कमल, धनीराम, भूषण घने दोस्त थे। कमल और धनीराम व्यापारी थे, भूषण किसान था। एक दिन कमल ने भूषण से कहा, ‘‘देखा, धनीराम ने पड़ोसी व्यापारियों के सामने मेरा कितना अपमान किया! भविष्य में उससे दोस्ती नहीं रखूँगा । मेरे और उसके संबंध ख़त्म समझो।'' भूषण ने सहानुभूति दिखाते हुए जोश भरे स्वर में कहा, ‘‘आख़िर हुआ क्या? चलो अभी। मैं खुद इसका कारण पूछूँगा और उससे बात करूँगा।'' ‘‘इसको लेकर मैं बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहता। यह तो बिलकुल सच है कि उसने जान-बूझकर मेरा अपमान किया। इस पल से उस धोखेबाज़ का, उस द्रोही का चेहरा भी देखना नहीं चाहता।'' कमल यों कहकर वहाँ से तेज़ी से चला गया। भूषण ने भी निश्चय कर लिया कि आगे से उस धनीराम से मैं भी संबंध नहीं रखूँगा, जिसने मेरे घने मित्र के दिल को इतनी चोट पहुँचायी। हो सकता है, वह कल मेरे साथ भी ऐसा ही व्यवहार करे। एक सप्ताह गुज़र गया। एक दिन शाम को जब भूषण महालक्ष्मी मंदिर जा रहा था, उसने देखा कि कमल और धनीराम हँसते हुए चले आ रहे हैं। उन्हें उस हालत में देखकर वह स्तंभित रह गया। रात को भोजन के बाद भूषण की पत्नी ने उससे कहा, ‘‘यह थोड़े ही कोई अजीब बात है। जो पति-पत्नी एक-दूसरे को बहुत चाहते हैं, उनके बीच भी कभी-कभी ऐसे मनमुटाव होते ही रहते हैं। यह स्वाभाविक है। अच्छा हुआ, तुमने उनके बीच में हस्तक्षेप नहीं किया।'' हँसते हुए उसने कहा, क्योंकि भूषण पहले ही अपनी पत्नी से उनके झगड़े के बारे में बता चुका था।

लखनऊ में तनाव तो धनीराम के गानों पर मस्त है सैफई
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