
धुन का पक्का विक्रमार्क पुनः पेड़ के पास गया; पेड़ पर से शव को उतारा और उसे अपने कंधे पर डाल लिया। फिर यथावत् वह निधड़क श्मशान की ओर बढ़ता हुआ जाने लगा। तब शव के अंदर के वेताल ने कहा, ‘‘आधी रात का समय है। बादल गरज रहे हैं। बिजली कड़क रही है। भूत-प्रेत अट्टहास कर रहे हैं। फिर भी बिना डरे आगे बढ़े जा रहे हो। लक्ष्यहीन होकर तुम्हारा यह जाना मेरी दृष्टि में अनुचित है। तुम्हें मैं सदा सावधान करता आ रहा हूँ। तुमसे कहता आ रहा हूँ कि तुम एक महान राजा हो। राजा के कुछ निश्चित कर्तव्य भी होते हैं। पर इन कर्तव्यों को भुलाकर तुम भटक रहे हो। यह कदापि तुम्हें शोभा नहीं देता। समझ लो, तुमने कार्य साध भी लिया हो तो इसका क्या भरोसा कि इसका फल तुम चखोगे। मेरी आशंका है कि वह फल तुम किसी के सुपुर्द कर दोगे और फिर से खाली हाथ लौटोगे। तुम्हें सावधान करने के लिए मैं तुम्हें युवराज जयंत की कहानी सुनाऊँगा, जिसने फल तो पाया, पर उसे मानसिक चंचलता के वश होकर खो दिया, हाथ से फिसल जाने दिया। मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे साथ भी ऐसा हो।'' फिर वेताल जयंत की कहानी यों सुनाने लगाः
चंद्रगिरि का महाराज बालिग़ हो गया। उसके विवाह की उम्र हो गयी। उसकी तीव्र इच्छा थी कि वह ऐसी कन्या से शादी करे, जिसे वह चाहता है। उसके माता-पिता ने कितने ही रिश्ते सुझाये, पर उसने सबसे इनकार कर किया। जयंत एक दिन शाम को टहलने के बाद जब घर लौटा, तब उसकी माँ ने उसे एक सुंदर कन्या का चित्र दिखाते हुए कहा, ‘‘यह प्रतापगढ़ की राजकुमारी है। वह राजा की इकलौती पुत्री है। मेरी भाभी के मायके के लोगों को यह कन्या बहुत अच्छी लगी है। उनका मानना है कि यह सब प्रकार से तुम्हारे लिए योग्य पत्नी है।''

जयंत ने उस चित्र को ठीक तरह से बिना देखे ही कह दिया, ‘‘यह कन्या मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगी।'' यों कहकर वह वहाँ से चलता बना।
उस रात को जयंत बहुत देर तक सो नहीं पाया। उसे लगा कि राजभवन में ही रहूँ तो मनपसंद कन्या को चुनना असंभव है। अच्छा यही होगा कि राज्य भर में घूमूँ और सुंदर व योग्य कन्या को चुनूँ। यह सोचकर बनकर वह उसी समय घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा।
सूर्योदय होते-होते, वह एक घने जंगल के पहाड़ी क्षेत्र में पहुँचा। वहाँ पर्वत पर से एक मनोहर प्रपात नीचे के पत्थरों पर गिर रहा था। उस प्रपात से थोड़ी दूरी पर एक सुंदर कुटीर था। घोड़े से उतरकर वह उसी कुटीर की ओर गया।
उस कुटीर के आगे तरह-तरह के रंगबिरंगे पुष्पों के बीच में दो सुंदर कन्याएँ घूम रही थीं और पुष्प तोड़ रही थीं । जयंत ने आज तक ऐसी अपूर्व सुंदरियों को देखा नहींथा । उसने सोचा भी नहीं था कि ऐसी सुंदर कन्याएँ धरती पर हो भी सकती हैं।
जयंत उनके पास गया और बोला, ‘‘आप दोनों अपूर्व सुंदरियाँ हैं। परंतु, मैं क्या जान सकता हूँ, आप इस जंगल में क्यों रहती हैं?''

जयंत को देखकर पहले वे दोनों थोड़ी घबरायीं, पर अपने को संभालते हुए उन्होंने कहा, ‘‘कोई यह बता नहीं सकता कि सौंदर्य का क्या अर्थ होता है। सौंदर्य देखनेवालों के नयनों में होता है। हमारे पिताश्री महान ज्योतिषी हैं। उनका मानना है और उनका विश्वास भी है कि ऐसे सुंदर कुटीर में, ऐसे मनोहर वातावरण में, एक साल भर के लिए रह जाएँ तो हमारा भविष्य उज्ज्वल और सुनहरा होगा। इसीलिए उन्होंने हमारे निवास के लिए यह स्थान चुना। एक सामंत राजा के निमंत्रण पर वे कल उनके राज्य में गयेहैं ।''
वे सुंदरियाँ पूछें कि आप कौन हैं, इसके पहले ही जयंत ने कहा, ‘‘अपनी मनपसंद कन्या से विवाह रचने के लिए राजप्रासाद से चुपचाप चला आया हूँ। मैं नहीं चाहता कि इस विषय में मेरे माता-पिता हस्तक्षेप करें। तुम दोनों में से किसी से भी विवाह करने के लिए मैं तैयार हूँ। आपके पिताश्री के लौटते ही मैं उनसे बात करूँगा।''
जयंत को जो कहना था, उसने साफ़-साफ़ कह दिया। इसपर वे दोनों युवतियाँ चकित रह गयीं। उन दोनों ने आपस में बातें कर लीं और कहा, ‘‘हम दोनों जुड़वीं बहनें हैं। हमारे पिताश्री ने बहुत पहले ही कहा था कि हमारा विवाह किसी एक ही पुरुष से होगा।''
‘‘बिना किसी संकोच के मैं तुम दोनों से विवाह करने को तैयार हूँ। समझता हूँ कि यद्यपि तुम दोनों का रूप एक जैसा है, पर तुम्हारे गुण भिन्न-भिन्न होंगे। आप अब तक जान गयी होंगी कि मैं कौन हूँ। अपनी मनोदशाओं पर कृपया थोड़ा प्रकाश डालिये।'' बग़ल के पत्थर पर आसीन होते हुए जयंत ने कहा।
उसके इस प्रश्न पर दोनों युवतियों ने हँसते हुए कहा, ‘‘हम दोनों जिद्दी हैं, हठी हैं। हम दोनों अपने को एक-दूसरे से अधिक मानती हैं। यही नहीं, जो साधना चाहती हैं, साधकर ही शांत होती हैं। इसके लिए हम कुछ भी करने के लिए सन्नद्ध रहती हैं। कोई भी त्याग करने को तैयार हो जाती हैं।''
‘‘अच्छा, यह बात है!'' फिर जयंत ने एक क्षण के बाद पूछा, ‘‘साफ़-साफ़ बता दीजिये कि मेरे बारे में आप दोनों की क्या राय है?''

दोनों युवतियों ने आपस में बातें कर लीं और कहा, ‘‘पिताश्री बहुत पहले ही हमसे कह चुके हैं कि बड़ा ही बुद्धिशाली और विवेकी ही तुम दोनों का पति बनेगा। हमारे नाम हैं, मंदार और चंपा। क्या आप बता सकते हैं कि हममें से कौन मंदार है और कौन चंपा?''
थोड़ी देर तक सोचने के बाद जयंत बता सका कि उनमें से कौन मंदार है और कौन चम्पा। दोनों युवतियाँ यह सुनकर आश्चर्य में डूब गयीं और पूछा, ‘‘आप यह कैसे बता सके?''
जयंत ने कहा, ‘‘आप दोनों जुड़वी हैं। एक ही प्रकार की रूपरेखाएँ हैं। एक के शरीर का रंग गुलाबी है और दूसरे का हरा। मैं समझता हूँ कि शरीर के रंग के आधार पर आसानी से पहचानने के लिए एक का नाम मंदार और दूसरे का नाम चंपा रखा गया है। यह मेरी कल्पना मात्र भीहो सकती है ।''
‘‘हमारी उम्र में भी कुछ क्षणों का फर्क है। क्या आप बता सकते हैं, हममें से कौन बड़ी और कौन छोटी है?'' सुंदरियों ने पूछा।
जयंत ने एक क्षण रुक कर कहा, ‘‘इसके लिए मुझे शाम तक समय दीजिये।'' दोनों ने स्वीकृति दे दी।
शाम को मंदार और चंपा ने केले के पत्तों में दो सब्जियाँ, दो चटनियाँ और खीर सहित जयंत को स्वादिष्ट खाना खिलाया। भोजन कर चुकने के बाद जयंत ने उनसे बताया, ‘‘तुममें से मंदार बड़ी है और चंपा छोटी।''
‘‘वाह, आपने बिलकुल ठीक कहा। इस निर्णय पर कैसे आ पाये?'' मंदार ने पूछा।
‘‘साधारणतया उम्र में बड़ी ही रसोई व घर का काम संभालती हैं। छोटी घर के इधर-उधर का काम संभालती हैं। मंदार ने रसोई बनायी, चंपा ने पत्ता डालकर भोजन परोसा। मैंने इसपर ध्यान दिया और आसानी से जान गया कि तुममें कौन बड़ी हो और कौन छोटी।'' जयंत ने कहा।
मंदार और चंपा थोड़ी दूर हटकर आपस में बातें कीं और पास आकर जयंत से कहा, ‘‘हम मानती हैं कि तुम बुद्धिमान हो और तुममें तार्किक विश्लेषण की अद्भुत शक्ति है। क्या तुममें हम दोनों के पालन-पोषण की आर्थिक शक्ति है?''
वेताल ने यह कहानी सुनायी और कहा, ‘‘राजन्, सुंदरियाँ मंदार और चंपा के साथ जयंत की व्यवहार शैली अमर्यादित और अशोभनीय लगती है। वह भावी पत्नी को चुनने के लिए दृढ़ निश्चय के साथ निकला। उससे विवाह करने के लिए दो सुंदरियाँ सन्नद्ध भी हुईं। फिर भी, उसने उनका तिरस्कार किया और माता-पिता से चयनित कन्या से विवाह रचाया। उसका यह निर्णय क्या अनुचित नहीं था? उसकी आशा फलीभूत हुई, पर मानसिक चंचलता के वश में आकर उसने कुछ और ही किया। उसकी यह भूल और मानसिक चंचलता नहीं तो और क्या है?"

जयंत इसपर ठठाकर हँस पड़ा और बताया कि वह कौन है। फिर पूछा, ‘‘कोई और शंका हो तो पूछ लीजिये।''
इसपर मंदार ने फ़ौरन कहा, ‘‘जन्म-पत्री के अनुसार हमारा विवाह एक ही व्यक्ति से होगा और हम दोनों एक ही दिन पुत्र को जन्म देंगी। परंतु छोटी चंपा के बेटे का जन्म कुछ क्षणों के पहले होगा और मेरा बेटा कुछ क्षणों के बाद। ऐसी स्थिति में, हममें से किसके पुत्र को आप राजा घोषित करेंगे?''
जयंत ने कहा, ‘‘इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए मुझे थोड़ा सा समय चाहिये।'' ‘‘ठीक है। रात को सोच लीजियेगा और सवेरे अपना निर्णय सुनाइयेगा।'' दोनों बहनों ने एक साथ कहा।
उस रात को जयंत के सोने के लिए एक कमरे का प्रबंध किया गया। दूसरे दिन प्रातःकाल मंदार और चंपा के पिता लौट आये। मंदार ने, पिता को सविस्तार पूरा विषय बताया तो चंपा ने जयंत के कमरे में झांककर देखा। वहाँ जयंत नहीं था।
वह लौटी और उनसे कहा, ‘‘कमरे में वे नहीं हैं। होनेवाले राजा को हमने एक दिन का आतिथ्य दिया, यही संतृप्ति हमारे लिए बच गयी।''
इस घटना के कुछ दिनों के बाद जयंत का विवाह उसके माता-पिता द्वारा चयनित कन्या से संपन्न हुआ।

‘‘मेरे इन संदेहों के समाधान जानते हुए भी चुप रह जाओगे तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे।''
विक्रमार्क ने कहा, ‘‘मंदार और चंपा ने, जयंत के सामर्थ्य तथा उसके तार्किक ज्ञान को जानने के लिए ही कुछ जटिल सवाल पूछे। उन दोनों ने जो प्रश्न पूछे और अपने बारे में उन्होंने जो-जो बढ़ा-चढ़ाकर कहा, उनसे जयंत जान गया कि उनमें अहंभाव, हठ, जिद, आवश्यकता से अधिक हैं। साथ ही उनकी बातों से उसे यह भी मालूम हो गया कि वे अपनी इच्छा को किसी भी हालत में पूरी करनेवालियों में से हैं।
‘‘उनका वह स्वभाव स्त्रियों के लिए कदापि उचित नहीं। इस सत्य को जयंत जान गया। अगर ऐसी स्त्रियाँ उसकी रानियाँ बनेंगी तो अवश्य ही अपने पुत्र को ही राजा बनाने के लिए जिद करेंगी और गंभीर समस्या खड़ी कर देंगी। इससे न ही अंतःपुर में शांति होगी और न ही राज्य सुरक्षित रहेगा। राजा के लिए अपनी इच्छाओं की पूर्ति से भी अधिक आवश्यक व महत्वपूर्ण हैं, देश की सुरक्षा, प्रजा का सुख-संतोष। इनपर बखूबी सोचने के बाद माता-पिता से चयनित कन्या से विवाह करना ही उसने उचित और न्याय- संगत समझा।
‘‘इससे उसकी विवेचन शक्ति व परिशीलन ज्ञान स्पष्ट गोचर होते हैं। इसमें मानसिक चंचलता का कोई सवाल ही नहीं उठता।''
राजा के मौन-भंग में सफल वेताल शव सहित गायब हो गया और फिर से पेड़ पर जा बैठा।
- के. सुचित्रा देवी की रचना के आधार पर

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