Friday, July 1, 2011

छोकरा मांत्रिक

प्रज्वल अवंती राज्य के नंदिवर में रहता था। बचपन से ही वह परोपकारी था। ज़रूरतमंदों की सहायता करने में वह हमेशा आगे रहता था। बड़ा होते-होते अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रवृत्ति भी उसमें दृढ़ होती गयी। केशव एक ग़रीब किसान था, जो उसी गाँव में रहता था। अपनी पत्नी के इलाज के लिए उसने अपने खेत का एक टुकड़ा फणिराज नामक एक धनवान को बेचा।
फणिराज ने उसे आधी रक़म दी और शेष रक़म बाद में देने का वादा किया। एक हफ्ते के बाद केशव बाक़ी रक़म माँगने फणिराज के घर गया। फणिराज ने रक़म देने से साफ़-साफ़ इनकार कर दिया, और उसे चोर ठहराते हुए कोतवाल के सुपुर्द कर दिया।
बेचारा केशव बहुत गिड़गिड़ाया पर कोतवाल ने उसकी एक भी बात नहीं सुनी और उसे जेल में डाल दिया। गाँव के लोग जानते थे कि यह सरासर अन्याय है, पर किसी भी ग्रमीण ने कोतवाल के ख़िलाफ एक शब्द भी कहने का साहस नहीं किया। प्रज्वल से यह अन्याय सहा नहीं गया और वह सीधे कोतवाल के पास गया।
चूँकि कोतवाल, फणिराज से मिला-जुला था, इसलिए उसने प्रज्वल की एक न सुनी। बहुत कुछ कहने के बाद भी केशव को छोड़ने से कोतवाल ने जब इनकार किया, तब प्रज्वल ने डटकर उसका विरोध किया।
कोतवाल ने सिपाहियों को उसे गिरफ्तार करने का हुक्म दिया। पर, प्रज्वल उनसे बचकर भाग निकला और पहाड़ी प्रदेश की एक गुफ़ा में जाकर छिप गया। गुफ़ा की दूसरी तरफ़ घना जंगल था।
प्रज्वल गुफ़ा से बाहर आ गया और जंगल से होते हुए गुज़रने लगा। उसे बोड़ी भूख लगी। आगे और जाना उससे संभव नहीं हो पाया।

वह एक पेड़ की छाया में बैठ गया और थोड़ी ही देर में निद्रा की गोद में चला गया। थोड़ी देर बाद जब पानी की छीटें मुँह पर पड़ीं तो प्रज्वल ने आँखें खोलीं। उसने देखा कि सामने एक दिव्य तेजस्वी वृद्ध मुनि दंड कमंडल लिये मुस्कुराते हुए खड़े हैं।
उन्होंने बड़े ही मृदु स्वर में पूछा, ‘‘हिंसक जंतुओं से भरे इस जंगल में क्यों आये हो?'' ‘‘इनसे भी भयंकर अधिकारियों से बचने के लिए यहाँ आया महात्मा।'' कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ और जो हुआ, उसने सविस्तार मुनि को बताया।
पूरा विषय जानने के बाद मुनि ने कहा, ‘‘हाँ, मैंने भी सुना कि अवंती राजा हेमांगद की असावधानी व लापरवाही के कारण ही अधिकारी प्रजा को सता रहे हैं।'' ‘‘ऐसे दुष्टों को दंड देने का क्या कोई मार्ग नहीं है?'' प्रज्वल ने बड़े ही आवेश-भरे स्वर में पूछा। ‘‘इतने दिनों तक तुम जैसे साहसी और समर्थ युवक की खोज में ही था पुत्र,'' मुनि ने कहा।
इसके बाद मुनि ने पास ही के पेड़ से, एक अजीब आकार की लकड़ी तोड़ी, आँखें बंद कर लीं और थोड़ी देर तक मंत्र जपते रहे। फिर डंडे के आकार की उस लकड़ी को प्रज्वल को सुपुर्द करते हुए कहा, ‘‘पुत्र, इस मंत्रदंड की सहायता से तुम अदृश्य होकर विचर सकते हो।
वायुवेग से तुम यात्रा कर सकते हो। शत्रुओं को शक्तिहीन बना सकते हो और उन्हें अंगुष्ठ भर के मानव बना सकते हो। फिर जब चाहो, उन्हें साधारण मनुष्यों में बदल सकते हो। इसके उपयोग का अधिकार केवल तुम्हें ही है और वह भी दुष्टों को दंड देने और शिष्टों की रक्षा करने के कामों में ही यह उपयोग में आयेगा। विजयोस्तु,'' कहते हुए उन्होंने आशीर्वाद दिया।
प्रज्वल ने, बड़े ही आनंद के साथ उस मंत्रदंड को स्वीकार किया, भक्तिपूर्वक उसे आँखों से स्पर्श किया और मुनि को साष्टांग नमस्कार करने के बाद वहाँ से चल पड़ा। दूसरे उसे न पहचानें, इसके लिए उसने अपना वेष बदल लिया।
अब उसके केश तांबे के रंग के थे, उसकी नाक अब बहुत लंबी थी, आँखें आग की तरह लाल-लाल थीं और उसके दाँत ओंठों के बाहर थे।


उसका पूरा शरीर काले कपड़े से ढका था। जब वह स्वग्रम लौट रहा था तब मार्ग मध्य में एक गाँव के बीचों बीच एक युवती ‘‘रक्षा करो, रक्षा करो'' कहती हुई दौड़ी जा रही थी। प्रज्वल उसे देखकर रुक गया। मस्त हाथी जैसा एक मध्य वयस्क, दस बलवानों को लिये, उस स्त्री का पीछा कर रहा था।
गाँव के लोग डर के मारे चुप थे। उन्हें रोकने की कोशिश कोई नहीं कर रहा था। ‘‘रुक जाओ'' कहते हुए प्रज्वल उस बदमाश के सामने खड़ा हो गया। बहुत ही नाराज़ होता हुआ वह मध्य वयस्क चिल्ला पड़ा, ‘‘मुझे रोकने का साहस करनेवाले तुम हो कौन?'' ‘‘कानून हूँ,'' प्रज्वल ने कहा। ‘‘इतने दिनों तक कहाँ रहे? कोई भी कानून मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता। मैं ग्रमाधिकारी नागस्वर हूँ।
जिस युवती से शादी करना चाहूँगा, करके रहूँगा। मुझे रोकनेवाला वीर अब तक कोई पैदा ही नहीं हुआ,'' हुँकारते हुए ग्रमाधिकारी ने कहा। ‘‘अब तक ज़बरदस्ती शादी करने के अपराध में पाँच साल, अब इस युवती के बलात्कार के अपराध में एक साल की कठोर सज़ा इस देश के कानून के अनुसार सुना रहा हूँ'', प्रज्वल ने बड़े ही गंभीर स्वर में यह सज़ा सुनायी।
नागस्वर और क्रोधित हो उठा और चिल्ला पड़ा, ‘‘आख़िर तुम एक छोकरे हो। मुझे सज़ा सुनाने की तुम्हारी यह जुर्रत! देखते क्या हो, उसे पकड़ लो और पेड़ से बांध दो।'' उसने अपने आदमियों को हुक्म दिया।
कपड़ों में छिपाये मंत्रदंड को प्रज्वल ने निकाला और देखते-देखते नागस्वर और उसके अनुचर अंगूठे भर के आदमी हो गये। प्रज्वल ने उन्हें पकड़ लिया और एक छोटी टोकरी में डाल लिया। फिर अदृश्य हो गया। यह दृश्य देखकर लोग निश्र्चेष्ट रह गये। इसके कुछ क्षणों के बाद, प्रज्वल नंदिबर के कोतवाल के सामने प्रत्यक्ष हो गया।
फणिराज भी उस समय वहीं था। ‘‘केशव को जो रकम मिलनी थी, उसे दी नहीं गयी, उल्टे उसे क़ैद करना अन्याय है। फ़ौरन उसे छोड़ दो और जो रक़म उसे मिलनी है, उसे देकर भेज दो।'' प्रज्वल ने कहा।

‘‘हमें न्याय और अन्याय के बारे में बतानेवाले तुम कौन हो? चुपचाप यहाँ से चलते बनो। अनावश्यक ही हस्तक्षेप किया तो तुम्हें भी जेल में ठूँस दूँगा'', कोतवाल ने क्रोध-भरे स्वर में कहा। प्रज्वल ने फ़ौरन कोतवाल और फणिराज को अंगूठे भर के आदमियों में परिवर्तित कर
टोकरी में डाल लिया। फिर केशव को जेल से छुड़ाया और देखते-देखते सबकी आँखों से ओझल हो गया। उस दिन से लेकर प्रज्वल अदृश्य संचार करता रहा। मासूमों, कमज़ोरों व निरपराधियों को जब-जब, जहाँ-जहाँ ज़रूरत पड़े, सहायता करता रहा और दुष्टों को दंड देता रहा।
प्रज्वल को लेकर राज्य भर में तरह-तरह की अफ़वाहें फैलने लगीं। कुछ लोग कहने लगे कि छोकरा मांत्रिक अपराधियों को पकड़कर ले जाता है, उन्हें अंधेरी गुफ़ा में बंद करता है और उन्हें खूब सताता है। कुछ लोगों का यह भी कहना था कि कोई विचित्र शक्ति छोकरे मांत्रिक के रूप में कानूनन दंडों को अमल में लाती है।
पर, सब मानने लगे कि इससे सामान्य प्रजा के कष्ट दूर हो गये। उन अधिकारियों व निरंकुशों की नींद उड़ गयी, जो कमज़ोरों को सताते रहे। उन सबने राजा से इसकी शिकायत की। राजा ने महामंत्री को बुलाकर इसके बारे में दीर्घ चर्चाएँ कीं।
दूसरे दिन राजा ने सभा बुलायी। सभी मंत्री, अधिकारीगण उपस्थित हुए। राजा ने छोकरे मांत्रिक के क्रियाकलापों पर प्रकाश डाला और कहा, ‘‘अब इसपर यह चर्चा करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि छोकरा मांत्रिक अच्छा कर रहा है या बुरा। यह तो स्पष्ट है कि उसने हमारे अधिकारों को अपने हाथ में ले लिया।
एक राज्य में दो अधिकार केंद्रों का होना ख़तरनाक है। शीघ्र ही उसके निर्मूलन का मार्ग ढूँढ़ना होगा।'' यह सुनते ही महामंत्री भय के मारे कांपते हुए कहने लगा, ‘‘महाप्रभु, पहले मुझे जेल में डाल दीजिये।'' राजा ने आश्चर्य-भरे स्वर में पूछा, ‘‘आपको क्यों जेल में डालें?'' ‘‘आपकी जानकारी के बिना प्रजा को सतानेवाले कुछ अपराध मैंने किये।

उस छोकरे मांत्रिक के हाथ आ जाऊँगा तो वह मुझे खूब सतायेगा। उससे अच्छा यही होगा कि मैं जेल में रहूँ और वहाँ यातनाएँ सहूँ।'' महामंत्री ने दीन स्वर में कहा। राजा चाहते नहीं थे, पर उन्होंने उसके अपराधों की जांच-पड़ताल करवायी और कानूनन् उसे जेल की सज़ा सुनायी। इसके बाद राजा के आस्थान के कुछ और अधिकारियों ने भी स्वच्छा से अपनी-अपनी ग़लतियाँ स्वीकार कीं और कानून के सामने झुक गये।
राज्य भर में ख़बर फैल गयी कि सब अपराधियों ने अपने-अपने अपराध स्वीकार किये और कानूनन् उन्हें सज़ा दी गयी। क्रमशः राज्य में अपराधियों की संख्या बहुत बड़ी मात्रा में कम हो गयी। अब ऐसी अच्छी परिस्थिति उत्पन्न हो गयी कि प्रज्वल को अपनी तरफ़ से किसी पर कोई कार्रवाई करनी नहीं पड़ी।
इस वजह से भी प्रज्वल के बारे में लोगों ने बोलना बन्द कर दिया। एक दिन शाम को महाराज महामंत्री के साथ उद्यानवन में टहलने लगे तो उन्होंने कहा, ‘‘मंत्रिवर, आपकी सलाह का परिणाम बहुत ही अच्छा निकला। प्रजा अब शांति से जीवन बिता रही है।'' ‘‘अभिनंदन मेरा नहीं महाराज, उस छोकरे मांत्रिक का कीजिये, जिसकी वजह से यह आमूल परिवर्तन संभव हो पाया है'', मंत्री ने कहा।
‘‘वह कैसे?'' राजा ने पूछा। ‘‘हाँ, महाराज, वह मांत्रिक एक दिन मेरे पास आया था और उसने अपने कामों का पूरा विवरण दिया। उन अपराधियों को भी दिखाया, जिन्हें उसने पिंजड़ों में बंद रखा था। पहले तो मुझे इस बात पर खुशी हुई कि जो काम हम नहीं कर सके, उसने वह करके दिखाया।
फिर बाद मुझे लगा कि अपराधियों के प्रति दया दिखानी नहीं चाहिये, उन्हें उनके बुरे कामों के लिए दंड मिलना ही चाहिये। साथ ही, मैंने यह भी महसूस किया कि भय होने पर ही बुरे कामों से लोग दूर रहेंगे। इसीलिए मैंने यह उपाय सोचा, जिससे अपराधी स्वेच्छा से कानून के सामने झुक जाएँ। इसीलिए मैंने दोषी होने का नाटक किया।'' राजा मंत्री की तीक्ष्ण बुद्धि पर बेहद खुश हुए।





No comments:

Post a Comment