Tuesday, July 5, 2011

सहिष्णुता

धुन का पक्का विक्रमार्क पुनः पेड़ के पास गया; पेड़ पर से शव को उतारा और उसे अपने कंधे पर डाल लिया। यथावत् जब वह श्मशान की ओर बढ़ने लगा, तब शव के अंदर के वेताल ने कहा, ‘‘वाह राजन्, वाह! तुम्हारी सहिष्णुता असाधारण व अतुलनीय है। तुम्हारी कितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। तुम्हारी सहिष्णुता अवश्य ही प्रशंसनीय है, पर मुझे इस बात का भय है कि जब इसका फल तुम्हारे हाथ लगनेवाला हो तो तुम कहीं चंचलतावश इसे स्वीकार करने से इनकार कर दो। इससे किया-कराया सब व्यर्थ हो जायेगा। इसीलिए तुम्हें सावधान करने के लिए चपलचित्त भील जाति के युवक-युवती की कहानी सुनाऊँगा। थकावट दूर करते हुए इस कहानी को ध्यानपूर्वक सुनना।'' फिर वेताल यों कहने लगा:

दंडकारण्य की पूर्वी दिशा में मार्तांड नामक भील जाति का एक गाँव था। साहसप्रिय भील जाति के कुछ युवक-युवतियाँ एक सरोवर के तट पर जमा हो गये। वे आपस में इधर-उधर की बातें करते हुए समय बिताने लगे। उस सरोवर में मछलियाँ जल में से ऊपर उड़ने और फिर डूबने लगीं। वे सबके सब मछलियों के इस खेल का मज़ा लेने लगे।
उन युवकों में से एक युवक ने चुनौती देते हुए पूछा, ‘‘हवा में उड़नेवाली इन मछलियों को क्या कोई अपने बाण से बेध सकता है?''
‘‘ये मछलियाँ क्षण भर के लिए ऊपर आती हैं और तुरंत डूब जाती हैं। इस क्षण भर में निशाना बांधना कठिनतम काम है। उनपर बाण चलाना असंभव है'', एक और युवक ने कहा।
एक और युवक ने उसकी राय से अपनी सहमति जतायी।
प्रथम युवक ने कहा, ‘‘ध्यान लगाकर कोशिश की जाए तो यह कोई असाध्य कार्य नहीं है।''
इसके बाद तीनों युवकों ने मछलियों पर बाण बेधने की भरसक कोशिश की। पर, कोई भी सफल नहीं हो पाया। उस समूह में नीलिमा नामक एक युवती थी। उस गाँव के सब युवक उसकी सुंदरता पर मुग्ध थे। वह प्रताप नामक युवक को बहुत चाहती थी। वह बाघ की तरह तेज़ था। सुडौल व सुंदर था। नीलिमा उसकी धनुर्विद्या की परीक्षा लेना चाहती थी। इसलिए उसने उससे कहा, ‘‘उड़ती मछली को अपने बाण का निशाना बनाओगे तो मैं तुमसे विवाह करूँगी।''
प्रताप में उत्साह भर आया और एकाग्रचित्त हो उसने मछली पर बाण चलाया। पर वह मछली बच गयी। प्रताप बड़ा ही निराश हुआ।
उनसे थोड़ी ही दूरी पर वीरबाहु नामक युवक अपने मित्रों सहित बैठा हुआ था और वह यह सब देख रहा था। उसमें जोश भर आया। वह नीलिमा को बहुत चाहता था। उसने सोचा कि नीलिमा से विवाह करने के लिए यह एक सुअवसर है। उसने निशाना साधा, अपनी पूरी शक्ति लगायी और बड़े ही वेग से बाण चलाया। वह बाण मछली को जा लगा। सबने तालियाँ बजायीं और उसकी वाहवाही की। वीरबाहु ने गर्व भरे स्वर में कहा, ‘‘ऐ सुंदरी, तुम्हारी परीक्षा में मैं उत्तीर्ण हो गया। अपने वचन के अनुसार तुम्हें मुझसे विवाह करना होगा। बोलो, कब विवाह करोगी?''

उसकी इन बातों पर नीलिमा चौंक उठी और बोली, ‘‘तुमसे विवाह? कभी नहीं। सपने में भी यह संभव नहीं। मैंने तो कहा था कि मेरी चुनौती को स्वीकार करके यदि प्रताप जीत जायेगा तो उससे विवाह करूँगी। मैंने तो यह नहीं कहा था कि इस प्रतियोगिता में जो जीत जायेगा, उससे विवाह करूँगी। वास्तव में यह प्रतियोगिता नहीं थी। यह व्यक्तिगत चुनौती सिर्फ प्रताप के लिए थी, किसी और के लिए नहीं।''
‘‘क्या तुमने ऐसा कहा था? तुमने तो प्रताप का नाम ही नहीं लिया। तुमने तो कहा था कि इसमें जो सफल होगा, उससे विवाह करूँगी? अब मैं जीत गया हूँ। मुझसे विवाह करने से क्यों इनकार कर रही हो? न्याय सबके लिए समान होना चाहिये। तुम मुझसे विवाह करने से इनकार करके मेरे साथ अन्याय कर रही हो।'' वीरबाहु जो मुँह में आया, बकने लगा।
‘‘हाँ, गाँव में न्याय सबके लिए समान होना चाहिये। नीलिमा को वीरबाहु से शादी करनी ही चाहिये।'' गंबीर नामक एक युवक ने वीरबाहु का समर्थन किया।
‘‘विवाह के विषय में न्याय सबके साथ एक समान नहीं होता। क्या कोई होशियार लड़की किसी दुष्ट से विवाह करेगी? यह मेरे विवाह की बात है। जिसे मैं चाहती हूँ, उसी से विवाह करूँगी। बकवास बंद करो और चुप हो जा।'' क्रोध-भरे स्वर में नीलिमा ने कहा।
‘‘बातें मत बनाओ। तुम मुझसे विवाह करोगी, इसी आशा से मैंने तुम्हारी चुनौती स्वीकार की। अब नहीं तो किसी न किसी दिन तुमसे विवाह करके ही रहूँगा।'' वीरबाहु ने प्रतिज्ञा की।
ऐसे झगड़े भील जाति में कभी-कभी होते ही रहते हैं परंतु, उनमें एकता काफी दृढ़ होती है। अगर किसी की जान खतरे में हो तो वे इसपर विचार ही नहीं करते कि वह अच्छा आदमी है या बुरा, बलवान है या कमज़ोर। किसी की जान ख़तरे में हो तो अपने प्राण की बाजी लगाकर भी वे उसकी रक्षा करते हैं। यह उस जाति में चला आता हुआ एक परंपरागत रिवाज़ है। एक बार वीरबाहु शहद निकालते हुए मधुमक्खियों के झुण्ड के बीच घिर गया ।

उससे नीचे उतरा नहीं जा रहा था। ज़मीन पर गिरकर मरने की संभावना थी, पर उस रास्ते से गुज़रते हुए प्रताप ने वीरबाहु की यह असहायता देखी और उसे बचाया। प्रताप ने पुरानी उस घटना को याद करते हुए वीरबाहु से कहा, ‘‘नीलिमा तुमसे शादी करने के लिए तैयार है तो इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं। परंतु याद रखना, उसके साथ अच्छाई से बरतना और शादी के लिए उसकी स्वीकृति ले लेना।''
‘‘मुझे सब कुछ मालूम है। मुझे तुम्हारी सलाह की कोई ज़रूरत नहीं।'' कहता हुआ वीरबाहु तेज़ी से वहाँ से चला गया।
कुछ दिन बीत गये। एक दिन भील युवक-युवतियाँ शिकार करके भोजन कर चुकने के बाद आराम से बैठकर बातें कर रहे थे। तब अचानक चार बाघ उनपर टूट पड़े। घबराकर वे सब तितर-बितर हो गये। वीरबाहु ने बड़ी ही चतुराई से बाघ के आक्रमण से नीलिमा को बचाया। वे दोनों एक तंग घाटी में गिर गये। नीलिमा की दायीं कोहनी से लहू बहने लगा। ऊँचाई से नीचे गिरने के कारण वह बेहोश हो गयी। उसके मुख पर पानी छिड़कने के लिए वीरबाहु पास ही के सरोवर की तरफ़ दौड़ा।
ऊपर से उसके दोस्त गंबीर ने यह दृश्य देखा और उससे कहा, ‘‘दोस्त, बड़े ही भाग्यवान हो। तुरंत अपने दायें हाथ को जख्मी कर लो और उस लहू से मिला दो, जो नीलिमा की कुहनी से बह रहा है। इससे, समझ लो, तुम दोनों का विवाह हो ही गया। जल्दी करो। मैं तुरंत गाँव में चला जाऊँगा और सबसे कह दूँगा कि तुम दोनों की शादी हो गयी।'' कहकर वह वहाँ से चला गया।
गंबीर का प्रचार सुनकर प्रताप और उसके दोस्त चकित रह गये। उन्होंने भील जाति के प्रधान से शिकायत की कि वीरबाहु ने जबरदस्ती नीलिमा से शादी कर ली। प्रधान ने पंचों के बैठने के स्थल पर सभा बुलायी और नीलिमा से पूछा, ‘‘बेटी नीलिमा, हमारे रिवाज़ के अनुसार अगर पहले वधू चाकू से वर के बायें हाथ को घायल करे और वर वधू के बायें हाथ को रक्तसिक्त करे तो दोनों को एक-दूसरे को आलिंगन में लेना चाहिये। तुम दोनों के हाथों में रक्त तो दीख रहा है। क्या तुमने विवाह के लिए अपनी स्वीकृति दी? वीरबाहु ने जबरदस्ती अगर तुमसे शादी की हो तो बता देना । अभी उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा। शुद्धि कार्यक्रम के बाद जिसे तुम चाहती हो, उसी से शादी कराऊँगा।''

नीलिमा ने सोचकर कहा, ‘‘वीरबाहु से मेरा जो विवाह हुआ, उसे हृदयपूर्वक स्वीकार करती हूँ। मेरे विवाह की वजह से गाँव की एकता भंग नहीं होनी चाहिए।''
वीरबाहु यह सुनकर आगे आया और बोला, ‘‘नहीं प्रधानजी, मेरा विवाह ही नहीं हुआ। अपने दोस्त की सलाह के अनुसार मैंने अपने हाथ को अवश्य घायल किया और इसे अच्छा मौक़ा समझकर उसके साथ विवाह करना चाहा, क्योंकि मैं नीलिमा को बेहद चाहता हूँ। पर, जब मैं पानी लेकर नीलिमा के पास पहुँचा, तब निर्मल चंदामामा जैसे उसके मुख को देखते हुए वह काम मैं नहीं कर सका। मैं यह भी जानता हूँ वह प्रताप को चाहती है, मुझे नहीं। मैंने उसकी चुनौती को पूरा करके भी दिखाया फिर भी वह प्रताप को ही चाहती रही। आज उसकी बाघ से रक्षा करके अपनी जाति की परम्परा के अनुसार सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया है। इसके लिए मैं कोई मूल्य नहीं माँगना चाहता। बल्कि जो मुझसे अपराध हुआ है उसके लिए मैं अपने मित्र सहित इस गाँव को छोड़कर जा रहा हूँ।'' यों कहकर वह वहाँ से चला गया। गाँव के प्रमुखों ने बड़े ही प्रेम के साथ उसे देखा।
वेताल ने यह कहानी बतायी और कहा, ‘‘राजन्, वीरबाहु और नीलिमा ने क्यों ऐसा असंबद्ध व्यवहार किया? अगर प्रधान को नीलिमा कह देती कि उसकी इच्छा के विरुद्ध यह विवाह हुआ है तो उसका विवाह प्रताप से हो जाता, जिसे ह चाहती है। उसने यह अवसर खो डाला और झूठ कह दिया कि वीरबाहु के साथ हमारा विवाह हृदयपूर्वक हुआ है, जिससे वह पहले से ही घृणा करती है। यह झूठ कहने की क्या आवश्यकता थी? वीरबाहु ने पहले प्रतिज्ञा भी की थी कि किसी न किसी दिन तुमसे विवाह करके ही रहूँगा, आख़िर नीलिमा ने मान भी लिया, पर यह कहकर गाँव से खुद चला गया कि हमारी शादी ही नहीं हुई। उनकी ये बातें मेरी समझ के बाहर हैं। मेरे इन संदेहों के उत्तर जानते हुए भी मौन रह जाओगे तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे।''

विक्रमार्क ने कहा, ‘‘सब समझते हैं कि उसकी शादी वीरबाहु से हो गयी, पर नीलिमा खुद नहीं जानती कि उसकी बेहोशी की हालत में क्या हुआ। उसका यह कहना कि वीरबाहु से मेरा हृदयपूर्वक विवाह हुआ है, उसकी जाति के महान गुण के प्रति कृतज्ञता का प्रमाण है जिसके अनुसार वे ऐसे आदमी की बिना किसी भेद भाव के सदा रक्षा करते हैं, जिसकी जान ख़तरे में हो। अगर वह कहती कि यह विवाह मेरी इच्छा के विरुद्ध हुआ है या असली बात कह देती तो वीरबाहु को मार डाल दिया जाता। वह नहीं चाहती कि उस वीरबाहु को यह दंड मिले, जिसने उसे बाघ के आक्रमण से बचाया था। इसी वजह से उसने झूठ कहा कि हमारा विवाह हो गया।
‘‘वीरबाहु ने तो सच-सच बताया। हाँ, वह नीलिमा को जान से ज़्यादा चाहता है, पर जाति के रिवाज़ के विरुद्ध जबरदस्ती उससे विवाह रचाना नहीं चाहताथा । वह बिलकुल इसके विरुद्ध था । इतना सब कुछ हो जाने के बाद अगर वह गाँव में ही रहने का निश्चय कर लेता तो हो सकता है, इससे गाँव की एकता छिन्न-भिन्न हो जाती। इसी वजह से वह वहाँ से चला गया। दोनों ने इस विषय में सहनशीलता के साथ काम लिया और गाँव की एकता को बनाये रखा। इसमें असंबद्धता है ही नहीं। उनके इस त्याग की प्रशंसा गाँव के प्रमुखों ने भी मन ही मन की।''
राजा के मौन-भंग में सफल वेताल शव सहित ग़ायब हो गया और फिर से पेड़ पर जा बैठा।
(आधार-रघुवंश सहाय की रचना)





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