Friday, July 1, 2011

बादलों तक बढ़ गई नाक

जापान के मुख्य क्षेत्र के चारों ओर फैले द्वीपों में से एक द्वीप में एक झील है। दरअसल झील में कोई विशेषता नहीं है; विशेषता है इसमें रहनेवाली मछलियों के एक झुण्ड में। वैसी मछलियाँ कहीं नहीं दिखाई देतीं। इनकी नाकें असाधारण रूप से लम्बी होती हैं।


जनश्रुति के अनुसार कथा इस प्रकार हैः एक समय उस झील के पास एक ढोलकिया रहता था जिसे गाँवों के लोग शादी-व्याहों और त्योहारों पर पैसे देकर ढोल बजाने के लिए बुलाया करते थे। वह इतना गरीब था कि एक बार जब भूकम्प से उसकी झोंपड़ी गिर पड़ी तो दूसरी झोंपड़ी बनाने के लिए उसके पास साधन नहीं था। वह चुपचाप झील के निकट पहाड़ी के नीचे एक गुफा में रहने लगा। धीरे-धीरे वह बूढ़ा हो चला। ढोल बजाने में असमर्थ होने के कारण उसकी कमाई बन्द हो गई। इसलिए उसके पास खाने के लिए कुछ न रहा। कुछ ग्रामीणों को उस पर दया आ गई। इसलिए वे कभी-कभी उसके लिए गुफा में कुछ खाना रख जाते थे।


वह एक दिन जब मरणासन्न हो रहा था, तब गाँव का एक लड़का कुछ खाना लेकर उसके पास आया। वही उसका अन्तिम भोजन साबित हुआ। उसने लड़के को कहा, ‘‘बेटे, तुम्हारी सेवा के लिए मुझे कुछ इनाम अवश्य देना चाहिये। यह मेरा ढोल है। क्योंकि मैं बड़े प्यार से इसकी देखभाल करता था, इसने हाल में मुझे एक वरदान दिया है। जब मैं किसी की नाक की ओर देखकर इसे बजाता हूँ और ‘ऊपर, ऊपर’ बोलता हूँ, तब उसकी नाक बड़ी होने लगती है। जब कहता हूँ ‘नीचे-नीचे’ तब नाक छोटी होने लगती है।

आस-पास बहुत से ऐसे मर्द और औरत हैं जो अपने चेहरे के हिसाब से अपनी नाक को छोटी या बड़ी करना चाहते हैं। इसे मेरी ओर से भेंट के रूप में रख लो और पैसे कमाने के लिए इसका इस्तेमाल करो। लेकिन याद रखो, कभी भी अपनी या किसी अन्य की उत्सुकता के लिए ढोल की शक्ति का प्रयोग न करो। अच्छ बेटे, उम्मीद है, मेरे मर जाने पर मेरे मृत शरीर की अन्तिम क्रिया का इन्तज़ाम कर दोगे।’’


उस वृद्ध व्यक्ति ने उसके बाद तुरन्त देहत्याग कर दिया। लड़के ने गाँववालों की मदद से अच्छी तरह उसका अंतिम संस्कार कर दिया। तब वह उस विचित्र ढोल का प्रयोग करने लगा। जमीन्दार की बेटी की नाक बहुत छोटी थी। लड़का उसके पास गया और ढोल बजाते हुए ‘ऊपर, ऊपर’ बोलने लगा। और लड़की की नाक उसके चेहरे के अनुसार बिलकुल ठीक कर दी। इससे रातो रात वह प्रसिद्ध हो गया। बहुत लोग अपनी नाक को घटाने या बढ़ाने के लिए उसके पास आने लगे। लोग उसे चमत्कारी ढोलकिया कहने लगे और उसके काम के बदले काफी पैसे देने लगे।


यों एक-दो साल गुजर गये और वह अब अमीर आदमी बन गया। एक दिन वह जब झील के पास अकेला था, उसके मन में यह जानने की प्रेरणा जगी कि ढोल कितना अधिक कर सकता है। वह पीठ के बल लेट गया और अपनी नाक पर नज़र रखते हुए ‘ऊपर, ऊपर’ बोलने लगा। उसकी नाक बढ़ने लगी। कितना मज़ेदार था! वह और तेज़ी से ‘ऊपर, ऊपर’ बोलता गया और उसकी नाक भी बॉंस के लट्ठे की तरह तेज़ी से बढ़ती लम्बी होती चली गई।


इस अनोखे दृश्य की ओर दो गरुड़ों की नज़र गई। वे इसके चारों ओर चक्कर लगाने लगे। लड़के को यह देखकर बड़ा मज़ा आया। लेकिन एक गरुड़ ने उसकी मुलायम नाक को अपनी चोंच से पकड़ किया और पीड़ा की एक लहर उसकी मीनार जैसी नाक के निचले हिस्से तक फैल गई।


अब वह यथासम्भव तेज़ी से ‘नीचे-नीचे’ जपने लगा। लेकिन गरुड़ ने अपनी पकड़ को नहीं छोड़ा। वास्तव में वह ऊपर की ओर उड़ने की कोशिश करने लगा।
फलस्वरूप ढोलकिया ऊपर उठ गया। जैसे-जैसे उसकी नाक छोटी होती गई, वह और ऊपर उठता गया। जब वह गरुड़ से बिलकुल छू गया, वह विशाल पक्षी चीख पड़ा। उसकी चोंच खुलते ही, ढोलकिया उसके मुँह से छूट कर झील में गिर पड़ा। आह ! वह लम्बी नाकवाली मछली में बदल गया था ! उसे यह भी याद न रहा कि बूढ़े ढोलकिये ने उसे यह चेतावनी दी थी कि अपनी उत्सुकता को शान्त करने के लिए ढोल का प्रयोग कभी न करना। (एम.डी)


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