एक समय मेघालय में स्मिट नाम के एक छोटे से शहर में एक व्यापारी रहता था। आय का एक मात्र साधन उसकी एक दुकान था। उसका इकलौता बेटा बेयन अभी बड़ा हो रहा था । वह शिष्ट और स्नेहिल स्वभाव का था। वह अभी इतना बड़ा नहीं हुआ था कि अपने बारे में स्वयं निर्णय ले सके । व्यापारी विधुर था, उसकी पत्नी अपने बेटे को जन्म देने के बाद ही चल बसी।
व्यापारी दिनोंदिन वृद्ध होता जा रहा था और उसे हमेशा यही भय लगा रहता था कि पता नहीं कब उसकी सांस रुक जाये। इसलिए एक दिन उसने अपने बेटे को बुलाकर कहा, ‘‘बेयन, मेरे प्रिय पुत्र, वह दिन कभी भी आ सकता है जब मैं अचानक संसार से विदा ले लूँ। तब तुम्हें ही दुकान संभालनी पड़ेगी। जो भी हो, जब तक तुम कड़ी मेहनत नहीं करोगे, तब तक खाने-पीने भर आमदनी नहीं हो पायेगी। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा जीवन सुखी हो। इसलिए तुम्हें वादा करना होगा कि तुम मेरे तीन वचन का पालन करोगे। क्या तुम कर पाओगे?''
‘‘अवश्य पिता'', आज्ञाकारी बेयन ने कहा। ‘‘कहिये, मुझे क्या करना पड़ेगा?''
‘‘पहला, घर और दुकान के बीच धूप में नहीं चलना; दूसरा, दैनिक भोजन में केवल चावल खाना और तीसरा, जब तुम विवाह करो तो हर सप्ताह एक नई पत्नी ले आना,'' उसके पिता ने प्यार से कहा।

‘‘व़क्त तुम्हें सब कुछ बता देगा, मेरे पुत्र,'' व्यापारी ने कहा। ‘‘अभी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है।''
व्यापारी अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहा। एक दिन दुकान से लौटते ही उसकी मृत्यु हो गई। प्रथा के अनुसार उसका अन्तिम संस्कार सम्पन्न कर दिया गया। बेयन अब बड़ा हो चुका था। उसे पिता को दिये तीनों वचन याद आ गये।
बेयन खुशी से मुस्कुरा पड़ा। ‘‘मरयम, तुम तो मेरी कल्पना से भी अधिक बुद्धिमती हो। ठीक है, मैं अब तुम्हें कभी भी तुम्हारे घर वापस नहीं भेजूँगा। और तुम हमेशा के लिए मेरी प्यारी पत्नी बनी रहोगी।''

‘‘घर और दुकान के बीच धूप में नहीं चलना।'' बेयन को समझ में नहीं आया पिता का तात्पर्य क्या था। दुकान घर से बहुत दूर नहीं थी। इसलिए घर से दुकान तक पूरी गली में उसने चँदवा लगा दिया। इससे पूरी गली में घर से दुकान तक छाया हो गई और दिन में किसी भी समय उसे दुकान तक धूप में जाना नहीं पड़ा।
उसे चँदवा के निर्माण पर काफी धन खर्च करना पड़ा। इसलिए बेयन के दोस्त इस फिज़ूलखर्च पर उसका मज़ाक उड़ाने लगे। बेयन सिर्फ इतना ही कहता, ‘‘लेकिन मैंने पिता को वचन दिया था।'' उसे पिता का दूसरा वचन याद आया। ‘‘दैनिक भोजन में सिर्फ चावल खाना।'' बेयन को इसका पालन करना अधिक मुश्किल नहीं लगा, यद्यपि कुछ दिनों के बाद वह इससे ऊबने लग गया।
कभी उसके दोस्तों ने उसे अपने घरों में भोजन पर निमंत्रित किया, लेकिन उसने मना कर दिया। ‘यदि वे चावल के अलावा कुछ और परोस दें।' इस विचार के आते ही वह परेशान हो जाता। ‘‘मैं पिता को दिये वचन का पालन नहीं कर पाऊँगा।'' जो भी हो, उसने दोस्तों को पिता को दिये वचन का रहस्य नहीं बताया।
अनेक अविवाहित लड़कियों के माता-पिता उसके पास विवाह का प्रस्ताव लेकर गये, लेकिन उसकी शर्त सुन कर चकित रह गये। ‘‘मैं आप की बेटी से विवाह तो कर लूँगा, किन्तु वह केवल एक सप्ताह के लिए ही मेरी पत्नी रहेगी।'' लड़की के पिता यह सुनकर क्रोधित और निराश होकर वापस चले जाते।
बेयन की विचित्र शर्त से दुखी होकर योग्य लड़कियों के पिता दूर ही रहने लगे। शीघ्र ही पूरे शहर में वह उपहास का पात्र बन गया।
मरयम को बेयन की विचित्र शर्त के बारे में मालूम हुआ। वह उसकी दृढ़ता से बहुत प्रभावित हुई। उसने उससे विवाह करने का निश्चय कर लिया और अपने माता-पिता से यह निर्णय बताया।
![]() ‘‘वह मुझे नहीं निकालेगा !'' मरयम ने बड़े विश्वास के साथ कहा। ‘‘आप लोग देखते जाइये।'' उसके माता-पिता ने तब बेयन को मरयम से मिलने के लिए अपने घर पर निमंत्रित किया। बेयन मरयम की सुन्दरता तथा उसके मधुर व्यवहार से बहुत प्रभावित हो गया। बेयन ने मरयम को पिता के तीन वचनों के बारे में बताया और कहा, ‘‘मैं पिता को दिये वादे को कभी नहीं तोड़ूँगा।'' ‘‘मैं सब जानती हूँ।'' मरयम मुस्कुराती हुई बोली। ‘‘घबराओ नहीं।'' विवाह शान के साथ सम्पन्न हुआ। बेयन के सभी दोस्त शादी में शामिल हुए। मरयम के माता-पिता ने राजसी भोज दिया। प्रथा के अनुसार बेयन को भोजन के तुरन्त बाद अपनी बीवी को अपने घर ले जाना था। दोस्त लोग वर वधू को शुभकामनाओं के साथ उसके घर छोड़ आये। ‘‘कितने दुःख की बात होगी जब एक सप्ताह के बाद मरयम को वापस जाना पड़ेगा!'' वे आपस में बात करते हुए उदास हो गये। मरयम ने सप्ताह के सातो दिन अपने हृदय का सारा प्यार बेयन पर उड़ेल दिया। सातवें दिन दुकान से वापस आने पर बेयन परेशान सा दिखाई पड़ा। मरयम ने देख लिया। लेकिन वह घर का सारा काम इस तरह करती रही मानो कुछ नहीं हुआ। ‘कल मुझे उसे निकाल देना होगा ! मैं पिता को दिया वचन कैसे तोड़ सकता हूँ?' यह विचार उसे रात भर परेशान करता रहा। सुबह हो गई। बेयन जाने के लिए तैयार हो गया। ‘‘क्या तुम तैयार हो मरयम?'' ‘‘आज मैं कहीं नहीं जा रही हूँ।'' मरयम ने भोलेपन से उत्तर दिया। ‘‘मुझे तुम्हें घर वापस ले जाना है। तुम्हें मालूम है कि मैंने अपने पिता को यह वचन दिया था और मैं इसे तोड़ नहीं सकता।'' बेयन ने कहा। ‘‘तुम कितने मूर्ख हो!'' मरयम ने टिप्पणी की। ‘‘तुम्हारे पिता ज्ञानी थे और उदार थे। यह सोचना मूर्खता है कि तुम्हारे पिता तुम्हें ऐसा काम करने के लिए कहेंगे जिससे तुम शहर भर में उपहास के पात्र बन जाओ!'' |
‘‘तुम्हारा क्या मतलब है, मरयम?'' बेयन जो बचपन से ही भोला भाला था, समझ नहीं सका कि मरयम उसे क्या समझाना चाहती है। उसने कहा, ‘‘तुम्हारा मतलब उन प्रतिज्ञाओं से है जिनका पालन करने के लिए मेरे पिता ने मुझसे...।''
मरयम ने बीच में टोका। ‘‘हाँ, मैं वही कहने जा रही हूँ। जब उन्होंने यह कहा कि तुम्हें धूप में दुकान पर नहीं जाना चाहिये, तब उनका मतलब था कि तुम्हें सूर्योदय से पहले अपनी दुकान खोल देनी चाहिये और सूर्यास्त के बाद उसे बन्द कर घर लौटना चाहिये। वे चाहते थे कि तुम सारा दिन दुकान में रहो। पर तुमने क्या कर दिया? तुमने घर से दुकान तक पूरी गली में चँदवा लगा दिया और कितना सारा धन बर्बाद कर दिया। तुम भी कितने मूर्ख निकले !''
मरयम थोड़ी देर के लिए रुकी। फिर बोली, ‘‘उन्होंने कहा कि तुम्हें केवल चावल ही खाना चाहिये। ठीक है न? वे चाहते थे कि तुम्हें जरूरत के अनुसार ही खाना चाहिये। भोजन के लिए अण्ट-सण्ट खाने की बुरी आदतें नहीं डालनी चाहिये। जब तुम्हारे दोस्तों ने भोजन करने के लिए निमन्त्रित किया तब तुमने स्वर्गीय पिता के नाम पर उनका निमन्त्रण ठुकरा दिया ! भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें !''
अब, बेयन उस पर ध्यान से नजर डाले यह जानना चाह रहा था कि वह तीसरे वचन के बारे में क्या कहेगी। मरयम ने समझाया, ‘‘तुम्हारे पिता सिर्फ यह बताना चाहते थे कि तुम अपनी बीवी को बहुत प्यार से रखो। यदि तुम अपनी पत्नी को उतने ही प्यार से हर रोज देखो जैसे तुमने पहले दिन देखा था तो वह हर रोज तुम्हें नई पत्नी की तरह दीखेगी !''

बेयन और मरयम आठवें दिन से प्यार और सुख से सदा एक साथ रहने लगे।
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