Saturday, July 2, 2011

स्मिथ, वापस जाओ!!

इस दृश्य से 1927 की वह घटना स्मृति पटल पर उभर आती है जब भारत के स्वतंत्रता सेनानी साइमन कमीशन का विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। उनके हाथों में इश्तहार के तख्ते थे जिन पर लिखा थाः "साइमन, वापस जाओ!" यह उनकी आजादी का सवाल था और उन्हें पक्का विश्वास था कि उन्हें हर कीमत पर इसे प्राप्त करना है।
परन्तु यह दृश्य 1927 का नहीं है, न ही प्रदर्शनकारी स्वतन्त्रता सेनानी थे। यह घटना सिर्फ दस वर्ष पहले की है। विरोध करनेवाले मछुआरा जाति के स्त्री-पुरुष थे। इनकी संख्या करीबन 2,000 थी। इनके हाथों में पोस्टर और प्लेकाड्स थे तथा ये नारे लगा रहे थे। पोस्टर के सन्देश अलग-अलग थे, लेकिन उन सब का आशय एक थाः "स्मिथ, वापस जाओ!"
ये स्मिथ कोजेनरेशन नाम की एक निजी कम्पनी का विरोध कर रहे थे, जो कर्नाटक के बेंगरे गाँव में समुद्र तट पर बिजली पैदा करने की एक बड़ी मशीन स्थापित करना चाहती थी। ये विरोध-प्रदर्शनकारी मछुआरे बेंगरे तथा पड़ोसी गाँवों के थे।
उस दिन, कम्पनी के लोग जिलाधीश के कार्यालय में बेंगरे तथा पड़ोसी गाँणवों में मछुआरों को यह कहने के लिए गये कि इस मशीन की स्थापना से गाँववालों की सम्पत्ति और सुख समृद्धि में वृद्धि होगी। उन्होंने ठीक यही कहा लेकिन वास्तविकता को छिपा रखा।
लेकिन मछुआरे, वर्षों के अनुभव से जानते थे कि क्या होनेवाला है। इसलिए कम्पनी की बात सुन लेने के बाद अपनी कठिनाइयाँ बताने लगे। उन्होंने कहा कि समुद्र उनके लिए केवल जीविका का साधन नहीं, बल्कि उससे उनकी भावना जुड़ी हुई है और वह उनकी आराधना का पात्र है और उनके लिए भगवान के समान है।
मछुआरों के अधिकारों के लिए कार्यरत कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि भी उस दिन की बैठक में शामिल थे। उनकी मदद से मछुआरों ने समझाया कि उस मशीन की स्थापना से समुद्र की मछलियों और रेतीले तट की क्या दुर्गति होगी। उन्होंने मि.स्मिथ और उसके आदमियों को कहा कि मशीन से निकलने वाले गन्दे तेल से मछलियाँ मर जायेंगी या मशीन की आवाज़ से तट से दूर चली जायेंगी। मछुआरे बेचारे तब क्या पकड़ेंग और उनकी औरतें क्या बेचेंगी? उनकी जीविका का एक मात्र साधन चला जायेगा।



तब तक कम्पनी के लोगों ने बेंगरे और पड़ोसी गाँवों को मशीन से होनेवाले लाभों की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रखी थी। उन्होंने रिर्पोट में सबको विश्वास दिलाने के लिए झूठी सूचनाओं का प्रयोग किया था। स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने रिपोर्ट पढ़ने के बाद यह अनुभव किया कि इसकी सूचनाएँ पूरी तरह सच नहीं हैं।
कम्पनी के लोगों ने जब रिपोर्ट प्रस्तुत की तब मछुआरों के शुभ चिन्तक स्वयंसेवी संस्थाओं के लोगों ने आपत्ति की। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट गलत है और साथ ही मशीन की स्थापना से तट पर होनेवाले दूरगामी दुष्प्रभावों को अनदेखा कर दिया गया है।
जिलाधीश के कार्यालय के बाहर एकत्र लोगों ने एक साथ शोर मचाना शुरू किया और "स्मिथ, वापस जाओ" तथा अन्य अनेक नारों से हाते का वातावरण गूंज उठा। यह एक दुर्व्यवस्थित दृश्य था। मछुआरे अपने निर्णय पर डटे हुए थे। उनका फैसला थाः मि.स्मिथ की विशाल मशीन को एकदम नकार।
बैठक समाप्त हो गई और लोगों की भीड़ छँट गई। दूसरे दिन बैठक का विवरण समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया। अधिकांश समाचार पत्रों ने मछुआरों और स्वयंसेवी संस्थाओं का समर्थन किया।
लेकिन कुछ दिनों के बाद सरकार ने मि.स्मिथ तथा उसके कार्यकर्त्ताओं को बेंगरे में मशीन की स्थापना करने की स्वीकृति दे दी। ऐसा प्रतीत हुआ मानो कि मछुआरों के नजरिये की कोई अहमियत नहीं हो।
फिर भी मछुआरों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने हिम्मत नहीं हारी। वे तब से पत्र लिख रहे हैं, विरोध कर रहे हैं और अनेक प्रमुख लोगों से भेंट कर रहे हैं। यह सब उस विशाल मशीन को स्थापित करने से रोकने की कोशिश है! शुक्र है अभी तक बेंगरे में मशीन स्थापित नहीं हुई है। मछुआरों की शक्ति और प्रेरणा देखकर आश्चर्य होता है। समुद्र तट की रक्षा के लिए वे एकजुट हो गये थे।

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