धुन का पक्का विक्रमार्क पुनः पेड़ के पास लौट आया, पेड़ पर से शव को उतारा; उसे अपने कंधे पर डाल लिया और यथावत् श्मशान की ओर बढ़ता हुआ जाने लगा। तब शव के अंदर के वेताल ने कहा, ‘‘राजन्, मैं यह नहीं जानता कि किस प्रकार के लोक कल्याण की आकांक्षा लेकर इतना घोर परिश्रम किये जा रहे हो। आधी रात को इतने कष्ट सह रहे हो। परंतु, ऐसे कई लोगों को मैंने देखा है, जो प्रजाक्षेम, लोक कल्याण आदि सिद्धांतों को रटते रहते हैं, पर जैसे ही उन्हें व्यावहारिक रूप देने का अवसर उनके हाथ आता है, वे स्वार्थी बन जाते हैं। पिता के स्वास्थ्य के लिए एक युवक ने अद्भुत शक्ति पाने की ठानी और सफल भी हुआ। किन्तु उसने स्वप्रयोजन के लिए एक कपटी साधु को यह अद्भुत शक्ति समर्पित कर दी। उस युवक का नाम है माधव। उसी की कहानी मैं तुम्हें सुनाने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि उस युवक की कहानी सुनकर तुम सुधर जाओगे।'' फिर वेताल माधव की कहानी यों सुनाने लगाः
रंगापुर का निवासी केशव बहुत बड़ा भूस्वामी था। अपने बेटे राघव को उसने बड़े लाड़-प्यार से पाला-पोसा। बालिग़ होने तक वह कितनी ही बुरी आदतों का शिकार हो गया। केशव को लगा कि उसका विवाह कर दिया जाए तो वह ठीक हो जायेगा । उसने जानकी नामक कन्या से उसका विवाह कर दिया।

पति को उसकी परवाह नहीं थी, पर जानकी पति को प्रत्यक्ष दैव मानकर उसकी सेवाएँ करने लगी। इतनी सुशील पत्नी को पाने के बाद भी माधव की बुरी आदतों में परिवर्तन नहीं आया।
केशव दंपति अब आशा करने लगे कि संतान जन्मे तो शायद उसकी आदतें बदलें। विवाह के दस सालों के बाद भी जानकी गर्भवती नहीं हुई। ऐसे समय पर दर्शन नामक एक साधु उस गाँव में आये। केशव ने उन्हें अपना दुखड़ा सुनाया। साधु ने हँसते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा बुरी आदतों का शिकार है। इन आदतों के कारण उसे बहुत पहले ही रोगग्रस्त होना था। किन्तु ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि तुम्हारी बहू जानकी पतिव्रता है। वह निरंतर उसकी सेवा में लगी रहती है। उनकी संतान हो जाए तो वह संतान की देखभाल में तल्लीन हो जायेगी और पति के प्रति उसकी भक्ति छूट जायेगी। इसी कारण भगवान ने उन्हें संतान प्रदान नहीं की। भगवान संतान प्रदान करके उस पतिव्रता को दुखी देखना नहीं चाहते।''
‘‘तो क्या मेरा वंश राघव के साथ ही समाप्त हो जायेगा?'' केशव ने दुख-भरे स्वर में पूछा। ‘‘जानकी अगर पुत्र को जन्म दे तो राघव भले ही रोगग्रस्त क्यों न हो जाए, पर तुम्हारा पोता बड़ा होकर तुम्हारे वंश की प्रतिष्ठा को बढ़ायेगा। तुम ‘हाँ' कह दोगे तो मैं एक उपाय सुझा सकता हूँ,'' दर्शन ने कहा।
केशव थोड़ी देर तक सोच में पड़ गया। फिर बोला, ‘‘मेरे बेटे की वजह से हमारा वंश बदनाम हो रहा है। इससे अच्छा यही है कि हमारा एक पोता हो और हमारे वंश का नाम रोशन करे।''
तब साधु ने उसे एक अमरूद दिया और कहा, ‘‘यह दैव प्रसाद है। अपनी बहू को इसे खाने के लिए कहना। तुम्हारी इच्छा पूरी होगी।''

यों माधव का जन्म हुआ। राघव अपने बेटे को बहुत चाहता था। अपने पिता को देखते ही माधव के मुख पर हँसी छा जाती थी। यह देखकर जानकी भी प्रसन्न होती थी।
एक बार माधव जब पाँच साल का था, तब उसी उम्र में वह पिता की बुरी आदत का अनुसरण करने लगा। केशव ने यह देखा और पोते से कहा, ‘‘तुम्हारा पिता अच्छा आदमी है, पर उसकी आदतें अच्छी नहीं हैं। जिनकी आदतें बुरी होती हैं, उन्हें भगवान रोग देकर सजा देते हैं। अपने पिता को प्यार करो, पर उनकी आदतों से दूर रहना।'' यों कहकर उसे सलाह दी और सावधान भी किया। ‘‘मेरी बात छोड़िये। पिताजी की आदतें बुरी हैं पर भगवान उन्हें दंड न दें, इसके लिए क्या करना होगा?'' माधव ने पूछा।
‘‘अपने पिता की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करते रहो। भगवान सदा अच्छे बालकों की इच्छाएँ पूरी करते हैं।'' केशव ने समझाया।
चूँकि माधव पिता को बहुत चाहता था, इसलिए वह दादा के कहे अनुसार प्रार्थनाएँ करता रहा। माधव जब दस साल का हो गया तब राघव का स्वास्थ्य बिगड़ गया। जब वह पंद्रह साल का हो गया, तब उसकी तबीयत बिलकुल बिगड़ गयी। वह हमेशा खाट पर ही पड़ा रहता था। माधव दुखी हो उठा।
उसी समय दर्शन की भी अन्तिम घड़ी आ गई। मृत्यु के पहले वह चाहता था कि अपनी ज्ञान संपदा किसी योग्य व्यक्ति को समर्पित कर दे। उसकी दिव्य दृष्टि में माधव दिखायी पड़ा। वह फौरन रंगापुर चला आया और माधव से बोला, ‘‘कितने ही वर्षों से तकलीफ़ें उठाकर जो ज्ञान संपदा कमायी, वह तुम्हारे पास आ जायेगी। इस ज्ञान से तुम्हारी प्रसिद्धि भी होगी।''
‘‘मुझे ज्ञान संपदा नहीं चाहिये। अगर आपमें शक्ति हो तो मेरे पिता के स्वास्थ्य को सुधारिये,'' माधव ने कहा। इसपर दर्शन ने हँसते हुए कहा, ‘‘मेरा ज्ञान केवल तुम्हारे पिता मात्र के लिए ही नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए है।''
‘‘जब तक मेरे पिता के स्वास्थ्य में सुधार नहीं होगा तब तक मेरा मन अशांत रहेगा। मन अगर अशांत हो तो भला विद्याएँ कैसे सीख पाऊँगा,'' माधव ने कहा।
‘‘ठीक है। बदरिकारण्य में वैद्य निधि महाभिष नामक एक महान मुनि हैं। तुम वहाँ जाकर उनकी सेवा करके अपने पिता की बीमारी को दूर करनेवाला संजीवनी मंत्र पा सकते हो,'' दर्शन ने उपाय सुझाया।

माधव तुरंत बदरिकारण्य गया। महाभिष से मिला और अपना परिचय दिया। मुनि ने उसकी बातें बहुत ही ध्यान से सुना और उसके बाद उससे कहा, ‘‘तुम्हारी पितृ भक्ति की प्रशंसा करता हूँ। किन्तु संजीवनी मंत्र के लिए जो कठोर दीक्षा और साहस चाहिये, उसका पालन करना क्या तुम्हारे लिए संभव है?'' दर्शन ने संदेह व्यक्त किया।
‘‘निःसंकोच आप मेरी परीक्षा लीजिये मुनिवर,'' राघव ने विश्वास-भरे स्वर में कहा। मुनि के कहे अनुसार माधव प्रातःकाल ही सर्दी में ठंडे पानी से नहाता था। कुल्हाडी लेकर जंगल में से दिन भर के लिए आवश्यक लकड़ी तोड़ कर लाता था। छे घंटों तक विद्याभ्यास करता था। अपक्वाहार ही खाता था। सोने के पहले पिता के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करता था। एक महीने के बाद महाभिष ने उसे बुलाया और कहा, ‘‘मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। आगे तुम्हें अपने धैर्य और साहस का परिचय देना होगा। यहाँ से पूरब की दिशा में एक पहाड़ी गुफ़ा है, उसमें एक अजगर है। गुफ़ा की दीवार के आले में एक जड़ी बूटी है। उसे तुम्हें ले आना होगा।''
महाभिष के कहे अनुसार माधव गुफ़ा के अंदर गया। अजगर उसपर टूट पड़ने के लिए तैयार बैठा था, फिर भी निर्भय होकर उसने गुफ़ा के आले में से जड़ी बूटी निकाली और ले आया। मुनि ने उसके साहस की प्रशंसा की और उस जड़ी बूटी को कमंडल में डाल दिया।
एक महीने के बाद मुनि ने कहा, ‘‘जंगल के बीच पिशाचिनियों से भरा बरगद का एक वृक्ष है। उस के कोटर में जड़ी बूटी है। आधी रात को वहाँ जाकर उसे ले आना होगा। डरोगे तो पिशाचिनियाँ तुम्हें खा जाएँगी।''
माधव उसी रात को उस वृक्ष के पास गया। उसने पिशाचिनियों की परवाह नहीं की और पेड़ के कोटर से जड़ी बूटी निकालकर मुनि के सुपुर्द कर दी। उन्होंने उसे भी कमंडल में डाल दिया। अगले महीने माधव, महाभिष के आदेश पर हजारों मगर वाले सरोवर में कूद पड़ा, और उसके बीच स्थित कमल पर से जड़ी बूटी को निकाल उसे भी मुनि के सुपुर्द किया। मुनि ने उस जड़ी बूटी को कमंडल में डाल दिया।
दूसरे दिन मुनि ने उसे संजीवनी मंत्र का उपदेश दिया और उस कमंडल को देते हुए कहा, ‘‘इस मंत्र को पढ़ते हुए इस कमंडल के पानी को जिसे पिलाओगे, उसके सारे रोग दूर हो जायेंगे। जीवन पर्यंत वह स्वस्थ रहेगा।''

माधव को आशीर्वाद देकर मुनि ने कहा, ‘‘पुत्र, इस संजीवनी मंत्र का उपयोग एक ही बार कर सकते हो। तुम्हारे पिता ने जान बूझकर अपराध किये। इसी से वह अस्वस्थ हो गया। इस मंत्र का उपयोग उन्हें स्वस्थ बनाने के बदले अपने लिए करोगे तो इससे लोक कल्याण होगा। मेरी यह सलाह मात्र है। फिर तुम्हारी इच्छा।''
‘‘स्वामी, अपने लिए इसका उपयोग करना स्वार्थ है। मेरे पिता को इसकी आवश्यकता है। उनकी आवश्यकता की पूर्ति मेरा धर्म है।'' माधव ने विनयपूर्वक कहा।
महाभिष ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘मनोभीष्ट सिद्धिरस्तु'' कहते हुए उसे बिदा किया।
मार्गमध्य में माधव, दर्शन से मिला। जो हुआ, वह सब सुनकर दर्शन ने उससे कहा, ‘‘तुम असाधारण युवक हो। इसी वजह से संजीवनी मंत्र तुम्हारे वश हुए। किन्तु, कल सूर्योदय तक मेरा अंत हो जायेगा। इसलिए, इसके पहले ही जितना हो सके मुझसे ज्ञान प्राप्त कर लेना।''
माधव ने ‘हाँ' कहा। दोनों पास ही के सरोवर के तट पर बैठ गये। दर्शन ज्ञानोपदेश करने लगा। माधव ध्यान से सुनने लगा। आधी रात हो गयी। माधव ने अकस्मात् पूछा, ‘‘गुरुवर, आपसे मुझे पूरा ज्ञान प्राप्त करना है। आपकी आयु बढ़ाने के लिए कोई मार्ग हो तो सुझाइये।''
दर्शन ने लंबी सांस लेकर कहा, ‘‘अपने संजीवनी मंत्र से मेरी आयु को और दस सालों तक बढ़ा सकते हो। पर तुम तो इस का उपयोग अपने पिता के लिए करना चाहते हो।''
माधव ने बिना सोचे-विचारे उस मंत्र का उपयोग दर्शन के लिए किया। वे बहुत प्रसन्न हुए और एक हफ्ते तक उसे ज्ञानोपदेश करके वहाँ से चले गये। माधव जब घर पहुँचा तब राघव ने बड़े प्यार से उसे गले लगाया। अब वह बिलकुल ही स्वस्थ था। माधव ने मन ही मन मुनि के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।

कहानी कह चुकने के बाद वेताल ने कहा, ‘‘राजन्, महाभिष ने जब माधव को सलाह दी कि इस मंत्र का उपयोग अपने लिए ही करोगे तो लोक कल्याण होगा, तब उसने ऐसा करने से इनकार किया। परंतु बाद उसने उसका प्रयोग अपने ज्ञानार्जन के लिए दर्शन पर किया। क्या यह स्वार्थ नहीं है? जो दर्शन लोक कल्याण के लिए ही जीने का दावा करते थे, अपनी आयु को और बढ़ाने के लिए उसने बड़ी ही चालाकी से काम लिया। संजीवनी मंत्र के उपयोग के बिना ही राघव कैसे स्वस्थ हो गया? मेरे संदेहों के उत्तर जानते हुए भी चुप रह जाओगे तो, तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे।''
विक्रमार्क ने कहा, ‘‘यह सच है कि माधव ने वचन दिया कि संजीवनी मंत्र का उपयोग वह स्वप्रयोजन के लिए नहीं करेगा। परंतु दर्शन के ज्ञानोपदेश के उपरांत वह समझ गया कि संजीवनी मंत्रका उद्देश्य लोक कल्याण है, न कि स्वार्थ। उसने यह भी जान लिया कि पिता के अच्छा होने के बदले दर्शन जैसे साधु और दस सालों तक जीवित रहें तो इससे लोक कल्याण होगा। इसीलिए उसने इस मंत्र का प्रयोग दर्शन के लिए किया। यह सर्वथा स्वार्थ नहीं। दर्शन पर यह आरोप लगाना ग़लत है कि उन्होंने चालाकी से माधव को मंत्रमुग्ध करके अपने वश में कर लिया। और यों अपनी जीवन अवधि बढ़ा ली। उनकी मृत्यु के बाद भी यह ज्ञान लोक के उपयोग में आयेगा, जिससे लोक कल्याण होगा। राघव का स्वास्थ्य एकदम सुधर गया, इसका मुख्य कारण है, उसकी पत्नी के पतिव्रत्य की महिमा। साथ ही तपोसंपन्न महाभिष ने माधव को आशीर्वाद दिया, ‘‘मनोभीष्ट सिद्धिरस्तु ।'' राघव के स्वस्थ होने का यह भी एक कारण है।''
राजा के मौन-भंग में सफल वेताल शव सहित ग़ायब हो गया और फिर से पेड़ पर जा बैठा।
(आधार ‘‘वसुंधरा'' की रचना)

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