Thursday, June 30, 2011

तथास्तु देवता

कामेश का सदा यही इरादा रहा कि रामेश से बड़ा कहलाऊँ और किसी न किसी प्रकार उसे नीचा दिखाऊँ । अ़क्लमंदी, संपत्ति, अच्छाई, परोपकार आदि में रामेश से कई गुना अधिक हूँ। यह साबित करने की उसकी हमेशा कोशिश हुआ करती थी। पर, हर बार उसकी हार होती थी। हाल ही में रामेश को वे दो हज़ार रुपये भी वापस मिले, जिनके मिलने की उसे आशा ही नहीं थी।
यह जानकर कामेश की ईर्ष्या और तीव्र हो गयी। ऐसे समय पर कामेश का एक रिश्तेदार भोला उसके घर आया। उसने कामेश से कहा, ‘‘मेरे भाई की बेटी की शादी पक्की हो गयी। उसने आवश्यक खर्च के लिए हज़ार रुपये भेजने की ख़बर भेजी। पर मेरे पास रक़म नहीं है। कर्ज लेकर ही सही, भाई की मदद करना मेरा धर्म है न! मेरे पास दो हज़ार नारियल हैं। हर नारियल आधे रुपये में ही सही, बेचने को तैयार हूँ। तुम खरीद लोगे तो तुम्हें लाभ भी होगा और इस बात की तृप्ति भी होगी कि एक लड़की की शादी कराने में सहायता पहुँचायी।''
कामेश भांप गया कि चूंकि हाट में नारियलों की माँग नहीं है, इसलिए भोला उन्हें उसके मत्थे मढ़ना चाहता है और रक़म ऐंठना चाहता है। पर उसे लगा कि रामेश को बेवकूफ बनाने और उसे नीचा दिखाने के लिए यह अच्छा मौक़ा है। उसने भोला से कहा, ‘‘अभी मेरे पास भी रक़म नहीं है। मेरा पड़ोसी रामेश परोपकारी है। वह शायद तुम्हारी मदद करे, चलो मेरे साथ।'' कहते हुए वह भोला को रामेश के घर ले गया। तब वहाँ गाँव के कुछ प्रमुख लोग भी उपस्थित थे।
रामेश उन्हें परोपकार के बारे में उदाहरण सहित बता रहा था। कामेश ने भोला का परिचय कराया और रामेश से कहा, ‘‘मेरे पास अभी धन नहीं है। यह जानकर इसे यहाँ ले आया हूँ कि तुम्हारे पास धन है। इसके नारियल खरीद लो और हमारे गाँव की इज्ज़त बचाओ।''

वहाँ उपस्थित प्रमुखों की समझ में आ गया कि इसके पीछे कामेश की बदनीयत है। उनमें से एक ने कहा, ‘‘अब नारियलों की माँग नहीं है। ऐसी स्थिति में दो हज़ार नारियल खरीदकर रामेश क्या करेगा?''
कामेश ने हँसते हुए कहा, ‘‘ऐसा सोचते हैं, तुम और मैं। रामेश की पद्धति ही कुछ और है। यों कहो, अनोखी है। वह अवश्य ही यह माल खरीदेगा। आशय अच्छा है, इसलिए इससे इसे लाभ भी होगा।'' रामेश ने तुरंत कहा, ‘‘ऊपर तथास्तु देवता हैं। हमारे कामेश ने अच्छे आशय से ही यह बात कही, इसलिए देवता भी तथास्तु ही कहेंगे।''
इस घटना के कुछ दिनों के बाद उस देश के राजा ने प्रजा के क्षेम के लिए एक याग करना चाहा। इसके लिए लाख नारियलों की ज़रूरत थी। चूँकि स्वदेश में नारियलों की माँग नहीं के बराबर थी, और व्यापारी सस्ते दाम में उन्हें विदेशों में बेच रहे थे, इसलिए राजा को विदेशों से ही नारियलों का आयात करना पड़ा।
माँग को मद्देनज़र रखकर विदेशी व्यापारियों ने नारियल का भाव बढ़ा दिया। अब हर नारियल का दाम चार रुपये हो गया । राजा ने मंत्रियों को बुलाकर कहा, ‘‘हमारी ज़रूरत का फायदा उठा रहे हैं, विदेशी व्यापारी। वे हमारे देश से सस्ते दाम पर नारियल खरीदते हैं और इसी देश में महंगा बेच रहे हैं।
क्यों नहीं हम पहले अपने देश से ही लेने का प्रयास करें। इसलिए देश भर में मुनादी पिटवा दीजिये कि हर नारियल पर हम दो रुपये चुकाएँगे। हमारे देश के व्यापारी जो नारियल हमें बेचेंगे, उन्हें हम खरीद लेंगे और अगर कमी पड़ गयी तो विदेशों से मँगायेंगे।


इससे हमारे देश के लोगों को भी अधिक लाभ होगा।'' कामेश इस बात पर बहुत प्रसन्न था कि उसने रामेश के हाथ भोला का नारियल बेचकर एक गोली से दो शिकार कर लिया है। भोला से वाहवाही ले ली और रामेश को घाटा दिलाकर उसे मात दे दी।
लेकिन राजा की घोषणा सुनकर कामेश चौंक गया और रामेश के प्रति ईर्ष्या और क्रोध से जलने लगा। उसी जलन में वह तुरन्त रामेश से मिलने चला गया। राजा की घोषणा सुनकर दूसरे दिन गाँव के प्रमुख रामेश का अभिनंदन करने उसके घर आये। रामेश ने उनसे कहा, ‘‘यह सब कामेश की मेहरबानी है।
उसके मुँह से एक अच्छी बात क्या निकली तथास्तु देवताओं ने भी तथास्तु कहा।'' तभी वहाँ आये कामेश ने कहा, ‘‘मानता हूँ कि ऊपर तथास्तु देवता होते हैं, पर पहले से ही रामेश को राजा की घोषणा की जानकारी थी। व्यापार में हम कहीं उसके प्रतिद्वंद्वी न बनें, इसीलिए उसने हमसे यह बात छिपा रखी। पूरा लाभ खुद उठाना चाहता था, इसलिए भोला से भी उसने इसके बारे में कुछ नहीं बताया।'' यह सुनकर वहाँ उपस्थित प्रमुख स्तंभित रह गये।
फिर कामेश जोश में आकर कहने लगा, ‘‘तुम कपटी हो। अपने को अच्छा कहलाने के लिए तुमने यह नाटक किया। पहले से ही तुम्हें इसकी जानकारी थी।'' ‘‘व्यर्थ ही जोश में मत आना कामेश। तुम ही भोला को साथ लेकर आये और उसकी सहायता करने की विनती की। तुम्हीं ने नारियल खरीदने की सलाह दी।
मैं थोड़े ही उसके पास गया और माल बेचने को कहा। तब मुझपर यह दोष कैसे मढ़ सकते हो?'' रामेश ने पूछा। कामेश तैश में आकर कुछ कहने की वाला था कि इतने में भोला वहाँ आया। रामेश ने उसे ख़बर भेजी थी कि माल को बेचने पर जो फ़ायदा हुआ, उसे आधा-आधा बाँट लें। यह सत्य जानकर कामेश अवाक् रह गया। यों कामेश एक और बार रामेश के हाथों हार गया।




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