
धुन का पक्का विक्रमार्क पुनः पेड़ के पास गया; पेड़ पर से शव को उतारा और यथावत् श्मशान की ओर बढ़ता हुआ जाने लगा। तब शव के अंदर के वेताल ने कहा, ‘‘विषैले सर्पों, भूत-प्रेतों से भरे श्मशान में तुम निर्भय बढ़े जा रहे हो। मुझे तो लगता है कि भय भी तुमसे डरता है। किसी महान कार्य को साधने के लिए डटे हुए हो। तुम्हें अपने प्राण पर रत्ती भर भी मोह नहीं रहा। स्पष्ट है कि तुममें अटल आत्मविश्वास भरा हुआ है। तुम अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए, चाहे कोई भी मूल्य चुकाना क्यों न पड़े, चुकाने के लिए तैयार हो। आज तक मैं यह समझ नहीं पाया कि आख़िर वह लक्ष्य तुम्हारा है क्या? मुझे तुम्हारे श्रम को देखते हुए शशिकांत नामक एक ग्रामीण युवक की याद आती है, जिसने अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए अनेक कष्ट सहे, कठोर परिश्रम किया। उसकी कहानी थकावट दूर करते हुए मुझसे सुनो।'' फिर वेताल यों कहने लगाः
बहुत पहले की बात है। कनकवर नामक गाँव में शशिकांत नामक एक युवक रहा करता था। वह कितनी ही विद्याओं में प्रवीण था। विशेषकर खड्ग विद्या में उसकी बराबरी का कोई था ही नहीं। उसका पिता प्रसिद्ध व्यापारी था। दुर्भाग्यवश वह और उसकी पत्नी जहाज की एक दुर्घटना में मर गये। पिता ने जो धन छोड़ा, उससे उसने अन्य व्यापारियों के साथ व्यापार किया। परंतु अनुभवहीन उस युवक को व्यापारियों ने धोखा दिया। अब उसके पास कुछ नहीं रहा।

इस दुस्थिति में जयानंद नामक पड़ोस के गाँव का एक मित्र उससे मिलने आया। दुखी शशिकांत को सांत्वना देते हुए उसने कहा, ‘‘शशिकांत, खड्ग विद्या में तुम्हारी दक्षता अद्भुत है । तुम्हारी शक्ति अपार है। अगर इसी गाँव तक अपने को सीमित रखोगे तो यह विद्या तुम्हारे काम नहीं आयेगी। हमारी राजधानी करिवीरपुर जाना । वहाँ अभी विजयदशमी के अवसर पर स्पर्धाएँ होने जा रही हैं। उनमें भाग लेना और अपनी दक्षता का प्रदर्शन करना। तुम्हें अवश्य ही राजा के आस्थान में काम मिलेगा। तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल होगा।''
मित्र जयानंद की सलाह शशिकांत को सही और उचित लगी। दूसरे ही दिन वह राजधानी पहुँचने निकल पड़ा। मार्गमध्य में जब वह एक घने जंगल से गुज़र रहा था, तब थकावट दूर करने के लिए एक पेड़ के तले बैठते समय किसी की चिल्लाहट सुनायी पड़ी। कोई ‘‘बाघ, बाघ, बचाओ, बचाओ'' कहकर चिल्ला रहा था।
शशिकांत फौरन म्यान से तलवार निकाल कर उस तरफ गया, जहाँ से आवाज़ आयी। बाघ, एक मुनि पर टूट पड़ने ही वाला था, तभी शशिकांत ने मुनि और बाघ के बीच में कूद कर तलवार से बाघ पर वार किया। उस वार से बाघ घायल होकर गिर गया, पर उस समय तलवार शशिकांत के हाथ से फिसल गयी।
इतने में बाघ गुर्राता हुआ उठा। शशिकांत ने मौक़ा देखकर बाघ के पेट में ज़ोर से लात मारी। बाघ अपने को संभाल कर फिर से शशिकांत पर आक्रमण करने के लिए उठा । शशिकांत ने बाघ के पिछले पैरों को पकड़ कर उसे दूर फेंक दिया। बाघ ज़मीन पर गिरकर छटपटाने लगा।
किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि चक्रधर की यों हार होगी। दर्शकों सहित महाराज और राजकुमारी आश्चर्य में डूब गये। वचन के अनुसार चक्रधर उसी समय वहाँ से चला गया।

मुनि यह सब कुछ ध्यान से देख रहा था। उसने शशिकांत से कहा, ‘‘वीर युवक, तुम बड़े साहसी हो। तुम्हारे जैसे निस्वार्थ वीर विरले ही होते हैं। अपनी जान पर खेलकर तुमने मेरी रक्षा की। मैं इस प्रदेश को छोड़कर हिमालय जाना चाहता हूँ।'' कहते हुए उसने पास ही की एक झाड़ी से तलवार निकाली और कहा, ‘‘यह बहुत ही महिमावान खड्ग है। परंतु, इसका यह मतलब नहीं कि कोई दुस्साहस करने पर उतारू हो जाओ। तुममें जब धैर्य-साहस भरा हुआ हो, खड्ग चलाने में नैपुण्य हो, तभी यह तुम्हारी सहायता करेगा।'' कहकर मुनि ने उसे खड्ग सौंप दिया।
शशिकांत ने मुनि के चरण छुए और अपनी यात्रा फिर शुरू कर दी। राजधानी पहुँचते-पहुँचते अंधेरा छा चुका था। उसने एक सराय में रहने के लिए व्यवस्था कर ली। उस सराय की मालकिन एक बूढ़ी औरत थी। दूसरे ही दिन विजयदशमी उत्सव शुरू हुए। राजा के निकट के एक रिश्तेदार ने खड्ग युद्ध में सबको हरा दिया। उसका नाम था चक्रधर। उसके शौर्य से राजा बहुत ही प्रसन्न हुए। वे उसे खड्गवीर की उपाधि देने ही वाले थे कि शशिकांत ने प्रवेश करते हुए कहा, ‘‘महाराज, क्षमा चाहता हूँ। मेरे आने में थोड़ी देरी हो गयी।'' कहते हुए उसने म्यान से खड्ग निकाला।
यह देखते ही चक्रधर क्रोधित होकर बोला, ‘‘कौन है यह? देखने में ग्रमीण लगता है। खड्ग युद्ध में मुझ जैसे शूर से लड़ने का साहस! अगर मैं हार जाऊँगा तो राज्य छोड़कर चला जाऊँगा,'' कहते हुए उसने म्यान से खड्ग निकाला। उपस्थित लोग आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगे। राजा के पास बैठी उनकी इकलौती पुत्री मणिकर्णिका मुस्कुराने लगी।
खड्ग युद्ध शुरू हो गया। शशिकांत ने आसानी से चक्रधर के वारों का मुक़ाबला किया। पंद्रह मिनटों के अंदर ही उसने उसे हरा दिया। फिर उसने खड्ग को अपनी आँखों से लगाया।

चक्रधर अद्वितीय खड्गवीर माना जाता था। उसकी हार ने सबको आश्चर्य में डाल दिया, साथ ही सबने बड़े ही उत्साह के साथ शशिकांत का तालियाँ बजाते हुए स्वागत किया।
राजा ने, तुरन्त खड्ग वीर की उपाधि शशिकांत को प्रदान किया और शाम को उद्यानवन में उससे मिलने के लिए उसे निमंत्रित किया।
राजा, युवरानी मणिकर्णिका, प्रधान मंत्री व आस्थान पंडित जब राजभवन पहुँचे तब राजा ने उन सबसे कहा, ‘‘देखने में बड़ा ही सुंदर और सुशील लगता है। हट्टा-कट्टा है। कहता है कि किसी गाँव से आया हूँ। पर, मुझे लगता है कि यह शिक्षित नहीं है।''
मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, यह युवक एक सराय में रहता है। हमारे गुप्तचरों ने इसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की। यह शशिकांत कभी संपन्न परिवार का था, पर परिस्थितियों ने उसे अनाथ बना दिया। अपना खड्ग कौशल प्रदर्शित करके हमारे आस्थान में नौकरी पाने के उद्देश्य से यहाँ आया है। जानकारी मिली है कि अन्य विद्याओं में भी यह प्रवीण है।''
राजकुमारी यह सब कुछ ध्यान से सुन रही थी। मुस्कुराती हुई उसने मंत्री को देखा।
प्रतियोगिताओं को शुरू करने के पहले ही राजा ने घोषणा की थी कि जो सबको हरायेगा, उसका विवाह राजकुमारी से होगा। उनका पूरा-पूरा विश्वास था कि चक्रधर ही जीतेगा। परंतु जो हुआ, उसकी कल्पना उसने की ही नहीं थी।
शाम को, जब राजा, युवरानी, मंत्री, शशिकांत और आस्थान पंडित उद्यानवन में उपस्थित थे, तब गुप्तचरों का सरदार वहाँ आया और बोला, ‘‘महाराज, चक्रधर अभी राज्य की सरहदों पर विद्रोह करने के लिए लोगों को इकठ्ठा कर रहा है। उसका कहना है कि मांत्रिक के दिये महिमावान खड्ग के कारण ही उसकी हार हुई है। यह कहते हुए वह लोगों को इकठ्ठा कर रहा है कि मैं राजा के विरुद्ध विद्रोह करूँगा, खुद राजा बनूँगा और मणिकर्णिका से विवाह करके ही रहूँगा।''
यह सुनकर राजा चकित रह गया। आश्चर्य प्रकट करते हुए उसने कहा, ‘‘मेरे ही सगे आदमी ने मेरे विरुद्ध विद्रोह करने की ठान ली!''

आस्थान पंडित ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘महाराज, आप बिल्कुल निश्र्चिंत रहिये। हमारे विरुद्ध वह जो दुष्प्रचार कर रहा है, उससे हमें कोई हानि नहीं पहुँचेगी, उल्टे हमें लाभ होगा। जब अड़ोस-पड़ोस के शत्रु राजाओं को मालूम हो जायेगा कि होनेवाली महारानी के पति के पास एक महिमावान खड्ग है, तब वे हमारी ओर आँख उठाकर देखने की भी जुर्रत नहीं करेंगे।'' फिर राजकुमारी और शशिकांत को देखते हुए कहा, ‘‘मैंने जो कहा, समझ गये न?''
दोनों ने खुश होते हुए सिर हिलाया।
वेताल ने कहानी बता चुकने के बाद विक्रमार्क से कहा, ‘‘आस्थान पंडित ने जो कहा, उसमें युक्ति व वाक् चातुर्य मात्र दिखते हैं। वास्तविकता नहीं। चक्रधर को कैसे मालूम पड़ा कि शशिकान्त का खड्ग महिमावान है। मेरे इन संदेहों के उत्तर जानते हुए भी चुप रह जाओगे तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे।''
विक्रमार्क ने कहा, ‘‘आस्थान पंडित की बातों में युक्ति और चमत्कार से बढ़कर वास्तविकता है। चक्रधर ने घोषणा की थी कि हारने पर राज्य छोड़कर चला जाऊँगा पर वह हार सह नहीं सका। इसीलिए वह प्रचार करने लगा कि शशिकांत की जीत का कारण उसकी वीरता नहीं, उसका महिमावान खड्ग है। यह एक सच्चे वीर के लक्षण नहीं हैं। उल्टे वह, स्वार्थवश राजा के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए लोगों को इकठ्ठा करने लगा। इससे स्पष्ट होता है कि उसकी बुद्धि कुटिल है। आस्थान पंडित ने ठीक ही कहा कि उसके प्रचार से राज्य को हानि नहीं पहुँचेगी, उल्टे लाभ ही होगा। मुनि ने स्पष्ट रूप से शशिकांत से बताया था कि यह महिमावान खड्ग तभी तुम्हारी सहायता करेगा, जब तुममें स्वयं धैर्य और साहस हों और खड्ग चलाने में प्रावीण्य हो। शशिकांत में ये गुण कूटकूटकर भरे हुए हैं। उसके हारने का सवाल ही नहीं उठता। राज्य पर कोई भी आपदा नहीं आयेगी।''
राजा के मौन-भंग में सफल वेताल शव सहित ग़ायब हो गया और पुनः पेड़ पर जा बैठा।
(आधार : सुचित्रा की रचना)

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