Friday, July 1, 2011

नरक जो दिखाये

कामेश की हमेशा यही इच्छा रहती थी कि कैसे भी हो, रामेश से अधिक अक्लमंद कहलाऊँ, और लोगों के सामने उसे नीचा दिखाऊँ। इसलिए पास ही के गाँव में जाकर उसने चित्रकला सीखी और अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने के मौक़े की प्रतीक्षा करने लगा।
उस साल गाँव में चोरियाँ बहुत बढ़ गयीं। जो चोर पकड़े गये उनके हाथों में हथकड़ियाँ लगायी गईं, जेल में ठूंसकर उन्हें तरह-तरह से सताया गया, पर चोरों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
ग्रामाधिकारी ने गाँव के प्रमुख लोगों से इसके बारे में बातें कीं। उन्होंने कहा, ‘‘गाँव में सती सावित्री की कथा का आयोजन करेंगे? जिसे क़ैदी चोर भी सुनेंगे। उस कथा में सावित्री सत्यवान के प्राण ले जानेवाले यमराज का पीछा करती है, उस महा पतिव्रता को यमराज ने डरा कर लौट जाने का आदेश दिया। यह भी बताया कि नरकलोक कितना भयंकर होता है। अतः चोर नरक की यातनाओं के भय से शायद चोरियाँ न करें, उनसे दूर रहें।''
कामेश ने तुरंत कहा, ‘‘नरकलोक का चित्र दिखायेंगे तो उनमें डर और बढ़ जायेगा। इसलिए घोषणा करेंगे कि जो नरकलोक का चित्र प्रदर्शित करेंगे, उन्हें पुरस्कार दिया जायेगा।''
‘‘उपाय तो सही लगता है, परंतु पुरस्कार का मैं विरोध करता हूँ,'' रामेश ने कहा।
‘‘यह विरोध अच्छा संस्कार नहीं कहलाता,'' कामेश ने कड़े स्वर में कहा।
रामेश इसपर हँस पड़ा और बोला, ‘‘जो ज़िन्दा हैं, उन्हें नरकलोक का चित्र दिखाना और उस कलाकार को पुरस्कार देना, संस्कार नहीं कहलाता। यह निर्णय गाँव के प्रमुखों पर छोड़ता हूँ।''
सब हँस पड़े। कामेश, रामेश के हाथों एक बार और हार गया।


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