Saturday, July 9, 2011

दूध का व्यापारी

एक गाँव में शिवनाथ नामक एक युवक था। वह बड़ा ही नटखट था। इसलिए गाँववाले उसको पसंद नहीं करते थे। वह पढ़-लिख भी न पाया।
एक बार उस गाँव में एक मशहूर ज्योतिषी आया। उसने गाँव के बीच में स्थित एक बरगद के नीचे अपना डेरा डाला। शीघ्र ही यह ख़बर गाँव में फैल गई कि ज्योतिषी भविष्य बतलाने में बेजोड़ है। शिवनाथ ने भी अपना भविष्य जानने के लिए ज्योतिषी को अपना हाथ दिखाया।
ज्योतिषी ने शिवनाथ का हाथ देखा और, झट उसे हटाते हुए कहा, ‘‘मैंने अपनी ज़िंदगी में ऐसे भाग्यशाली का हाथ आज तक न देखा। तुम मिट्टी भी छुओगे तो सोना बन जाएगी।''
इन बातों पर ख़ुद शिवनाथ भी यक़ीन नहीं कर पाया। गाँववाले तो हँस पड़े। इस पर ज्योतिषी ने उन्हें समझाया, ‘‘शास्त्र कभी झूठा नहीं हो सकता। यदि क़िस्मत ने साथ दिया तो किया हुआ अपराध भी वरदान बन सकता है।''
गाँववालों ने शिवनाथ का परिहास किया था, इसलिए शिवनाथ ने निश्चय कर लिया कि किसी तरह उसे बड़ा आदमी बन जाना चाहिए। मगर बड़ा आदमी कैसे बने, वह जानता न था।
किसी व्यक्ति ने शिवनाथ को सलाह दी, ‘‘पहले तुम थोड़ा-बहुत धन कमाओगे तो बड़प्पन तुम्हारी खोज़ करते अपने आप आ जाएगा।'' लेकिन शिवनाथ धन कमाने का तरीक़ा भी नहीं जानता था। वह काम-धाम करना जानता न था, और पढ़ा-लिखा भी न था।
शिवनाथ को लगा कि गाँववालों का उसके प्रति अच्छा विचार नहीं है, इसलिए पहले उसे गाँव को छोड़ देना चाहिए। एक दिन सवेरे वह अपने गाँव को छोड़कर चल पड़ा। जंगल में प्रवेश करके चलता गया। एक जगह एक पेड़ के नीचे कोई व्यक्ति सोते हुए उसे दिखाई दिया। उसकी बग़ल में एक तलवार और एक गठरी भी थी।


शिवनाथ ने गठरी खोलकर देखी। उस में सोने के सिक्के भरे थे। उसे ज्योतिषी की बातें याद आईं। फिर क्या था, उस गठरी और तलवार को लेकर भाग खड़ा हुआ।
इस बीच सोनेवाला व्यक्ति उठ बैठा। असली बात जानकर वह शिवनाथ का पीछा करने लगा। शिवनाथ ने घूमकर देखा। उसे लगा कि वह उस व्यक्ति से बचकर भाग नहीं सकता। वह रुका। इतने में वह व्यक्ति उसके निकट आया। शिवनाथ ने तलवार उस आदमी की छाती में भोंक दी।
वह आदमी चीत्कार करके वहीं पर गिर पड़ा। वह आदमी थोड़ी देर तक छटपटाता रहा, फिर उसने दम तोड़ दिया। इसे देख शिवनाथ स रह गया। उसने चोरी के साथ हत्या भी की है। फिर भी वह अपने हाथ लगे सोने को त्यागना नहीं चाहता था। वह तेजी से चल पड़ा। घंटे भर में जंगल के पार वह एक गाँव में पहुँचा।
उस गाँव में सबसे पहले जिस व्यक्ति ने शिवनाथ को देखा, उसने पूछा, ‘‘तुम्हारे कपड़ों में यह ख़ून कैसा?''
तब तक शिवनाथ नहीं जानता था कि उसके कपड़ों पर ख़ून लगा है। उसने झट जवाब दिया, ‘‘किसी चोर ने मेरा धन लूटना चाहा, मैंने उस पर तलवार चलाई। बस, उसी का ख़ून है।''
पल भर में यह ख़बर सारे गाँव में फैल गई। गाँव के कुछ लोग शिवनाथ के बताये स्थान पर जंगल में पहुँचे। वह मृत व्यक्ति और कोई न था, बल्कि ‘‘कालयम'' नामक एक नामी डाकू था। गाँवाले बड़े प्रस हुए। उन्हें एक खतरनाक डाकू से राहत मिली। सब ने शिवनाथ की प्रशंसा की। राजा ने भी यह ढिंढोरा पिटवाया था कि उस डाकू को मारनेवाले को दस हज़ार सिक्कों का इनाम दिया जाएगा। वह बात गाँव के लोगों ने शिवनाथ को बताई और जयकारों के साथ उसको अपने गाँव में ले आये। यह जानकर कि शिवनाथ का अपना कोई गाँव नहीं है, सबने उसको अपने ही गाँव में रह जाने का अनुरोध किया। शीघ्र ही उसे राजा का इनाम भी प्राप्त हुआ।

अब शिवनाथ के पास काफ़ी धन था, मगर बड़ा आदमी बनने के लिए वह पर्याप्त न था। अधिक धन कमाने के ख़्याल से उसने कई भैंसें ख़रीद कर दूध का व्यापार शुरू किया। ज़्यादा लाभ उठाने के लिए वह दूध में पानी मिलाने लगा।
इस व्यापार में एक छोटी अड़चन पैदा हो गई। शिवनाथ जिस गाँव में रहता था, उस गाँव के लिए पानी का प्रबंध न था। ग्रामवासी दूर की नदी से पानी लाया करते थे। जो लोग ख़ुद पानी न ला सकते थे, वे मज़दूरी देकर मँगवा लेते थे। शिवनाथ भी स्वयं पानी ख़रीदता था। ज्यों ज्यों उसका दूध का व्यापार बढ़ने लगा, त्यों त्यों उसे ज़्यादा पानी की भी ज़रूरत पड़ी। उसने सोचा कि अधिक मजूरी देकर पानी खरीदने पर लाभ घट जाएगा। अलावा इसके यदि शिवनाथ पानी ज़्यादा ख़रीद ले तो दूध में पानी मिलाने की बात खुल जाएगी।
इसलिए शिवनाथ ने अपने पिछवाड़े में ही एक कुआँ खुदवाना चाहा। यह काम गुप्त रूप से उसने पड़ोसी गाँव से मजदूरों को बुलवाकर रात में करवाया। उसकी क़िस्मत इस काम में भी खुल गई। उस गाँव के अनेक लोगों ने कुएँ खुदवाये, पर किसी के भी कुएँ में पानी न आया। मगर शिवनाथ के कुएँ में दस फुट की गहराई में ही मीठा पानी निकल आया। अब उसे पानी ख़रीदने की ज़रूरत न रही। मगर वह अपने घर के उपयोग के लिए थोड़ा पानी अब भी ख़रीदता था।
फिर भी शिवनाथ के दूध के बारे में गाँववालों में शंका पैदा हो गई। सब ने शिकायत की कि दूध का स्वाद पहले जैसा नहीं है। उसने बताया कि भैंसों में ही कोई ख़राबी है। पर गाँववालों ने यह बात भी मान ली। फिर भी उसकी भैंसों का दूध बिलकुल अच्छा न लगता था। शिवनाथ के साथ स्पर्धा न कर सकने की हालत में दूध के सब व्यापारी गाँव को छोड़ चले गये। इसलिए गाँववालों को शिवनाथ के यहाँ से ही दूध खरीदना पड़ता था।
इस हालत में गाँव के एक साहसी युवक ने राजा के पास जाकर शिवनाथ की शिकायत की और यह भी निवेदन किया कि शिवनाथ का काफ़ी नाम है, इसलिए जाँच गुप्त रूप से हो तो अच्छा होगा। राजा के एक गुप्तचर ने शिवनाथ के दगे का पता लगाया।

राजा ने शिवनाथ को बंदी बनाया। न्यायालय में खड़ा करके राजा ने पूछा, ‘‘यह साबित हो गया है कि तुम दूध में ज़्यादा पानी मिलाकर बेचते हो। इसका तुम क्या जवाब दोगे?''
‘‘महाराज, आप आज्ञा दीजिए कि मैंने कैसी मिलावट की है?'' शिवनाथ ने पूछा।
‘‘दूध में पानी मिलाया।'' राजा ने कहा।
‘‘महाराज! मैंने दूध में पानी नहीं मिलाया। पानी में ही दूध मिलाया। मैं जो पानी बेचता हूँ, उस में दूध की अपेक्षा पानी ही ज़्यादा है।'' शिवनाथ ने जवाब दिया।
न्यायालय में उपस्थित सभी लोग हँस पड़्रे। ‘‘यह तो और अन्याय है!'' राजा ने कहा।
‘‘महाराज! मैं पानी का व्यापारी हूँ, दूध का नहीं। हमारे गाँव के लोगों की ख़ास ज़रूरत पानी है, उसके वास्ते वे लोग काफ़ी धन ख़र्च कर रहे हैं।'' शिवनाथ ने समझाया।
शिवनाथ के मुँह से ये शब्द सुनते ही उस गाँव के मुखिये ने राजा से कहा, ‘‘महाराज, यह बात सच है! शिवनाथ साधारण व्यक्ति नहीं है। इसने कालयम नामक डाकू से हमें बचाया है। ऐसा व्यक्ति मिलावट करता है, यह बात विश्वास करने की नहीं है। मुझे लगता है कि हमारे गाँव में पानी की तंगी की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करने के लिए ऐसा किया होगा।''
ये बातें सुनकर राजा क्रोध में आ गया और गरज कर बोला, ‘‘आज तक तुम लोग क्या कर रहे थे? मेरी सेवा में प्रार्थना पत्र क्यों नहीं भेजा?''
‘‘महाराज! हमने कई प्रार्थना-पत्र भेजे, मगर आपके अधिकारी जनता के अपराधों की जाँच में जो दिलचस्पी ले रहे हैं, वैसी जनता की प्रार्थनाओं पर नहीं लेते।'' गाँव के मुखिये ने कहा।
इसके बाद राजा ने शिवनाथ को मुक्त किया, उसकी प्रशंसा की और इनाम दिये। तब नदी से उसके गाँव तक एक नहर खुदवाई। गाँववालों ने यही सोचा कि शिवनाथ की कृपा से ही उन्हें वह नहर प्राप्त हुई है। इसके बाद शिवनाथ ने यश और प्रतिष्ठा के साथ करोड़ों रुपये कमाये। गलत रास्ते से धन कमाना छोड़ विवाह किया और आराम से अपने दिन व्यतीत करने लगा।





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