष अभिरुचि है। ऐसी प्रतिमाओं को खरीदकर तुम कलाकारों को भेंट में देते हो। तुम्हें चाहिये कि इन्हें खरीदो और यहाँ भी प्रथम पान सुपारी तुम्हीं लो।��
रामेश की बातें सुनकर वह खुशी से फूल उठा। उसने कहा, ��रामेश, तुमने ठीक कहा, प्रथम पान सुपारी यहाँ भी मुझे ही मिलना चाहिये। यहाँ एक प्रतिमा खरीद लूँगा।�� फिर वह आगे आया और एक बड़ी प्रतिमा को लेकर एक अशर्फी दुकानदार के हाथ में थमा दी।
रामेश ने दुकानदार से कहा, ��हम दोनों दोस्त हैं। दो प्रतिमाएँ खरीदेंगे।�� कहते हुए उसने एक अशर्फी दी। दुकानदार ने उस बड़ी प्रतिमा के साथ तीन छोटी प्रतिमाएँ भी मु़फ़्त दे दीं।
हाट से बाहर आने के बाद रामेश ने कामेश को तीनों प्रतिमाएँ दिखायीं और कहा, ��हमने दो प्रतिमाएँ खरीदीं। इसलिए उसने ये तीनों प्रतिमाएँ मुफ्त में दीं। इनमें से एक तुम ले लो। बाकी दोनों मेरे हैं।�� ��न्यायपूर्वक अगर हम बाँट लें तो हर एक को डेढ़ डेढ़ प्रतिमाएँ मिलेंगी। चूँकि प्रतिमा तोड़ी नहीं जा सकती, इसलिए आधी प्रतिमा का दाम मुझे दो। तुमने ही पहले सौदा किया इसलिए समझ लो, आधी प्रतिमा की कीमत तुम्हें मज़दूरी के रूप में दे दिया।�� कामेश ने कहा।
��तुमने कैसे समझ लिया कि सौदा करने के लिए तुमसे मज़दूरी लूँगा। दुकानदार ने कहा, जो बड़ी प्रतिमा खरीदेगा, उसे एक छोटी प्रतिमा मु़फ़्त में दे दूँगा। उसने यह भी कहा कि दो बड़ी प्रतिमाएँ खरीदने पर तीन छोटी प्रतिमाएँ मुफ्त में दी जायेंगी। इसका यह मतलब हुआ कि प्रथम प्रतिमा के लिए एक छोटी प्रतिमा और दूसरी बड़ी प्रतिमा के लिए दो छोटी प्रतिमाएँ मु़फ़्त में मिलेंगी। तुम तो प्रथम पान सुपारी लेने पर जान देते हो। तो तुम्हें प्रथम प्रतिमा के लिए मु़फ़्त में मिली, एक छोटी प्रतिमा ही।��
रामेश ने मुस्कुराते हुए कामेश से कहा। यह सुनते ही बाक़ी लोग हँस पड़े। कामेश, रामेश के हाथों एक और बार हार गया।

1 comment:

  1. लखनऊ में तनाव तो धनीराम के गानों पर मस्‍त है सैफई
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