योगी आलोकानन्द का आश्रम एक जंगल में था। एक दिन उन्होंने अपने सब शिष्यों को बताया कि वे अपना शरीर छोडनेवाले हैं। उनकी आयु सौ से ऊपर हो चुकी थी और अपने एक शिष्य धीरानन्द को उन्होंने अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए तैयार किया था।
एक दिन गुरु ने धीरानन्द को अकेले में बुला कर कहा, ‘‘आश्रम के जितने पावन पदार्थ हैं उन्हें अनादर या उपेक्षा की दृष्टि से कभी न देखना और उनकी समुचित देखभाल करना। जो भी हो, तुम्हें वहॉं रखे एक सन्दूक के एक कोने में विचित्र आकार का एक पत्थर मिलेगा। उसे तुम शान्ति का कोई स्तोत्र पढ़कर नदी में फेंक देना।’’
‘‘यदि आप बुरा न मानें तो क्या मैं जान सकता हूँ कि उस पत्थर में विशेषता क्या है?’’ धीरानन्द ने उत्सुक होकर पूछा।
‘‘यह मुझे किसी तांत्रिक मित्र ने दिया था। पत्थर के अन्दर एक छोटा शैतान है। यदि कोई व्यक्ति पत्थर को जमीन पर पटक दे तब शैतान बाहर आ जायेगा और करने के लिए कुछ काम मांगेगा। वह सचमुच का कोई उपयोगी काम नहीं कर सकता, केवल छोटा-मोटा चमत्कार कर सकता है, जैसे - हाथ में कोई छोटा पदार्थ रख देना अथवा कुछ अनोखी आवाजें निकाल कर लोगों को चकित कर देना या हवा में कुछ चीजें लटका देना आदि - आदि । कठिनाई यह है कि एक बार बाहर आ जाने पर शैतान चुपचाप कभी नहीं बैठेगा। यह अपने मालिक को वैसे ही कामों के लिए तंग करेगा।
इसे शान्ति तभी मिलेगी जब पत्थर को नदी में फेंक दिया जायेगा।’’ गुरु ने समझाया । फिर उन्होंने आगे बताया, ‘‘लेकिन यदि एक बार वह बाहर आ जाये तो पत्थर में वापस कभी नहीं जायेगा और न उसे छोड़ेगा जो उसे बाहर निकालने के लिए जिम्मेदार है। वह पॉंच वर्षों के पश्चात स्वयं अदृश्य हो जायेगा।’’
इसके बाद शीघ्र ही गुरु का स्वास्थ्य गिरने लगा। उनकी हालत गंभीर हो गई । शिष्यगण उनकी सेवा में व्यस्त हो गये । गुरु के देहत्याग के एक दिन पश्चात धीरानन्द को पत्थर की याद आई और उसने उसे निकालने के लिए सन्दूक खोली। किन्तु यह क्या! पत्थर वहॉं नहीं था। उसने गुरु की सभी सन्दूकों में उसे ढूंढा, किन्तु व्यर्थ!
दो दिन गुजर गये। एक अन्धेरी रात को किसी ने धीरानन्द का दरवाजा खटखटाया। उसने दरवाजा खोला। दरवाजे पर गुरु का एक शिष्य चन्द्रन खड़ा था। वह जंगल के निकट एक गॉंव में रहता था और वह प्रायः आश्रम में आया करता था।
‘‘क्या बात है? तुम इतने परेशान क्यों लग रहे हो?’’ धीरानन्द ने पूछा।
‘‘मित्र, मैं बहुत परेशान हूँ।’’ चन्द्रन ने कहा। उसने तब यह स्वीकार किया कि उसने अलौकिक पत्थर के बारे में गुरु और धीरानन्द की बातचीत सुन ली थी।
‘‘मुझे दुख है कि मैं उस पत्थर को चुराने का लालच रोक न सका। आखिर यह आप के लिए बेकार था, क्योंकि इसे आप नदी में फेंक देते। मैंने इसे जोर से जमीन पर दे मारा और सचमुच एक शैतान प्रकट हो गया। इसे कोई और नहीं, लेकिन मैं देख सकता था। उसने काम मांगा। मैं गॉंव के चौक पर गया। वहॉं बहुत से लोग एकत्र थे। मैंने उन्हें चमत्कार दिखाने का वचन दिया। मैंने शैतान से एक झाड़ी में आग लगाने के लिए कहा। उसने वैसा ही किया और झाड़ी से लपटें उठने लगीं। फिर मैंने उसे आग बुझाने के लिए कहा। उसने यह भी कर दिया। गॉंववाले चकित थे लेकिन बहुत प्रसन्न नहीं थे। जैसे ही मैं घर वापस आया कि शैतान ने कोई दूसरा काम करने के लिए मॉंगा। मैंने बाग के पौधों में पानी डालने के लिए कहा। इसने तुरन्त पौधों को उखाड़ दिया और उनमें पानी डाल दिया। मैं हैरान रह गया। मैंने उसे फटकारा लेकिन उसने न कुछ समझा और न उसे इसका खेद हुआ। पर वह हमेशा कुछ न कुछ व्यर्थ के चमत्कार पूर्ण काम मांगता रहा।
‘‘मैंने उसे सोने की एक अंगूठी लाने को कहा। तुरन्त मैंने अपनी तलहथी पर एक अंगूठी देखी । लेकिन साथ ही मेरी बहन की अंगूठी गायब पाई गई। दूसरे शब्दों में, शैतान ने उसकी उंगली से अंगूठी निकाल ली थी।’’
‘‘क्यों नहीं तुम इसे अपने खेतों को जोतने के लिए कहते?’’ धीरानन्द ने सलाह दी।
‘‘मुझे डर है कि वह वैसा ही न कर दे जैसा उसने पौधों के साथ किया। इसे सिर्फ चमत्कार वाले काम में ही व्यस्त रखा जा सकता है, किसी अन्य काम में नहीं । किन्तु मैं पॉंच वर्षों तक निरन्तर कैसे लोगों को चमत्कार दिखाता रहूँ? किसे इसकी जरूरत है? साथ ही, मेरे अपने काम का क्या होगा? मैं दो दिनों में ही पागल हो गया हूँ। वह शैतान केवल आधी रात में एक घण्टे के लिए विश्राम करता है और अपने में फिर से शक्ति भर लेता है। वह अभी यही कर रहा है। कृपया कोई उपाय बताइये जिससे उससे मुक्ति मिले।’’ चन्द्रन ने रुआँसा होकर कहा।
धीरानन्द ने कुछ देर के लिए सोचा और फिर चन्द्रन से कुछ कहा। तभी शैतान ने खिड़की से झॉंका और चन्द्रन से काम मॉंगा।
‘‘तुम्हारे लिए काम तैयार है,’’ बाहर आकर प्रसन्न होते हुए चन्द्रन ने कहा। वह शैतान को अपने घर के पिछवाड़े में ले गया। वहॉं उसका कुत्ता लेटा हुआ था।
‘‘अब, ओ शैतान के बच्चे, मेरे कुत्ते की पूँछ पर जरा नज़र डालो। यह टेढ़ी है न? इसे कुत्ते को बिना हानि पहुँचाये सीधी करनी है। जब काम पूरा हो जाये, तभी मेरे पास आना।’’ चन्द्रन ने उसे आदेश दिया ।
‘‘इसे मैं चुटकी बजाते ही कर दूँगा।’’ शैतान ने घमण्डपूर्वक कहा। वह बैठ कर कुत्ते की पूँछ सीधी करने लगा। जैसे ही वह उसे सीधी करके छोड़ देता, पूँछ पुनः टेढ़ी हो जाती। शैतान बार-बार कोशिश करता पर पूँछ वैसी ही टेढ़ी रहती। कुछ देर के बाद कुत्ता उठ कर घर के सामने आ गया। शैतान भी जो अदृश्य रहता था, कुत्ते के साथ-साथ आया और पूँछ सीधी करने की कोशिश करता रहा।
चन्द्रन चुपचाप वहॉं से खिसक गया। एक साल होने को आया लेकिन शैतान अभी तक उसके पास नहीं लौटा।
चन्द्रन जानता है कि पॉंच वर्षों के बाद शैतान गायब हो जायेगा और कुत्ते की पूँछ हमेशा के लिए टेढ़ी की टेढ़ी रहेगी।
अगले दिन वह धीरानन्द के पास गया। ‘‘क्या अब तुम समझते हो क्यों हमारे गुरु कुछ व्यक्तियों के स्वभाव की तुलना कुत्ते की पूँछ से किया करते थे? कुत्ते की पूँछ के समान, जिसे सीधी करने की कितनी ही कोशिश के बाद वह टेढ़ी ही रहती है, उन व्यक्तियों का स्वभाव बदलने के भरसक प्रयास के बावजूद टेढ़ा ही रहेगा।’’
दोनों हँस पड़े और चन्द्रन ने एक बार फिर पत्थर चुराने के लिए क्षमा मॉंगी।
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