Thursday, June 30, 2011

पलंग के पहरेदार

सीताराम, एक कुशल काष्ठकार पियाराम आचारी का बेटा था। बचपन से ही उसकी बुद्धि प्रखर थी। वह बड़े ध्यान और रुचि के साथ अपने पिता को काम करते हुए देखता था। पियाराम चाहता था कि उसका बेटा पढ़-लिखकर विद्वान बने। लेकिन सीताराम को घर पर रह कर पिता की बनाई कुर्सियों, चारपाइयों, दरवाजों और खिड़कियों का निरीक्षण करना अधिक पसन्द था। लोग अक्सर उसके घर पर लकड़ी के कुछ न कुछ सामान खरीदने के लिए आते रहते थे।
काष्ठकारी के काम से तीन सदस्यों के छोटे परिवार का खर्चापानी ठीक-ठाक चल रहा था। इसलिए बूढ़े माता-पिता ने जवान होते हुए बेटे की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जब भी पियाराम थोड़ी देर के लिए इधर-उधर जाता तो सीताराम औजारों से वहाँ बिखरी पड़ी लकड़ियों के टुकड़ों पर कुछ न कुछ काम करने लग जाता।
इस छोटे परिवार को उस समय बहुत धक्का लगा जब पियाराम अचानक स्वर्ग सिधार गया। कुछ दिनों तक उस घर से छेनी-हथौड़ी चलने की कोई आवाज नहीं सुनाई पड़ी। कई दिनों तक घर में चूल्हा नहीं जला। पड़ोसी जो कुछ दे जाते, माँ-बेटा वही खाकर रह जाते।
मरणोपरान्त अनुष्ठान के समाप्त होने पर दूसरे दिन सीताराम की माँ ने उससे पूछा, ‘‘रोजी-रोटी के लिए क्या करने जा रहे हो?'' ‘‘मैं पिता जी की तरह काष्ठकार बनूँगा।'' सीताराम ने कहा।
उसकी माँ ने अपना भय और सन्देह छिपाते हुए कहा, ‘‘लेकिन बेटा, तुमने तो काष्ठ का शिल्प कभी सीखा नहीं!'' सीताराम ने कहा, ‘‘लेकिन मॉं, मैंने पिता जी को काष्ठ की अनेक वस्तुओं को बनाते हुए देखा है। और मुझे लगता है कि मैं उन्हें बना सकता हूँ। मैं कोशिश करके देखता हूँ।''

दूसरे दिन से सीताराम के घर से फिर छेनी-हथौड़ी की आवाज आने लगी। रास्ते से गुजरनेवालों ने जब आवाज सुनी तो वे आकर अपनी जरूरत की चीजें बनवाने लगे और उसकी कारीगरी और सामान से खुश होकर जाने लगे। माँ-बेटे का गुजारा आराम से होने लगा।
सीताराम के पास कभी-कभी काम नहीं भी होता था और किसी की माँग या फरमाइश नहीं मिलने पर वह खाली बैठा रहता था। ऐसे समय में उसने एक पलंग बनाने की योजना बनाई। उसके मन में कुछ नये विचार आये। वह सादा पलंग नहीं बल्कि एक विशेष प्रकार का पलंग बनाना चाहता था जिसमें परदे के लिए चार डण्डों के स्थान पर चार पहरेदारों या सैनिकों की मूर्तियाँ बनी हों, ताकि राजा जैसा कोई खास व्यक्ति इस पर सोकर गर्व महसूस कर सके। वह अपने मित्रों और साथियों को कहा करता था कि ‘‘जो इस पलंग पर सोयेगा, वह भाग्यशाली होगा।''
यह समाचार कानोकान राजा पारसनाथ के कानों तक पहुँच गया। एक दरबारी ने राजा से कहा, ‘‘महाराज, इस पलंग के चारों कोनों पर चार पहरेदार हैं जो पलंग पर सोनेवाले की रक्षा करेंगे।'' राजा पारसनाथ हमेशा चिन्ताओं से घिरा रहता था। एक बार उसने सपना देखा कि एक राक्षस उसकी हत्या करने जा रहा है। तब से वह शान्तिपूर्वक सो नहीं सका। दूसरे दिन दरबार के ज्योतिषी ने उसे बताया कि महल में एक भयंकर सर्प घुस गया है। वह खतरनाक हो सकता है। इतना ही नहीं, उसे गुप्तचरों से यह खबर मिली कि उसके राज्य पर पड़ोसी राजा आक्रमण करने की योजना बना रहा है। पहरदारों ने एक रात को शाही खजाने के निकट कुछ चोरों को मंडराते देखा।
यह सब सुनकर राजा की नींद हराम हो गई। उसने अपने मंत्री को विश्वास में लेकर पूछा, ‘‘क्या पलंग के पहरेदार मुझे कुछ शान्ति प्रदान कर पायेंगे?'' उसने मंत्री को, काष्ठकार से गुप्त रूप से मिल कर पलंग का मूल्य पूछने के लिए भेजा।

सीताराम को अपने घर पर आये मंत्री को देख कर आश्चर्य हुआ। पलंग राजा को बेचूँगा नहीं, बल्कि भेंट में दूँगा। पलंग को उपयोग में लाने के बाद राजा चाहें तो इनाम दे सकते हैं।'' मंत्री ने निस्सन्देह सीताराम से यह नहीं कहा कि राजा उसका पलंग क्यों लेना चाहते हैं।
मंत्री ने उसी रात को राजा के महल में पलंग मँगवा लिया। पलंग की सुन्दरता और उसके चारों कोनों पर चार सुन्दर सैनिकों की कलापूर्ण गढ़ी काष्ठ मूर्तियों को देखकर राजा खुशी से फूला न समाया। मंत्री राजा के शयनकक्ष में सारी व्यवस्था करने और राजा को पलंग में सुलाने के बाद लौटा। राजा तुरन्त गहरी नींद में सो गया। एक रात को पलंग का एक पहरेदार शयनकक्ष में एक राक्षस को घुसते देख सजीव हो उठा। उसके हाथ में तलवार थी। उसने राक्षस को पकड़ लिया और घसीटते हुए बाहर ले जाकर उसे जान से मार दिया। फिर अपनी जगह लौट कर उसने दूसरे पहरेदारों को अपनी बहादुरी की कहानी सुनाई। राजा की नींद खुल गई परन्तु वह सोने का बहाना करता रहा ताके पहरेदार की पूरी कहानी सुन सके। प्रातःकाल राजा को खबर मिली कि महल के मुख्य द्वार के बाहर एक राक्षस मरा हुआ पाया गया। राजा को छोड़ कर किसी को यह रहस्य नहीं मालूम हुआ कि राक्षस को किसने मारा। राजा ने तुरन्त मंत्री को बुला कर पिछली रात की घटना बता दी और अशर्फियों का एक थैला देते हुए उसे सीताराम के घर पहुँचा आने के लिए भेजा।
कुछ दिनों के पश्चात एक रात को एक भयंकर सर्प का फुफकार सुनकर पलंग एक दूसरा पहरेदार सजीव हो गया। वह एक विकराल सर्प को राजा के पलंग की ओर बढ़ते देख कर भयभीत हो गया। सैनिक उसकी पूँछ पकड़ कर उसे महल के बाहर ले गया और उसे मार कर फेंक दिया। वह अपने स्थान पर लौटकर पलंग के अन्य सैनिकों को अपनी वीर गाथा सुनाने लगा। राजा की नींद उचट गई और उसने भी पलंग के दूसरे सैनिक की करामात सुनी।
प्रातःकाल मंत्री को महल के सैनिकों ने एक भयंकर मृत सर्प के बारे में बताया। मंत्री ने यह खबर राजा को सुनाई। राजा ने राज ज्योतिषी को बुलाकर सर्प के खतरे के विषय में पूछा।

ज्योतिषी ने गणना करने के पश्चात राजा से कहा कि सर्प से आप के प्राणों का भय टल गया है, क्योंकि वह महल को छोड़ चुका है। राजा ने तब बताया कि कैसे वह भयंकर सर्प महल के मुख्य द्वार के बाहर मृत पाया गया। राजा ने सीताराम के घर अशर्फियों का एक दूसरा थैला भेजवा दिया।
कुछ दिनों के बाद पलंग का तीसरा सैनिक सजीव हो उठा। उसने राजकोष के निकट कुछ चोरों की आवाज सुनी थी। वह तुरन्त वहाँ पहुँचा। दो चोर राजकोष का ताला तोड़ने का प्रयास कर रहे थे। पलंग के सैनिक ने उन दोनों को पकड़ कर मजबूत रस्सी से बाँध दिया। फिर अपने स्थान पर लौट कर पलंग के अन्य सिपाहियों से उसने अपनी बहादुरी की कहानी सुनाई कि कैसे उसने शाही खजाने को लुट जाने से बचा लिया। राजा ने जैसे ही यह सुना, वह तुरन्त बाहर आकर अपने अंगरक्षकों को राजकोष का निरीक्षण करने के लिए भेजा। अंगरक्षकों ने वापस आकर बताया कि कोष का ताला सही सलामत है और दो चोरों को रस्सी से बाँध दिया गया है। राजा ने चोरों को तुरन्त कारागार में डाल देने का आदेश दिया। प्रातःकाल राजा ने मंत्री को बुलाकर कहा कि कैसे पलंग के तीसरे पहरेदार ने पिछली रात को चोरों से राजकोष को लुटने से बचा लिया। राजा ने अशर्फियों का एक और थैला सीताराम के घर भेज दिया। राज्य भर में यह अफवाह फैल गई थी कि पड़ोसी राज्य से आक्रमण का खतरा है। राजा पारस नाथ ने दरबारियों को सावधान कर दिया कि ‘‘पड़ोसी राज्य का कोई भी घुसपैठिया या भेदिया हमारे राज्य में बहुरुपिया बनकर आ सकता है। उसे तुरन्त हमारे पास लाया जाये।'' अब तक राजा को पलंग के पहरेदारों पर यह पूरा विश्वास हो गया कि उनके रहते उसके राज्य में कोई खतरा नहीं होगा। इसलिए वह निश्चिन्त होकर सो गया।

एक रात को क्या हुआ, राजा को पता नहीं चला। उस रात को पलंग का चौथा पहरेदार सजीव हो उठा और सीधा मंत्री के शयनकक्ष की ओर चला गया। वहाँ उसने एक व्यक्ति को कक्ष के बाहर आंगन में सन्दिग्धावस्था में घूमते हुए देखा। वह पड़ोसी राज्य का जासूस था जिसे मंत्री की हत्या करने के लिए भेजा गया था जिससे राज्य में खलबली मचा कर इस पर पड़ोसी राजा आक्रमण कर सके।
पलंग के पहरेदार ने उसे पकड़ लिया। दोनों की हाथापाई के शोर से मंत्री जाग पड़ा। उसने अपने अंगरक्षकों को बुला कर दोनों की जाँच-पड़ताल की। मंत्री को बाहरी आदमी को पकड़ने वाले सैनिक ने बताया कि ‘‘पड़ोसी राज्य का यह भेदिया आप की हत्या करने के लिए आप के कक्ष के बाहर घात लगाये था। मैं राजा के पलंग का चौथा पहरेदार हूँ। आज मैं राजा के महल के पहरे पर था। आप के कमरे के बाहर घूमते इसे देखकर मैंने इसे पकड़ लिया। मैं अब अपने स्थान पर लौट जाता हूँ।'' मंत्री ने पड़ोसी देश के घुसपैठिये को अपने अंगरक्षकों को सुपुर्द कर दिया और स्वयं तुरन्त राजा से मिलने चला गया।
मंत्री की बातों को सुनने के बाद राजा ने कहा, ‘‘पलंग के पहरेदारों ने मेरी और तुम्हारी भी जान बचाई। उन्होंने राजकोष की रक्षा की और हमारे राज्य पर होनेवाले आक्रमण से हमें बचा लिया। यदि ये चारों पहरेदार हमारी मदद करें तो हम अपने पड़ोसी राजाओं के साथ युद्ध भी कर सकते हैं। लेकिन इसके पहले मैं काष्ठकार से मिलना चाहता हूँ।
मंत्री सीताराम को बुला कर ले आया। राजा ने अपने दरबारियों से युवक काष्ठकार तथा उसके पलंग के बारे में बताया। उसने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा, ‘‘मैं इसे राज-काष्ठकार नियुक्त करता हूँ। आज से यह सीताराम आचारी के नाम से प्रसिद्ध होगा। यद्यपि यह काष्ठकार है, फिर भी वह दरबार में उपस्थित रहेगा।'' राजा की घोषणा का स्वागत किया गया।
जब सीताराम महल के अंगरक्षकों के साथ घर पहुँचा तो उसकी माँ के आनन्द की सीमा न रही। उसने उसे विनोद के साथ कहा, ‘‘अब तो तुम आचारी हो!''




No comments:

Post a Comment