Thursday, June 30, 2011

श्रे? गुश

विलासपुर के शासक राजा रामभ? व?ज हो गये। शासन-भार अपने पुख वीरभ? को सा?पते ह?ए उधहोंने उससे कहा, ‘‘पुख, जब म?ने शासन की बागड़ोर संभाली, तब हमारे नागरिकों में से अधिकांश अशिक्षित थे। इस वजह से अंध विळवासों व मूढ़ाचारों के वे आदी हो गये। ऐसा करके उधहोंने अपना ही अहित नहीं किया बशिक समाज का भी अहित किया। इसीलिए म?ंने राजधानी में एक विणालय की थिापना की। परंतु सही गुश के न होने के कारण मेरा आशय पूरा नहीं हो पाया। मुझे निराश होना पड़ा। मेरी रबल इअछा ह? कि पहले उस विणालय में तुम एक ऐसे सुयो?य गुश की नियुि? करो, जो मेरे आशय को पूरा कर सके।’’
वीरभ? ने पिता की बातें णयान से सुनीं। उसने पिता के आशय को पूर्ण करने का छढ़ निळचय लिया। उसने तुरंत मंखियों की सभा बुलायी आ?र इस विषय पर दीर्घ चर्चाएँ की?।

परंतु कोई भी मंखी ठोस सलाह दे नहीं पाया। तब उनमें से एक व?ज आ?र विवेकी पंडित वाचपिति ने राजा से कहा, ‘‘राजन?, विणा के रति जिनमें आसि? ह?, उनके लिए माता, पिता तथा आसपास की संपूर्ण रक?ति गुश ही ह? । ऐसे आस? लोगों को सक्रम पजति णारा रभावित करने के लिए आपके पिताजी ने राजधानी में एक विणालय की थिापना की। आपके पिताजी यह आशा लिये ब?ठे थे कि जिधहोंने उस विणालय में शिक्षा रार की, वे देश भर में फ?लेंगे आ?र हमारे नागरिकों में विणा के रति आसि? जगायेंगे आ?र बढ़ायेंगे। लेकिन दुख की बात ह? कि उनसे नियु? गुश इस काम में सफल नहीं हो पाये।

‘‘इसका कारण क्या ह??’’ वीरभ? ने पूछा।

‘‘जिनमें पांडिएय ह?, वे बड़े पंडित माख ही बनकर रह जाते ह?। वे महान गुश बन नहीं सकते।


बड़े-बड़े पंडित विणालय में नियु? किये गये, पर वे महान गुश हो नहीं पाये। मुझे अभी-अभी लग रहा ह? कि गुशओं के बड?पन की परीक्षा लेनी चाहिये।’’ वाचपिति ने कहा।

वीरभ? को ये बातें वातिविक लगीं। गुरचरों को देश के कोने-कोने में भेजने पर उनके णारा उसे मालूम ह?आ कि दंडकारएय में रशांत आ?र रसेन नामक दो रकांड पंडित ह? जिधहोंने कितने ही युवकों को सिजहति विणावान बनाया। वीरभ? ने वाचपिति से यह बात बतायी आ?र उनसे विनती की कि उन दोनों में से किसी एक की नियुि? विणालय में हो।

वाचपिति ने क्षण भर सोचने के बाद कहा, ‘‘राजन?, मेरी एक सलाह ह?। हमारे विणालय में रवेश करके, शिक्षा पाने के बाद भी जो बीस युवक विणावान नहीं बन पाये उनमें से दस को रशांत आ?र बाकी दस को रसेन को सा?पें। छे महीनों की अवधि में जो सफल होगा उसे हमारे विणालय में गुश नियु? करेंगे। राजा वीरभ? को वाचपिति की सलाह सही लगी।

ज?सा निर्णय ह?आ था, उसके मुताबिक दस विणार्थी रशांत के पास, आ?र शेष दस विणार्थी रसेन के पास भेजे गये। रशांत के यहॉं जो विणार्थी शिक्षा रार कर रहे थे, छे महीनों के अंदर उनमें से तीन विणार्थियों ने शािों में न?पुएय कमाया तो रसेन के यहॉं शिक्षा रार करनेवाले सात विणार्थी शािों में निळणात बने।

तब वाचपिति ने पहले रसेन से पूछा। ‘‘बाकी तीन विणार्थियों के बारे में आपका क्या कहना ह? ‘‘मेरे पास बचे शेष तीनों विणार्थी जधम से ही बुजिहीन ह?। वे चेतनाहीन ह?, जड़ ह?, कोई भी उधहें विणावान नहीं बना सकता,’’ रेसन ने विळवास-भरे विर में कहा।

इसके बाद वाचपिति रशांत से मिले आ?र पूछा, ‘‘उन सातों विणार्थियों के बारे में आपको क्या कुछ कहना ह? रशांत ने कहा, ‘‘आर्य, मेरे विणार्थियों में से तीन विणार्थी बुजिमान ह?, इसलिए उधहोंने जशदी ही शिक्षा रार कर ली। बाकी सातों विणार्थी उनकी तुलना में पर्यार होशियार नहीं ह?। पर मुझे पूरा विळवास ह? कि आ?र छे महीनों में उधहें विणावान बनाकर रहूँगा। मुझे अवधि दी जाए तो उधहें उन तीनों के समकक्ष यो?य बना दूँगा।’’


वाचपिति ने यह विषय राजा से बताया आ?र कहा कि ‘‘राजधानी के विणालय में रशांत को गुश नियु? करना अअछा होगा।’’ राजा ने इसपर र्आीर्य रकट करते ह?ए कहा, ‘‘गुशदेव, छे ही महीनों में जिस रसेन ने सात विणार्थियों को शािों में निळणात बनाया, उसकी जगह पर उस रशांत को विणालय में नियु? करने की सलाह दे रहे ह?, जो केवल तीन विणार्थियों को ही विणावान बना पाया। क्या यह उचित ह?"

वाचपिति ने मुकिुराकर कहा, ‘‘राजन, हमारे विणालय के कितने ही विणाहीन विणार्थियों को रशांत आ?र रसेन विणावान बनाने में समर्थ ह?ए। इससे यह साबित होता ह? कि दोनों के दोनों निसिंदेह ही महान गुश ह?। रसेन ने सात आ?र रशांत ने तीन विणार्थियों को विणावान बनाया, पर यह उनकी रतिभा का मापदंड माना नहीं जा सकता । यह तो मानना होगा कि रसेन के विणार्थियों में से ़अयादा विणार्थी रतिभावान ह?ं, रतिभाहीनों की उधहोंने भएर्सना की, उधहें जड़ कहा। पर, रशांत ने किसी भी विणार्थी को रतिभाहीन या जड़ नहीं माना। यहॉं हमें विळणुशर्मा आ?र तीन मूर्ख राजकुमारों की कहानी याद करनी होगी।’’ कहते ह?ए वे शक गये।

राजा ने कहा, ‘‘हॉं, हॉं, याद ह?। फिर आगे कहिये गुशदेव’’। ‘‘राजन, हमें एक विषय को णयान में रखना चाहिये। रशांत ने शेष सात विणार्थियों को विणावान बनाने के लिए समय मांगा। उधहोंने अपने शिळयों की न ही भएर्सना की आ?र न ही उनकी ग़लती बतायी । जो गुश शिळयों को चेतनाहीन मानता ह?, जड़ समझता ह?, वह गुश हो ही नहीं सकता। इसी कारण म?ने रशांत को उखाम गुश के शप में चुना ह?।’’

राजा वीरभ? ने वाचपिति की रशंसा की आ?र रशांत को विणालय में गुश के थिान पर नियुि? की। उस विणालय के कितने ही विणार्थी विणावान बने, विणा के रसार में सहायक सिज ह?ए आ?र देश के नागरिकों के मानसिक विकास में सफल रहे।


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  1. लखनऊ में तनाव तो धनीराम के गानों पर मस्‍त है सैफई
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