एक बार एक अभिमानी राजा था। उसके सात बेटियाँ थीं। जब वे विवाह-योग्य बड़ी हो गईं तब राजा ने उनके विवाह के पूर्व यह जानने का निश्चय किया कि वे सब अपने पिता को कितना प्यार करती हैं।
छः बेटियों ने एक के बाद एक तत्काल कहा, ‘‘पिता, हमलोग आप को मधुरतम चीनी के समान प्यार करते हैं,'' ‘‘पिता हम आप को शहद के समान प्यार करते हैं'', ‘‘पिता हम आप को मधुरतम मिठाई के समान प्यार करते हैं।''
उनके उत्तर सुनकर राजा अत्यन्त आनन्दित हुआ। लेकिन अपनी सबसे छोटी बेटी की चुप्पी पर हैरान था। उसने उसे बुलाकर बगल में बिठाया और पूछा, ‘‘बताओ, मेरी छोटी बिटिया कि तुम मुझे कितना प्यार करती हो?''
राजकुमारी ने पिता की ओर देखा और कहा, ‘‘पिता, मैं आपको हृदय की बहुत गहराई से प्यार करती हूँ।'' उसने बहुत मीठी आवाज में जवाब दिया, ‘‘मैं आपको लवण के समान प्यार करती हूँ।''

राजकुमारी ने पुनः कहा, ‘‘मैं आपको सच बताती हूँ मेरे प्रिय पिता, मैं आपको नमक की तरह प्यार करती हूँ।''
राजा उसकी बातों पर क्रोधित हो उठा। उसने निश्चय किया कि वह बड़ी बेटियों का विवाह राजाओं और राजकुमारों से करेगा। और सबसे छोटी बेटी के लिए एक लकड़हारे को चुना जो जंगल में एक छोटे से झोंपड़े में रहता था। राजकुमारी अपने पिता के इस निर्णय को सुन कर चुपचाप बहुत रोई। लेकिन उसने संकल्प किया कि यह एक दिन अपने पिता को विश्वास दिला देगी कि वह उसे बहुत प्यार करती है। इसलिए उसने चुपचाप महल छोड़ दिया और लकड़हारे की झोंपड़ी में जाकर रहने लगी।
लकड़हारा तुरन्त महल के लिए रवाना हो गया। महल के द्वारपाल ने उसके हाथ में हार को देखकर उसे अन्दर पहुँचा दिया। लकड़हारे ने राजा को झुक कर सलाम किया और कहा, ‘‘महाराज, मैं रानी का हार लेकर आया हूँ। भाग्य ने इसे मेरे दरवाजे पर लाकर छोड़ दिया।''
राजा ने हार को अपने हाथ में लिया और उसकी जाँच-परख की। यह वास्तव में रानी का ही हार था। ‘‘हमलोग इसे लाकर वापस करने के लिए तुम्हारे कृतज्ञ हैं।'' राजा वे लकड़हारे से कहा। ‘‘यह बताओ कि तुम कौन हो और हम तुम्हें इस एहसान के लिए क्या इनाम दें।''

विवाह के बाद पहले दिन जब लकड़हारा लकड़ी काटने के लिए जंगल जाने की तैयारी कर रहा था तब उसने कहा, ‘‘मेरे प्रिय पति, तुम यह गाँठ बाँध लो कि आज से तुम हर रोज मेरे लिए जंगल से कोई उपहार जरूर लाओगे। और तुम देखोगे कि हम लोग शीघ्र ही फलेंगे-फूलेंगे।''
लकड़हारा, जो राज घराने की अपनी बीवी से सहमा हुआ था, तुरन्त उसके कथनानुसार करने को राजी हो गया। उस दिन लकड़हारा बल्कि देर से लौटा। सूरज डूब चुका था पर तब भी वह जंगल में ही था और राजकुमारी को देने के लिए तब तक उसे कुछ नहीं मिला था। जब वह अन्धेरे में चलता हुआ वापस आ रहा था, तब कोई लम्बी मोटी सी चीज उसके पाँव से टकराई। उसने उसे एक मजबूत रस्सी समझ कर उठा लिया और घर ले जाकर अपनी पत्नी को दे दिया। राजकुमारी ने उसे दीये की रोशनी में देखकर कहा, ‘‘अरे, यह तो मरा हुआ साँप है!''
लकड़हारा घबरा गया। ‘‘कैसी भयंकर भूल हो गई! मरे हुए साँप का अब क्या करें?'' उसने सहमते हुए कहा।
‘‘छप्पर पर फेंक दो। सुबह देखेंगे कि क्या करना है।'' राजकुमारी ने कहा।
अब, ऐसा हुआ कि उस दिन रानी जो अपनी सबसे छोटी और सबसे प्रिय बेटी के प्रति राजा का कठोर व्यवहार देख कर बहुत दुखी थी, महल के बाग में टहल रही थी। घूमते समय किसी चीज से ठोकर लगने के कारण वह लड़खड़ा गई और मूल्यवान हीरे के साथ जड़ा हुआ उसका हार गले से निकल कर जमीन पर गिर गया। रानी इतनी शोक-विह्वल थी कि उसे यह पता नहीं चला कि हार गिर गया है। वह सम्भल कर फिर टहलने लगी। तब तक अन्धेरा होने लगा था। रानी महल में वापस चली गई।
शीघ्र ही, महल के उद्यान के ऊपर से उड़ते हुए एक गरुड़ ने नीचे चमकती हुई कोई चीज देखी। उसने झपट्टा मार कर हार को चोंच से उठा लिया और जंगल की तरफ उड़ गया। लकड़हारे की झोंपड़ी के ऊपर से उड़ते समय उसके छप्पर पर उसने एक मरा हुआ साँप देखा। उसने हार को छप्पर पर छोड़ दिया और मरा हुआ साँप उठा कर उड़ गया।
तब तक रानी को पता चल गया कि उसका हार कहीं खो गया है। राजा ने उसे विश्वास दिलाया कि उसका हार निश्चित रूप से वापस मिल जायेगा। उसने राज्य भर में ढिंढोरा पिटवाया कि जो भी रानी का हार वापस लाकर देगा उसे मुँह माँगा पुरस्कार दिया जायेगा।
दूसरे दिन सुबह जब लकड़हारा अपने छप्पर पर से मरे हुए साँप को हटाने गया तब वह वहाँ चकाचौंध कर देने वाली रोशनी देखकर डर गया। वह दौड़ता- चिल्लाता अन्दर आया, ‘‘राजकुमारी, राजकुमारी! आओ, देखो, छप्पर पर रोशनी चमक रही है। लगता है, आग लग गई है!''
राजकुमारी दौड़ती हुई बाहर आई। उसने छप्पर पर देखा और वह जोर से हँसती हुई बोली, ‘‘प्रिय पति, वह आग नहीं है। यह मेरी माँ का हीरे का अमूल्य हार है। भाग्य से यह हमलागों के पास आ गया है। मेरे पास एक अनूठी योजना है। समय आ गया है जब मेरे पिता मुझे समझेंगे।''
जब राजकुमारी अपने पति से बात कर ही रही थी कि उन्होंने मुनादी की ढोल पीटने की आवाज सुनी। ‘‘सुनो, सुनो!, सब लोग सुनो! रानी का अमूल्य हीरे का हार खो गया है। जिसे भी यह मिले और राजा को वह लौटा दे तो उसे मुँह माँगा इनाम दिया जायेगा। सब लोग सुनो, भाई, सब लोक सुनो!''
राजकुमारी ने अपने पति से कहा, ‘‘अभी तुरन्त हार के साथ महल में जाओ। मेरे पिता, राजा को यह नहीं बताना कि तुम कौन हो और इनाम में धन-दौलत नहीं माँगना। परन्तु जोर देकर अनुरोध करना कि वे हमलोग के साथ भोजन करें।


लकड़हारे ने उत्तर दिया, ‘‘मैं एक मामूली गरीब लकड़हारा हूँ और इनाम में सिर्फ यही मांगता हूँ कि महाराज कल मेरे और मेरी पत्नी के साथ मेरी झोंपड़ी में अकेले आकर भोजन करें।''
राजा को आश्चर्य हुआ परन्तु उसके सामने कोई चारा नहीं था, इसलिए उसे निमंत्रण को स्वीकार करना पड़ा। अतः दूसरे दिन शाम को राजा लकड़हारे की झोंपड़ी पर पहुँचा। राजकुमारी ने, जिसने अपनी पहचान छिपाने के लिए चेहरे पर घूंघट डाल लिया था, राजा को झुककर अभिवादन किया। वह चुपचाप उसे अन्दर ले गई और बैठने को कहा। फिर वह विविध प्रकार के मिष्टान्न ले आई। उसे खा लेने के बाद वह कुछ और मिठाइयाँ तथा अन्य मीठे पकवान लेकर आई। और हर बार वह राजा को सब मिठाई खा लेने पर जोर देने लगी। राजा अब ज्यादा मिठाई खा नहीं सकता था।
‘‘मुझे माफ करना। अब ज्यादा मिठाई खाने के लिए न कहो। मैं बीमार हो जाऊँगा। उसके बदले कुछ नमकीन खाने को नहीं दे सकती?''
यह सुनते ही राजकुमारी ने अपना घूंघट हटा लिया। ‘‘पिता'', उसने कहा, ‘‘जब मैंने कहा था कि मैं आप से नमक के समान प्यार करती हूँ, चीनी और शहद की तरह नहीं, तब आप मुझ पर क्रोधित हो गये थे। और अब आप मिठाई से परहेज कर नमकीन माँग रहे हैं।''
राजा लज्जित होकर अपना सिर झुका लिया। ‘‘माफ कर दो, मेरी बेटी!'' उसने कहा।
‘‘मैं नमक का महत्व नहीं समझ सका। तुम सचमुच मुझे मेरी अन्य बेटियों से अधिक प्यार करती हो।''
राजकुमारी ने पिता को गले से लगा लिया। राजा ने अपनी बेटी की योग्यता और बुद्धिमानी को समझते हुए उसे और उसके पति को अपने राज्य का एक भाग दे दिया। राजकुमारी और उसके लकड़हारे पति ने राज्य के अपने हिस्से पर बुद्धिमानी और सुचारु रूप से शासन किया।
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