
वैशाली नगर में हीरादत्त नामक एक धनी था। उसे बहुत समय तक कोई संतान न थी, आख़िर उसकी चालीस साल की उम्र में सोने की गुड़िया जैसी एक सुंदर लड़की पैदा हुई। इस पर हीरादत्त की ख़ुशी का ठिकाना न रहा।
मगर उसकी खुशी शीघ्र ही दुख में बदल गयी। उस शिशु को एक दिन ठण्ढी हवा में बाहर एक झूले में लिटाया गया। इतने में कहीं से एक बहुत बड़ा बाज आया और शिशु से लपेटे हुए कपड़ों को अपनी चोंच तथा पैरों से पकड़कर उस शिशु के साथ कहीं उड़ गया। हीरादत्त ने उस बाज का शिकार करके शिशु को छुड़ाने के लिए शिकारियों को भेजा। सभी देशों में उसने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो उसके शिशु को ला देगा, उसे अपार धन दिया जायेगा, मगर उसके प्रयत्न सफल नहीं हुए।
असल में बात यह थी कि हीरादत्त की लड़की को उठा ले जानेवाला बाज न था, बल्कि शाप के कारण थोड़े समय के लिए यक्षलोक से बहिस्कृत एक यक्षिणी थी जो पक्षी के रूप में आसमान में उड़ते हुए हीरादत्त की लड़की को देख प्रसन्न हो उठी और उसे पालने का निश्चय कर लिया।
उस लड़की को पक्षी उठा ले गया था, इस कारण से हीरादत्त की पुत्री का नाम शकुंत कुमारी पड़ा। शकुंत कुमारी यक्षिणी के पालन-पोषण में दुनियादारी का ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ अनेक प्रकार की युक्तियों से परिचित हो गयी और कालांतर में सोलह साल की हो गयी।
एक दिन यक्षिणी ने शकुंत कुमारी से कहा, ‘‘बेटी, मेरे शाप की अवधि पूरी हो गयी है। अब मैं अपने लोक में जा रही हूँ। तुम्हें सौंदर्य के साथ तेज़ बुद्धि भी प्राप्त है। कोई भी राजकुमार तुम्हारे साथ प्रसन्नतापूर्वक विवाह करेगा! तुम इस रास्त से जाओगी तो तुम्हारे पिता का वैशाली नगर दिखाई देगा।
तुम अपने माता-पिता से मिलकर योग्य व्यक्ति के साथ विवाह करो और मैंने तुम्हें जो विद्याएँ सिखायीं, उनका प्रयोग कर सुखपूर्वक जीवन बिताओ।'' ये शब्द कहकर यक्षिणी अपने लोक में चली गयी। शकुंत कुमारी ने अपना अधिकांश जीवन जंगल के बीच बिताया था, फिर भी वह समस्त प्रकार के सभ्य जीवन से परिचित थी। इसलिए उसने सभ्य जीवन में प्रवेश करने का निश्चय कर लिया और वैशाली नगर की ओर चल पड़ी।
तुम अपने माता-पिता से मिलकर योग्य व्यक्ति के साथ विवाह करो और मैंने तुम्हें जो विद्याएँ सिखायीं, उनका प्रयोग कर सुखपूर्वक जीवन बिताओ।'' ये शब्द कहकर यक्षिणी अपने लोक में चली गयी। शकुंत कुमारी ने अपना अधिकांश जीवन जंगल के बीच बिताया था, फिर भी वह समस्त प्रकार के सभ्य जीवन से परिचित थी। इसलिए उसने सभ्य जीवन में प्रवेश करने का निश्चय कर लिया और वैशाली नगर की ओर चल पड़ी।
जंगल में थोड़ी दूर चलने पर उसे एक जगह एक विचित्र राजमहल दिखाई दिया। शकुंत कुमारी ने उस महल में प्रवेश किया। उसमें हाथी, घोड़े, द्वारपाल, नौकर-चाकर, दास-दासियाँ सब गहरी नींद में सो रहे थे। भीतर जाकर उसने एक शयन कक्ष में प्रवेश किया। वहाँ पर एक सुंदर राजकुमार लेटा हुआ था। उस कक्ष की दीवार पर एक चित्र लटक रहा था, जिसमें वही राजकुमार घोड़े पर सवार था।
मगर उसके कंठ में एक हार चित्रित था। पर वह हार उस व़क्त राजकुमार के कंठ में न था। वह हार राजकुमार के चरणों के पास एक पेटी में रखा हुआ था। शकुंत कुमारी के मन में यह विचार आया कि उस हार के उसके कंठ में न होने तथा उसकी गहरी नींद का कोई संबंध हो! इसका पता लगाने के ख़्याल से शकुंत कुमारी ने हार को पेटी से निकाला और राजकुमार के वक्ष पर टिका दिया।
तुरंत राजकुमार करवट बदलने लगा और ऐसा प्रतीत हुआ, मानों वह जागने जा रहा हो। शकुंत कुमारी ने उस हार को पुनः उसी पेटी में रख दिया। यात्रा के कारण उसके कपड़ों पर धूल जमी हुई थी। उसके कपड़े सब मैले व फटे हुए थे। इसलिए शकुंत कुमारी ने सोचा कि राजकुमार के जागने के पहले स्नान करके, राजमहल से सुंदर वस्त्र निकालकर पहन ले, और वह भी सुंदर दिखाई दे।
वह उस कमरे में से अच्छे वस्त्र निकाल कर समीप के तड़ाग के पास गयी और स्नान करने लगी। उस व़क्त शकुंत कुमारी ने देखा कि एक कुबड़ी औरत रोती हुई उस रास्ते से जा रही है।


वह कुबड़ी देखने में भी बदसूरत थी, फिर भी उसके दुख को देख शकुंत कुमारी द्रवित हो गयी और उससे पूछा, ‘‘तुम कहाँ जाती हो? और क्यों रोती हो?'' ‘‘मेरे पति ने मुझे घर से निकाल दिया, मैं किसी शेर के मुँह में जाऊँगी? अब कैसे दिन बिता सकती हूँ?'' कुबड़ी ने दुख भरे स्वर में उत्तर दिया।
‘‘तुम चिंता न करो। तुम्हारे पोषण का भार मैं ले लूँगी। तुम उस महल के पास जाकर मेरा इंतज़ार करो, मैं अभी स्नान करके आ जाती हूँ।'' शकुंत कुमारी ने कहा। कुबड़ी राजमहल में प्रवेश करके राजकुमार के कक्ष में चली गयी। उसे भी हार को देखने पर संदेह हुआ।
उसने पेटी में से हार निकालकर राजकुमार के कंठ में पहना दिया। शीघ्र ही राजकुमार जाग उठा, साथ ही राजमहल के सभी लोग जाग पड़े। अपनी निद्रा को छुड़ानेवाली कुबड़ी के साथ राजकुमार ने विवाह करने का निश्चय कर लिया। ‘‘मैं एक राजकुमारी हूँ, मेरी दासी अभी आ जायेगी।'' कुबड़ी ने राजकुमार से कहा।
थोड़ी ही देर में शकुंत कुमारी वहाँ आ पहुँची। राजमहल के सभी कर्मचारियों को जागते देख उसने समझ लिया कि उसके साथ धोखा हो गया है। शकुंत कुमारी के वहाँ पहुँचते ही कुबड़ी ने राजकुमार से कहा, ‘‘यही मेरी दासी है!'' शकुंत कुमारी ने कुबड़ी की निंदा की और राजकुमार को सारी बातें समझा दीं।
इस पर राजकुमार ने कहा, ‘‘मैं समझ नहीं पाता हूँ कि तुम दोनों में से कौन दासी है और कौन रानी है? और कौन किसको धोखा दे रही है? मैं अभी अभी नींद से जगा हूँ, मेरे जागते ही यह कुबड़ी सामने दिखायी दी। इसलिए मैं इसका ऋणी बन गया हूँ।''

‘‘मैं अभी फ़ैसला करूँगी कि कौन रानी है? और कौन दासी है? मैं काग़ज़ के कुछ टुकड़ों पर ‘रानी' तथा ‘दासी' लिखकर सब टुकड़ों को एक पेटी में डाल दूँगी। तब आँखें मूँदकर ‘रानी' वाले सभी टुकड़ों को निकालूँगी। पेटी में जो टुकड़े बच जायेंगे, उन पर ‘दासी' लिखा रहेगा।'' इस शर्त को राजकुमार ने मान लिया।
शकुंत कुमारी ने कागज़ के कुछ टुकड़े किये। उन पर ‘रानी' तथा ‘दासी' अलग अलग लिखकर एक पेटी में डाल दिया और आँखें मूँदकर ‘रानी' लिखे गये सब टुकड़ों को निकाला। पेटी में जो टुकड़े बच, उन पर ‘दासी' लिखा गये था। इसे देख कुबड़ी का शरीर काँप उठा। उसने अपने अपराध को स्वीकार कर लिया।
शकुंत कुमारी ने कुबड़ी को क्षमा कर उसे अपनी दासी बना ली। इसके बाद राजकुमार तथा शकुंत कुमारी का विवाह वैभव के साथ संपन्न हुआ। विवाह में भाग लेने के लिए वैशाली नगर से शकुंत कुमारी के माता-पिता भी आ पहुँचे। बचपन में ही खो गयी अपनी पुत्री को पाकर शकुंत कुमारी के माता-पिता फूले न समाये।
शकुंत कुमारी ने अपना सारा वृत्तांत उन्हें सुनाया। उसकी माँ ने विस्मय के साथ पूछा, ‘‘कागज़ के सही टुकड़ों को निकालने में तुमने कोई युक्ति की होगी! वह कैसी युक्ति है?'' शकुंत कुमारी ने मुस्कुराते हुए यों कहा, ‘‘माँ, कैंची से काटे गये गत्ते के टुकड़ों को मैंने तीन तहों में मोड़ दिया।
उसमें बीचवाले भाग में ‘रानी' तथा दोनों छोरों के टुकड़ों में ‘दासी' लिखकर प्रत्येक गत्ते को तीन टुकड़ों में फाड़ दिया। ‘रानी' लिखे गये प्रत्येक टुकड़े के दोनों छोर खुरदरे थे और ‘दासी' वाले टुकड़ों का एक छोर खुरदरा तथा दूसरा छोर चिकना था। इसलिए ‘रानी' वाले टुकड़ों को उंगलियों से पहचान लेना आसान था। कुबड़ी ने मुझे धोखा दिया था, उसके बदले मैंने भी उसे इस तरह धोखा दिया।''

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